कविता
एक लड़की
मैनें खिड़की से बाहर झांककर देखा।
लड़की
निवृत हो रही थी।
सैंकडों आंखें जम गई उस पर,
पर वो बैठी रही।
कोई चिल्ला के कुछ कह रहा था ,
तो कोई दुबकी नजरों से देख रहा था ।
संवेदनाएं खत्म हो चुकी थी उसकी ,
या संवेदनावश ही बैठी रही?
बेहया थी वो लड़की, या हया की मारे ही,
बैठी रही वो लड़की
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (नवम्बर 2016 से फरवरी 2017, अंक-8-9), पेज- 40