मंगत राम शास्त्री
देशां में सुण्या देश अनोखा वीर देश हरियाणा है।
मैं टोहूं वो हरियाणा जित दूध-दही का खाणा है।।
था हरियाणा हिन्दू-मुस्लिम मेलजोल की कहाणी का
पीर-फकीरों संतों की गूंजी यहां निर्मलवाणी का
उर्दू-पुरबी-पंजाबी-बृज-बागड़ी-बांगरू बाणी का
जमना घाघर बीच ठेठ तहजीब की फिजा पुराणी का
आज दंगे हों जात-धर्म पै नफरत का ताणा-बाणा है।
पहलम दूध बिना पैसे भी आपस में थ्याज्या करता
गऊ-भैंस-बकरी-भेड़ों का रेवड़ चर आज्या करता
सस्ते में होज्या था गुजारा हिल्ला भी पाज्या करता
गरीब आदमी भी डंगवारा कर काम चलाज्या करता
आज डंगर की कीमत बढ़ग्यी सस्ता मनुष निमाणा है।
पहलम तै ज्यादा उत्पादन बढ़्या देश में आज दिखे
अन्न धन के भण्डार भरे होया आत्मनिर्भर राज दिखे
बेशक होया विकास मगर रूजगारहीन बेलिहाज दिखे
क्यों के सबके हिस्से में नहीं आता दूध-अनाज दिखे
आम आदमी नै तो मुश्किल होर्या काम चलाणा है।
फौज बहादुरी के किस्से भी खूब सुणे हरियाणे के
जय जवान और जय किसान के नारे जोश जगाणे के
मरदां के संग महिलाओं के जुट कै खेत कमाण के
लेकिन आज सुणो किस्से सरेआम कत्ल करवाणे के
बेट्टी घटैं रोज मात का गर्भ बण्या शमशाणा है।
कुछ गाम्मां में भी शहरों जैसी चकाचौंध तो फैली है
एक हिस्सा तो गाम्मां का भी होया धनी और बैल्ली है।
पर मजदूर किसानों को तो होवै बहोत सी कैली है
आड़ै औरत और दलित विरोधी बहती हवा विषैली है
कहै मंगतराम कर्ज में डूब्या ज्यादातर किरसाणा है।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त, 2017, अंक 12) पेज -50