बेखौफ सोच – रविंद्रनाथ टैगोर

अनुवाद – डा. सुभाष चंद्र

जडै सोच हो बेखौफ, स्वाभिमान हो जड़ै,
जडैं ज्ञान हो आजाद, घर-आंगण में संकीर्ण भीत ना खड़ै
जड़ै ना बंडै धरती हररोज छोट-छोटे टुकड़्यां टुकड़्यां म्हं   
जड़ै काळजे की तळी तै लिकडैं, साच्चे साच्चे बोल
चार-चफैरे फूटैं सोत्ते करमां की नदी के
बेरोकटोक बहै विचारां की नदी 
जड़ै टुच्चे-स्वार्थी बुहार का बाळू रेत
विचारां की नदी नै डकार ना सकै
जड़ै पुरषार्थ ना बंडै सौ सौ टुकड्यां म्हं
जड़ै तू हो सारे काम, सोच अर स्वादां म्हं 
ओ बाप, आपणे हाथां तै, ऐसी करड़ी चोट मार
जगा इस भारत देस नै,  इसे सुरग म्हं

मूल बंगला देवनागरी में

चित्त जेथा भयशून्य ,उच्च जेथा शिर ,
ज्ञान जेथा मुक्त जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड खण्ड क्षुद्रकरि,
जेथा वाकय हृदयेर उत् समुखहते
उच्छ्वसिया उठे , जेथा निर्वारित स्रोते
दशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय-

जेथा तुच्छ आचारेर मरुबालुराशि
बिचारेर स्रोतःपथे फेले नाइ ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुमि सर्व कर्म चिन्ता आनंदेर नेता-
निज हस्ते निर्दय आधात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित।

English Translation

Where the mind is without fear
and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been
broken up into fragments by the tireless efforts of men;
Where words come out from
the depth of truth;
Where the currents of tireless striving originate
and flow without hindrance all over;
Where the clear stream of reason and thoughts has not lost its way into the dreary
desert sand of lowly habits and deeds;
Where the valour is not divided in 100 different streams;
Where all the deeds, emotions are blissfully given by you
My father, strike the sleeping India without mercy,
so that she may awaken into such a heaven.

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