गणतंत्र दिवस पर दिखाई जाने वाली झांकियों और लोक सम्पर्क विभाग द्वारा प्रस्तुत हरियाणा की स्टीरियो टाईप छवि से हटकर दैनंदिन जीवन की सकारात्मक या नकारात्मक बारीकियों के माध्यम से ही हरियाणा के भविष्य की वस्तुपरक तस्वीर बनाई जा सकती है।
एक घटना का जिक्र करते हुए चर्चा को विस्तार देने का प्रयास रहेगा। पानीपत से समालखा के लिए हरियाणा रोडवेज की बस में एक ग्रामीण प्रौढा अपना सामान रखते हुए चढ़ गई। कन्डक्टर ने उसे अपने जाने-पहचाने लहजे में सामान छत पर रखने को कहा। महिला की इस दलील को कि उसे थोड़ी दूर के लिए सामान चढ़ाना और उतारना मुश्किल रहेगा, बदतमीजी के साथ अनसुना कर दिया। उस महिला ने अपना सामान नीचे उतारा और किसी को पैसे देकर छत पर रखवाया। थोड़ी देर में समालखां पहुंचने पर उसने एक युवक से सामान उतारने के लिए सहायता माँगी तो चिर परिचित शैली में जवाब मिला, ‘मैं के तेरा नौकर लाग रहा सूं’ कन्डक्टर का भी जवाब ऐसा ही था। बाकी सवारियाँ इत्मीनान से इस तमाशे का आनंद ले रही थी। ऐसे में सूट बूट पहने एक पंजाबी सज्जन ने पूरे सम्मान के साथ महिला का सामान उतारने में सहायता की। उसी बस में बैठे हुए एक रिटायर्ड फौजी अफसर कर्नल बी एस त्यागी को इस घटना ने मानसिक रूप से झकझोर कर रख दिया। फलस्वरूप, कर्नल त्यागी ने इस घटना का जिक्र करते हुए एक पुस्तक लिखी ‘हिस्ट्री आफ हरियाणा’ जिसमें उन्होंने हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत और पिछड़ेपन की जड़ों को ढूंढने का प्रयास किया।
गणतंत्र दिवस पर दिखाई जाने वाली झांकियों और लोक सम्पर्क विभाग द्वारा प्रस्तुत हरियाणा की स्टीरियो टाईप छवि से हटकर दैनंदिन जीवन की सकारात्मक या नकारात्मक बारीकियों के माध्यम से ही हरियाणा के भविष्य की वस्तुपरक तस्वीर बनाई जा सकती है। तस्वीर आशावादी नजरिये से ही बनाई जा रही है, इसलिए इस तस्वीर में सुन्दर रंग, मीनाकारी और बेलबूटे तो होंगे ही, लेकिन ये भी जरुरी है कि उस आशावाद में संभावनाओं का समावेश भी हो। ताकि यह महज कल्पनालोक की उड़ान ही बनकर न रह जाए। खींचते हैं एक ऐसी तस्वीर जिसमें हमारे अपने हरियाणा की आने वाले दस वर्षों की झलकी दिखाई दे।
अगर सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करते हुए सामाजिक-राजनैतिक पहलुओं में लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं को लागू किया जाए तो हरियाणवी समाज में चमत्कारिक परिवर्तन की संभावनाओं के बीज मौजूद है।
- हुँकार और गर्जना की भाषा भूतकाल की वस्तु ही रह पाएगी। हरियाणवी समाज हरियाणा में रहने वाले तमाम बाशिंदों का है। न्याय, समता और भाईचारे के सुर होंगे हमारे दैनिक आचरण का अभिन्न हिस्सा। सामाजिक न्याय के प्रति संवेदनशीलता बढ़ेगी और सहनशील वातावरण में आपसी मेलजोल की भावना से निपटाए जाएंगे सामाजिक मुद्दे।
- लिंग अनुपात करना होगा बराबर बराबर। सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इतने निम्न लिंग अनुपात की कालिख हरियाणवी समाज धोकर रहेगा। बेहतर लिंग अनुपात वाले इलाक़ों के अनुभवों से सबक लेते हुए हरियाणवी समाज को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। लड़कियां हर क्षेत्र में अव्वल आ रहीं हैं, ये देखने के बाद ये समझ तो बनेगी ही कि इन्हें भी जिन्दा रहने, फलने- फूलने, पढऩे-लिखने, खेलने-कूदने का पूरा हक है।
- समान शिक्षा, बेहतर शिक्षा और सभी के लिए शिक्षा उपलब्ध करानी होगी। शिक्षा के बाज़ारीकरण और मुनाफाखोरी के सिलसिले को विराम दिया जाएगा। बेहतर और समान शिक्षा के लिए पूरा हरयाणवी समाज एकजुटता दिखाते हुए इसे मूलभूत अधिकार के रूप में स्थापित कर पाएगा।
- सबके लिए रोजगार की संभावनाओं को पैदा करते हुए ये समझ बनानी होगी कि ये संघर्ष आपसी सिर फुटौव्वल से सफल नहीं हो पायेगा, बल्कि अधिकतम रोजगार पैदा करने की नीतियां लागू की जाएंगी।
- कृषि घाटे का सौदा न होकर एक सतत रोजगार और पोषण का माध्यम बनेगी। फसलों के दाम इतने मिलेंगे कि हर किसान को कम से कम न्यूनतम वेतन की गारन्टी हो। भूमिहीन परिवारों को कम से कम 300 दिनों के रोजगार की गारंटी सरकार की तरफ से करनी होगी।
- संविधान संगत निर्वाचित पंचायतें बिना गैर-सवैंधानिक पंचायतों की दखलंदाजी के ग्रामसभा के माध्यम से समुचित निर्णय लेकर काम करेगी। निर्णय प्रक्रिया में जनता की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होगी जिसमें महिलाएं, अल्पसंख्यक, सामाजिक रूप से उपेक्षित समूहों की भागीदारी अनिवार्य और प्रभावी होगी।
- ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने के लिए छोटे पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहित करते हुए ग्रामीण औद्योगिकरण को बढ़ावा देना होगा। सहकारी और सामुदायिक उत्पादक समितियों के गठन को समर्थन और सुविधाजनक बनाया जाएगा। परिस्थितयों के अनुकूल प्राथमिक क्षेत्र की आजीविका जैसे कृषि, बागवानी, पशुपालन, डेयरी और वानिकी पर विशेष फोकस करना होगा।
- फसल बीमा को बैंक ऋण से ना जोड़ कर सभी के लिए मान्य करना होगा जिसका 75 प्रतिशत प्रीमियम सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
- विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से जैविक खेती को पहल देते हुए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को चरणबद्ध तरीके से बाहर का रास्ता दिखाना होगा।
- अनुपस्थित भूस्वामियों और गैर-कृषकों के स्वामित्व को सीमित करते हुए यह अनिवार्य करना होगा कि कोई भूमि बेनामी ना रहे। अधिशेष और अन्य भूमि का भूमिहीन परिवारों में बँटवारा किया जायेगा।
- वैधानिक शक्तियों से लैस एक ‘किसान आय आयोग’ की स्थापना करनी होगी जो किसानों की आय की रक्षा और निगरानी करेगा।
- वंचित समुदायों की निष्पक्ष पहचान के लिए ‘समान अवसर आयोग’ की स्थापना करनी होगी जो राज्य की नीतियों की सामाजिक लेखा परीक्षा (सोशल ऑडिट) और सकारात्मक प्रणाली की स्थापना करे।
- सामाजिक न्याय की नीतियों में वर्गीकृत असमानता (गैर-पिछड़े बनाम पिछड़े की बजाए कम और अधिक पिछड़े) और बहुवर्गीय असमानता ( लिंग, वर्ग, जाति आधारित) को रेखांकित करना होगा और कई प्रकार की वंचनाओं के शिकार समूहों के लिए (जैसे गरीब, ग्रामीण, दलित लड़की) विशेष प्रावधान करने होंगे।
- जाति आधारित असमानता की समाप्ति के लिए विभिन्न जातियों की संख्या और उनकी शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति पर व्यवस्थित जानकारी इकट्ठी करके वंचितों के लिए एक बहुआयामी सूचकांक विकसित करना होगा जिसमे जाति के साथ साथ लिंग, ग्रामीण/शहरी, परिवार की आर्थिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि आदि के अनुसार अभाव अंकों की गणना करते हुए वेटेज निर्धारित किया जायेगा।
- स्थानीय ज्ञान और भाषा को प्रोत्साहित करना होगा। हमारी विरासत और संस्कृति के विकास और उसके प्रति सम्मान की भावना को प्रोत्साहित किया जायेगा।
- जाति आधारित और परिवार आधारित राजनीति को खत्म करना होगा जो सभी के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को प्रोत्साहित करके ही संभव है। चुनाव और धनबल के आपसी रिश्ते को वैधानिक प्रावधानों से कमजोर किया जायेगा।
आने वाले दस वर्षों में हरियाणा राज्य की निखरी और प्रगतिशील तस्वीर बनाने के लिए कितने ही ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता पड़ेगी जिनका जिक्र यहां न भी आया हो। अगर सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करते हुए सामाजिक-राजनैतिक पहलुओं में लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं को लागू किया जाए तो हरियाणवी समाज में चमत्कारिक परिवर्तन की संभावनाओं के बीज मौजूद है।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 124