हरियाणवी कविता
जी करै सै आज
दादी की तिजोरी मैं तै
काढ़ ल्याऊं
सिर की सार,धूमर अर डांडे
नाक की नाथ, पोलरा
कान की बुजली, कोकरू अर डांडीये
गळे की-नौलड़ी,गळसरी, गंठी, जोई,
झालरा, हंसली, तबीज अर पतरी,
हाथ के कडूले,छन पछेली, टड्डे अर हथफूल
कमर का नाड़ा अर तागड़ी,
पैरां की झांझण, कड़ी, छळकड़े,
गीटीयां आले,पाती, नेवरी अर रमझोल
अर पहर ओढ़ कै नाचूं
आज सांझ नै साथण की बारात म्हं
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 109