ग़ज़ल
तुन्द1 शोलों में ढल गया हूँ मैं
कोई सूरज निगल गया हूँ मैं
कितने राहत फ़िजा2 थे अंगारे
बर्फ़ लगते ही जल गया हूँ मैं
तुम ने बांधा था जिन हदों3 में मुझे
उन हदों से निकल गया हूँ मैं
एक मंज़र4 में क्या समाऊंगा
इतनी शक्लों में ढल गया हूँ मैं
अब वो मासूमियत5 कहाँ मुझ में
तुम से मिल कर बदल गया हूँ मैं
लोग इस पर भी हैं ख़फ़ा6 मुझ से,
गिरते-गिरते संभल गया हूँ मैं
हासिदो7! मेरा जुर्म इतना है
तुम से आगे निकल गया हूँ मैं
मत बुलंदी8 की बात कर ‘राठी’,
अब वहाँ से फिसल गया हूँ मैं।
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- प्रचंड 2. आराम देने वाला 3. सीमाएँ 4. दृश्य 5. भोलापन 6. नाराज 7. इर्ष्यालुओं 8. ऊंचाई