नई रागनी के शिखर पुरुष पं. जगन्नाथ से संवाद – रोशन वर्मा 

हरियाणा प्रदेश के लोक संगीत एवं लोक साहित्य के संदर्भ में अतीत एवं वर्तमान दोनों का समग्रता से अवलोकन करें तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक नाम मानस पर बार-बार दस्तक देता जाता है, और वो नाम है पंडित जगन्नाथ भारद्वाज समचाना का । उनकी रचनाओं एवं गायन में प्रथम दृष्टि देखने भर से ही प्रदेश की लोक संस्कृति के सरोकार अपनी संपूर्णता के साथ विद्यमान नजर आते हैं । उनकी रचनाओं में जीवन दर्शन के विराट बिम्ब अपनी प्रभावपूर्ण छंद एवं शैली के साथ उपस्थित हैं। उनकी रचनाएं सामाजिक सरोकार भी निभाती हैं और मानवीय भूलों एवं कुरीतियों से बचे रहने को आगाह भी करती हैं । हरियाणा साहित्य अकादमी से ‘‘विशिष्ट साहित्य सेवा’ सम्मान से पुरस्कृत हैं।

रोशन वर्माः अपने जन्मदिन, जन्म स्थान, कर्म भूमि एवं बचपन के बारे में कुछ बताएं ?
पं जगन्नाथ: मेरा जन्म 24 जुलाई सन् 1939 को गांव समचाना, जिला रोहतक हरियाणा में हुआ । यह तीजों के त्योहार का दिन था । जिस समय तीज मनाई जा रही थी, औरतें पींघ झूल रही थी और गीत गा रही थी । एक तरह से जब मैंने इस धरा पर अपने नन्हे कदम रखे तो प्रकृति का पूरा वातावरण संगीतमय था । अतः यही कारण है कि मेरा संगीत से लगाव बचपन से ही है।

रोशन वर्माः शिक्षा के समय की कुछ यादें, उस समय शिक्षा का परिदृश्य क्या था ?
पं जगन्नाथ: प्रथम शिक्षा तो मुझे अपने घर से ही प्राप्त हुई । क्योंकि हमारे पूर्वज सभी विद्वान पंडित थे । संस्कृत की विद्या मुझे घर से प्राप्त हुई । उनके पास रहने, उनके सानिध्य मात्र से ही संस्कृत भाषा का काफी अनुभव हो चुका था। केवल चार साल की उम्र में मैंने, अपने पिताश्री की अनुपस्थिति में एक शादी समारोह में फेरे करवा दिये थे । उस समय स्कूली शिक्षा में मेरी रूचि नहीं थी, क्योंकि हमारे ही घर में पाठशाला थी और हमारे दादा जी विद्यार्थियों को पढ़ाया करते थे।

रोशन वर्माः आप अपने प्रारम्भिक रचना कर्म में प्रवृत होने के लिये किन बातों, परिस्थितियों या व्यक्तियों को श्रेय देना चाहेंगे?
पं जगन्नाथ: छह साल की उम्र में परिजनों ने मुझे गांव के ही प्राथमिक स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु भेजा, जिस प्रथम गुरू ने मेरा नाम रजिस्टर में लिखा था, वो हमारे ही गांव के पंडित रामभगत जी थे । मैं उनको ही अपना सत्गुरू मान कर उनके चरणों में रहने लगा । जब स्कूल में शनिवार के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होता तो गुरू जी मुझे एक भजन सुनाने का अवसर जरूर देते । एक दिन उस समय के सिंचाई मंत्री चौ. रणबीर सिंह, जो कि स्वतन्त्रता सेनानी भी थे, वह हमारे स्कूल में आए । उनके आगमन पर मैंने एक स्वागत् गान खुद ही बनाया और सुना दिया । उस दिन के बाद सदैव गुरू जी ने मुझे उत्साहित किया, बस यहीं से लिखने का क्रम शुरू ।

रोशन वर्माः शुरूआती समय में किन की रागनियों एवं लोक नाट्यों ने आपको ज्यादा प्रभावित किया ?
पं जगन्नाथ: मैं पंडित लखमी चंद की कविताई से ही ज्यादा प्रभावित हुआ हूं । मैंने अपनी कविता कम गाई, परन्तु पंडित लखमी चन्द जी के बनाए हुए सभी सांग, भजनों को तरीके एवं मर्यादा से घड़वे-बैंजों पर गाया है ।

रोशन वर्माः पहली रचना किस उम्र में और कौन सी लिखी, कुछ बताएं ?
पं. जगन्नाथः पहली रचना तो चौ. रणबीर सिंह, सिंचाई मंत्री, पंजाब के स्वागत् में लिखी व गाई थी । वह अब तक याद रखना संभव नहीं है ।

रोशन वर्माः आप रागनी एवं कम्पीटीशन की तरफ कैसे प्रवृत हुए ?
पं जगन्नाथ: मैं कभी भी रागनियों की तरफ प्रवृत नहीं हुआ और न ही कभी किसी प्रतियोगिता में भाग लिया । मैंने तो सभी धर्मिक एवं ऐतिहासिक रचनाओं का सृजन व गायन किया है ।

रोशन वर्माः वर्तमान समय में जो लोग रागनी लिख रहे हैं, गा रहे हैं, उनके काम से क्या आप संतुष्ट है ?
पं जगन्नाथ: आज के समय में जो भी लिखा जा रहा है, अगर उसमें फूहड़ता ;अश्लीलता नहीं है तो, मैं सभी लिखने वालों को बधाई देता हूं ।

रोशन वर्माः कितने किस्से एंव रागनियां आप द्वारा रचित हैं ?
पं जगन्नाथ: पूरा शब्द कर्म संभालना मुश्किल है, जो बचपन में लिखा-वह जवानी में गुम हो गया और जो जवानी में लिखा वो बुढ़ापे में गुम हो गया । वैसे इस समय मेरे पास स्वरचित करीब सोलह इतिहास व आठ सौ भजन, उपदेश हाजिर हैं ।

रोशन वर्माः भविष्य में आप अपनी किस योजना को प्रारूप देने की इच्छा मन में रखते हैं ?
पं जगन्नाथ: कृपया माफ करना, मैं भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचता और न ही कोई अग्रिम योजना बनाता हूं । मेरा तो हर समय वर्तमान में ही रहने का स्वभाव है ।

रोशन वर्माः वर्तमान परिदृश्य में रागनी का भविष्य क्या देखते हैं आप ?
पं जगन्नाथ: वर्तमान परिदृश्य में हरियाणवी संगीत काफी उन्नति पर है । जिसको आप बार-बार रागनी नाम से सम्बोध्ति कर रहे हैं-वह रागनी नहीं है, यह केवल हरियाणवी संगीत है, जिसको पहले समय में अश्लील समझते थे, वही किस्से वही कविता, जिसको आज सब सुनना पसन्द करते हैं ।

रोशन वर्माः आम धरणा है कि अस्सी के दशक में घड़ा-बैजों को आपने वाद्य के रूप में स्थापित कर पहचान दिलाई, क्या यह सच है ?
पं जगन्नाथ: घड़ा-बैंजू तो मेरे जन्म से पहले भी प्रचलन में थे, परन्तु इनका प्रयोग करने वालों को अश्लील समझा जाता था । क्योंकि ज्यादातर आवारा किस्म के लोग खेतों में कोल्हूवों में इन्हें बजाया करते थे, गांव बस्ती में इस साज़ को बजाने की मनाही होती थी । मैंने सन् 1970 में घड़ा-बैंजू को अपनाया और काफी विरोध के बावजूद भी मैंने इस साज़ को नहीं छोड़ा । कुछ नये प्रयोग और धार्मिक, ऐतिहासिक रचनाओं का इन वाद्यों के साथ तालमेल, इनकी जन स्वीकृति का कारण बना और आहिस्ता-आहिस्ता सारे समाज ने ही इस साज को स्वीकार कर लिया, यहां तक कि आकाशवाणी दिल्ली व दिल्ली दूरदर्शन पर हरियाणा की तरफ से मैंने घड़े-बैंजू पर सबसे पहले गाना गाया, जिसे दूरदर्शन ने भी सहर्ष स्वीकार किया । बार-बार मेरे कार्यक्रम दिल्ली दूरदर्शन से घड़े-बैंजू पर आते रहे, फिर जनता ने भी स्वीकार कर लिये ।

रोशन वर्माः आपकी स्वयं की आवाज में कृष्ण सुदामा के किस्से को हमने बचपन में एक-एक दिन में कईं कईं बार सुना है, और कौन-कौन से किस्से ज्यादा चर्चित रहे हैं ?
पं जगन्नाथ: मैंने अपने किस्से बहुत कम गाये हैं, ज्यादातर पंडित लखमीचंद जी के किस्से गाये हैं-जो सभी चर्चित रहे हैं।

रोशन वर्माः कुछ हरियाणावी फिल्मों में रागनी एवं आप द्वारा स्थापित वाद्य का प्रयोग हुआ है । ‘‘पिगंला भरथरी’’, ‘‘मुकलावा’’,‘‘यारी’’,‘‘लाडो’’ इसके उदाहरण है । इस बारे कुछ कहें ?
पं जगन्नाथ: जब आकाशवाणी और दूरदर्शन ने यह साज स्वीकार कर लिया तो फिल्म वालों को क्या आपत्ति हो सकती थी, उनको तो दिखाने के लिये कुछ नई चीज मिल गई ।

रोशन वर्माः रागनी कम्पीटीशन के लिये एक समय पूरे हरियाणा में लहर थी । आज प्रदेश के कौन-कौन से क्षेत्र विशेष को सक्रिय का दर्जा देना चाहेंगे ?
पं जगन्नाथ: जिसको हम और आप कम्पीटीशन का नाम दे रहे हैं, दरअसल यह कम्पीटीशन नहीं है, यह केवल एक कार्यक्रम हैं । वहां कोई मुकाबला नहीं होता, न ही किसी की हार-जीत होती है । सभी बराबर का ईनाम लेते हैं । यह खेल या कार्यक्रम ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है । कुछ ही दिनों बाद और कुछ नया आ जायेगा, क्योंकि … समय परिवर्तनशील है ।

रोशन वर्माः क्या पंडित लखमीचंद जी को सुनने या देखने का अवसर आपको मिल पाया ?
पं जगन्नाथ: पंडित लखमीचंद जी को देखने या सुनने का अवसर नहीं मिला, क्योंकि कुछ तो छोटी उम्र थी और हमार परिजनों की भी कुछ पाबंदिया थी जो हमें सांग आदि देखने से रोकती थी ।

रोशन वर्माः हरियाणा सरकार ने आपको कुल कितनी बार सम्मानित किया है एवं सरकार के अलावा मिले अन्य सम्मानों के बारे में कुछ बताएं ?
पं जगन्नाथ: हरियाणा सरकार ने अनेक बार सम्मानित किया है । चौ. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सहित पूर्व मुख्यमंत्रियों, चौ. बंशीलाल, चौ. देवीलाल, चौ. ओमप्रकाश चौटाला के कार्यकाल में एंव श्री बलराम जाखड़, चौ अजय चौटाला, श्री दीपेन्द्र हुड्डा के कर कमलों से भी मुझे सम्मानित होने का अवसर मिला है । एशियाड 82 के समय एक एल. आई.जी. फलैट अशोक विहार दिल्ली में, मेरे कार्यस्थल डी.डी.ए. ने सम्मान स्वरूप दिया । श्री साहब वर्मा, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार ने अपने कार्यकाल में दिल्ली सरकार की तरफ से तीन बार सम्मानित किया । श्री गुलाब सिंह सहरावत, उपायुक्त रोहतक ने एक किलो सौ ग्राम चांदी के डोगे से सम्मानित किया । गांव धराडू, भिवानी की पंचायत ने सोने का तमगा दे कर सम्मानित किया । गांव बापौड़ा, भिवानी की पंचायत ने 5100 रूपये व सोने की अंगूठी से दो बार सम्मानित किया । इसके अतिरिक्त भी असंख्य बार सम्मान मिले हैं। उल्लेखनीय बात यह भी है कि मुझे अपने चाहने वालों और संगीत के कार्यक्रमों से बहुत सम्मान व स्नेह मिला है । अक्सर जहां भी किसी संगीत के कार्यक्रम में मैं उपस्थित हूं तो – पहले मेरा सम्मान करते हैं, उसके बाद कार्यक्रम शुरू करते हैं ।

रोशन वर्माः वैसे तो हर कवि एवं रचनाकार के लिए अपनी प्रत्येक रचना संतान-तुल्य होती है । फिर भी किसी एक रचना का जिक्र करें, जिसका लोगों के अनुरोध् पर बार-बार गायन करना पड़ा हो ?
पं जगन्नाथ: जब पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्वर्गवास हुआ तो उनकी शवयात्रा में शामिल होने का अवसर मुझे भी मिला । वहां जो कुछ मैंने अपनी आंखों से देखा, उसको कविता का रूप दे दिया और जहां पर भी वह कविता एक बार सुनाई, वहां बार-बार उसकी फरमाइश आती रहती थी ।

रोशन वर्माः भारतीय समाज इस वक्त मंहगाई समेत कईं मोर्चों पर संकट झेल रहा है । एक सामान्य नागरिक के हालात के बारे में आप क्या महसूस करते हैं ?
पं जगन्नाथः मंहगाई एवं समसामयिक विषयों पर मेरी टिप्पणी महत्वपूर्ण नहीं है ।

रोशन वर्माः हरियाणा के लोकसाहित्य एवं लोकनाट्य के सन्दर्भ में आपको समकालीन कवि सूर्य पंडित जगन्नाथ के नाम से पुकारा जाये, तो क्या आप सहमत हैं ?
पं जगन्नाथ: मुझे मालिक ने, मेरी योग्यता से भी अधिक दे रखा है । मुझे और कुछ भी पाने की इच्छा नहीं हैं। परमात्मा खुश होकर जो कुछ देते हैं-उसको खुशी से स्वीकार करता हूं । मैं अपने आपको समकालिन कविसूर्य कहलाने के योग्य नहीं समझता हूं ।

रोशन वर्माः जैसा कि प. जगन्नाथ रचनावली का प्रकाशन हो चुका है । आपके सृजन कार्य पर शोध भी हो रहे हैं । क्या आपको मानदेय एवं रायल्टी भी प्राप्त हो रही है ?
पं जगन्नाथ: मेरी लिखी पुस्तक प. जगन्नाथ रचनावली का जब विमोचन हुआ तो उस समय महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने 11000 रूपये से सम्मानित किया था। इसके बाद उस पुस्तक पर मेरा कोई अधिकार नहीं । मैं रायल्टी वगैरह कुछ नहीं लेता ।

रोशन वर्मा: हरियाणवी रागनी या कविता के रचनाकर्म में किन छंदों एवं नियमों की पालना का होना जरूरी है ? नए लोगों को कोई सलाह ?
पं जगन्नाथ: इस प्रश्न का उत्तर इतने कम समय में नहीं समझाया जा सकता, यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है, सृजन की प्रक्रिया में आत्मिक अनुभव का होना बहुत जरूरी है ।

रोशन वर्माः आज के युवा जाति से बाहर जा कर शादी कर रहे हैं । पारिवारिक एवं सामाजिक ताना बाना बिखराव की ओर हैं । आपका कविमन क्या कहता है इस बारे में ?
पं जगन्नाथ: मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में रूचि नहीं रखता, क्योंकि यह किसी के वश की बात नहीं रह गई है, यह संसार है ही परिवर्तनशील ।

रोशन वर्माः किसी भी सम्मान से ज्यादा महत्वपूर्ण, एक लोक कलाकार के लिये मंच से दृष्टीगत जन समूह होता है या मंच पर मिला सम्मान ?
पं जगन्नाथ: मैंने मंच के माध्यम से पैसा कमाने को, कभी अपना उद्देश्य नहीं बनाया-केवल जनता का प्यार, मान सम्मान व वाह-वाही ही मेरी असल कमाई है ।

रोशन वर्माः पिछले दिनों हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा दिये गये सम्मान से बेशक आप संतुष्टी जाहिर करेंगे । मगर आपकी रचनाओं के मुल्यांकन एवं वरिष्ठता के लिहाज से, क्या यह सही सम्मान है ?
पं जगन्नाथ: मेरे मन में किसी के प्रति न तो कोई शिकायत है और न ही किसी से कोई मांग है । मुझे जो कुछ भी सम्मान में मिला व हरियाणा साहित्य अकादमी ने जो मेरा सम्मान किया, मैं उस से पूर्ण रूप से संतुष्ट हूं , सम्मान तो केवल सम्मान है । यह कभी छोटा या बड़ा नहीं हो सकता ।

रोशन वर्माः अकादमी की पुरस्कार वितरण एवं चयन प्रकिया में अनियमितताओं बारे कुछ वरिष्ठ लेखकों ने विरोध दर्ज करवाया, कि कुछ कम उम्र लोग जिनका न तो मुद्रित साहित्य उपलब्ध है और न ही राज्य की जनता उनसे/उनके काम से परिचित है, को ज्यादा वरिष्ठ सम्मान दिये गये, और वरिष्ठ लोगों का आकलन कम हुआ है । इस बारे आप क्या कहना चाहेंगे ?
पं जगन्नाथ: इस प्रश्न का उत्तर, आपके पिछले प्रश्न के अंतर्गत दे दिया गया है ।

रोशन वर्माः राजकिशन अगवानपुरिया ने आप द्वारा रंचित रागनियों एवं किस्सों को बड़ी खुबसुरती से स्वर दिया है अन्य किस गायक के काम ने आपको प्रभावित किया ?
पं जगन्नाथ: मेरे जितने भी शिष्य है, मैं सब को ही राजकिशन के समान समझता हूं ।

रोशन वर्माः राजकिशन से जुड़ी कोई घटना बताइये । वे कब आप के सानिध्य में आये ?
पं जगन्नाथः इस प्रश्न का उत्तर, देने में भी मैं अपने आपको असमर्थ समझता हूँ ।

मानव मूल्यों के अपसरण को अपने इस शब्द कर्म में उन्होंने करीब चार दशक पहले ही महसूस करा दिया था जो वर्तमान परिदृश्य में भी प्रासंगिक है…

बेशर्मी छाग्यी सारे कै, बिगड़या सबका दीन
आज मैं किस पै, करूं रै यकिन…

झुठे तेरे बाट तराजू झुठी खोल्यी तनै दुकान
झुठा सौदा बेचण लाग्या, नहीं असल का नाम निशान
झुठा बोल्लै कमती तोल्लै, आये गयां के काटै कान
झुठा लेखा जोखा देख्या, झुठी देख्यी तेरी बही
झुठे तू पकवान बणावै, झुठे बेच्चै दुध् दही
झुठा लेवा झुठा देवा, और बता के कसर रही
खान पान पहरान बदलगे बुद्धि हुई मलीन…

झुठी यारी, यार भी झुठे, झुठा करते कार व्यवहार
झुठे रिश्ते नाते रहग्ये, लोग दिखावा रहग्या प्यार
बीर मर्द का, मर्द बीर नै, कोए से नै ना ऐतबार
माया के नशे म्हं चूर फिरते हैं अभिमानी बोहत
बुगले आला दां राख्खैं सै, इसे देख्ये ज्ञानी बोहत
लेण देण नै कुछ ना धोरै, इसे देख्ये दानी बोहत
बड़े-बड़या ने मोह ले यैं तिन्नूं जर जोरू और जमीन…

दीखणे म्हं धर्म धारी, काम है चंडाल का
सिंह रूपी वस्त्र धारे, काम नहीं शाल का
पाखण्ड का सहारा लिया, हुकम कल्लु काल का
पलटया है जमाना, होया धर्म कर्म का बिल्कुल अंत
बीज तै बदल गये, कयाहें म्हं ना रहया तंत
वेद-पाठी पंडत कोन्या, टोहे तै ना मिलते संत
कायर-छत्री, निर्धन-बणिया, ब्राहमण विद्या हीन…

सत् पुरूषां की मर होग्यी, यो किसा जमाना आग्या रै
वेद व्यास जी कहया करैं थे, वो हे रकाना आग्या रै
गुरू रामभगत की कृपा तै, मन्नैं कुछ कुछ गाणा आग्या रै
बालकपण म्हं मौज उड़ाई, खाये खेल्ले बोहत घणे
गाया और बजाया, देख्खे मेले ठेले बोहत घणे
झुठे यार भतेरे देख्खे, झुठे चेल्ले बोहत घणे
जगन्नाथ यों सच्चे चेल्ले, हों सै दो या तीन…

(रोशन वर्मा ने ये संवाद देस हरियाणा पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा था, लेकिन अभी तक हम इसे प्रकाशित नहीं कर पाए थे। आभार- हरियाणाखास का कि उन्होंने प्रकाशित किया और हमें इस अवसर पर ये सामग्री उपलब्ध रही)

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