कविता
मजदूर
हाट पर खड़ा मांस का जिन्स
ठेकेदार
आंखों में तराजू लिए
इस मांस का वजन लेता है
और कीमत लगाता है एक दिन की
उस दिन वह मांस
ठेकेदार का कहा मानेगा
पिसेगा सीमेन्ट कंक्रीट के ढेर में
और शाम को
खुद को समेटता घर लौटेगा
उस शाम
उसकी पत्नी, बच्चे और वह खुद
रोटी खाकर
जश्न मनाएंगे।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर, 2016) पेज-34