ग़ज़ल
बहुत मिले भड़कीले लोग
लाल, गुलाबी, पीले लोग
हम ही मोम सरीखे थे
सभी मिले पथरीले लोग
पास आकर डस लेते हैं
ऐसे हैं ज़हरीले लोग
भीतर आग है नफ़रत की
बाहर से बर्फ़ीले लोग
दामन छलनी करते हैं
हैं ये अजब कंटीले लोग
कठिन राह में जीवन
ख़ाक चलेंगे ढीले लोग
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 68