डाब के खेत – विपिन चौधरी

हरियाणवी कविता


डाब कै म्हारे खेतां म्हं
मूंग, मोठ लहरावे सै
काचर, सिरटे और मतीरे
धापली कै मन भावै सै
रै देखो टिब्बे तळै क्यूकर झूमी बाजरी रै।
बरसे सामण अर भादों
मुल्की बालू रेत रै,
बणठण चाली तीज मनावण
टिब्बे भाजी लाल तीज रैे
रै देखो पींग चढ़ावै बिंदणी रै।
होळी आई धूम मचान्दी
गूंजें फाग धमाल रैे,
भे-भे कीं मारे कोरड़े
देवर करे बेहाल रै,
रै देखो होळी म्हं नाचरी क्यूकर गोरी बेल्हाज रै।
जोहड़ी में बोलै तोते
बागां बोलै मोर रै,
पनघट चाली बिंदणी
कर सोळां सिंगार रैे,
रै देखो पणघट पर बाज रही है रमझोल रै।
खावंद कै आवण की बेल्या
चिड़ी नहावै रेत रैे,
आज बटेऊ आवैगा
संदेश देवै काग रै
रै देखो डोळी पै बोल रह्या कागला रै
डाब कै म्हारे खेत म्हं
मूंग, मोठ लहरावे रैे..

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 109

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