ये सिरफिरों की भीड़ है या संगठित गिरोह – डा. सुभाष चंद्र

सुभाष चंद्र 

पिछले दो महीनों में 30 से ज्यादा लोग भीड़ हिंसा का शिकार हो चुके हैं। यह किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि 14 राज्यों तक इसका विस्तार है। ये ‘बाहरी’ लोग करार देकर व उनसे सुरक्षा के डर में मारे गए हैं अथवा साम्प्रदायिक आग्रहों के कारण मारे गए हैं। कथित भीड़-हत्या की घटनाओं का राष्ट्रीय कनेक्शन क्या है। भारत में एकदम बर्बरता, हिंसा का विस्फोट हो रहा है और भारत लोकतंत्र के स्थान पर भीड़तंत्र में बदल रहा है।

हरियाणा के दुलीना में 2003 में पाँच लोगों को मार दिया गया था। जिसमें तीन दलित और दो मुसलिम थे। तब इसे मिस्टेकन आईडंटिटी कहकर पल्ला झाड़ लिया था। यदा-कदा भीड़ द्वारा हत्या करने की घटनाएं सुनने में आती रही हैं, लेकिन अब ये हर रोज की सुर्खियां बनने लगी हैं। अब यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।

   इंडिया टुडे से साभार

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता में खंडपीठ ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, ‘भीड़तंत्र की भयावह गतिविधियों को नया चलन नहीं बनने दिया जा सकता, इनसे सख्ती से निपटने की जरूरत है.’ उन्होंने यह भी कहा कि राज्य ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। इस अपराध के लिए अलग से कानून बनाने को कहा है, जो समस्या की गंभीरता की और संकेत करता है।

बाहरी व्यक्ति को अपने लिए खतरा मानकर उसकी हत्या कर देना और किसी विशेष समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर हत्या करने के दो तरीके सामने आए हैं, लेकिन स्वामी अग्निवेश न तो बाहरी थे और न ही दूसरे समुदाय से संबंधित, बल्कि वे तो गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं और आर्य समाजी हैं। उन पर हिंसा ने भीड़ तंत्र के वास्तविक चेहरे व लक्ष्य को उद्घाटित किया है। स्वामी अग्निवेश पर भीड़ ने हमला कर दिया इससे कई सवाल दिमाग में उपजते हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं कि कुछ सिरफिरे लोगों ने हिंसा की है। सोचने की बात है कि ये चंद सिरफिरे लोगों की भीड़ है अथवा संगठित गिरोह जो भीड़ के रूप में आते हैं। ये भीड़ मनोविज्ञान नहीं यह एक टारगेटिड़ व राजनीतिक हिंसा है। असल में तो यह आतंकवादी कार्रवाई ही है। भीड़ का मुखौटा लगाकर गुजरात, मुंबई, दिल्ली समेत देश के अनेक शहर राख में तबदील होते रहे हैं। भीड़ का चेहरा लगाकर ही आरक्षण की आग में हरियाणा जल जाता है।

कहा जाता है कि भीड़ में दिमाग नहीं होता अच्छे बुरे की पहचान करने का लेकिन यह भीड़ बड़ी सयानी व हाईटेक है। जो अच्छी तरह पहचानती अपने निशाने को। भीड़ तो बचाव का कवच है। भीड़ की पहचान नहीं है इसलिए अपने बचने का रास्ता है।चिंता की बात ये है कि भीड़-हिंसा के अपराधियों को अब नायकों की तरह देखा जाने लगा है। सत्ता तंत्र से जुड़े लोग इनके स्वागत-सम्मान में फूल-मालाएं पहनाते हुए यत्र-तत्र दिखाई देंगे।

इस बात से पर्दा उठ रहा है कि यह हिंदू बनाम मुसलिम का विवाद नहीं है, बल्कि यह कट्टरता बनाम उदारता का है। साम्प्रदायिक राजनीति का वास्तविक चरित्र ही यही है कि वह वैचारिक तौर पर तो एक धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोगों को अपना शत्रु नं. एक घोषित करता है, लेकिन वास्तव में अपने धर्म की उदार परंपराओं और उनको मानने वालों पर ही निशाना साधता है।

वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनको मालूम है कि सता प्राप्त करने और सत्ता प्राप्त करके अपने अंतिम मंसूबों को अंजाम देने में अल्पसंख्यक कोई रोड़ा नहीं हैं, बल्कि अपने धर्म के उदारपंथी लोग व उदार-सहिष्णु विरासत ही सबसे बड़ी बाधाएं हैं। अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाकर वे बहुसंख्यकों के एक हिस्से से समर्थन जुटाते हैं और अपने धर्म के लोगों को निशाना बनाते हैं।

भारत के समाज में जहां इतनी तरह की विचारधाराएं निरंतर फलती-फूलती रही वहां इस तरह के मंजर विचलित करने वाले हैं।उन सबके लिए खतरे की घंटी है जो विवेक, तर्क में विश्वास करते हैं। लेकिन विडम्बना यही कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति का दावा करने वाली विभिन्न धाराएं इसे कुछ सिरफिरों की करतूत मानकर इसकी गंभीरता को नहीं समझती। कथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां अपने अपने राजनीतिक समीकरणों और फायदे-नुक्सान के हिसाब से बयानबाजी व कार्रवाही करेंगी और अपना राजनीतिक गणित में मशगूल रहेंगी। क्या कभी इसके खिलाफ ऐसा आंदोलन कर पाएंगी कि पूरे देश को झिझोंड़ कर रख दे।

हिटलर काल के जर्मन पादरी पास्टएर निमोलर, की वो कविता इस परिस्थिति को बेहतर ढंग से अभिव्यक्ति करती है।

”पहले वे आए यहूदियों के लिए और मैं कुछ नहीं बोला,
क्योंकि मैं यहू‍दी नहीं था
फिर वे आए कम्यूनिस्टों के लिए और मैं कुछ नहीं बोला,
क्योंकि मैं कम्यूनिस्‍ट नही था
फिर वे आए मजदूरों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं मजदूर नही था
फिर वे आए मेरे लिए,
और कोई नहीं बचा था,
जो मेरे लिए बोलता..।”

6 thoughts on “ये सिरफिरों की भीड़ है या संगठित गिरोह – डा. सुभाष चंद्र

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    Bajrang says:

    सुभाष जी ने अपने लेख ‘ये सिरफिरों की भीड़ है या संगठित गिरोह’ में बढ़ती हिंसा और धर्मोन्माद को लेकर बहुत सटीक विश्लेषण किया है।
    यह बहुत जरूरी है कि हत्याओं के इस सिलसिले को समझा जाए और उसका मजबूत प्रतिरोध तैयार किया जाए।

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    Roshan Mastana says:

    मोब लीचिंग एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।

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    Anonymous says:

    ये सिलसिला आने वाले समय में बढने वाला है. जैसे जैसे चुनाव नजदिक आएगा..

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    surinder pal Singh says:

    मज़े की बात है कि स्वामी अग्निवेश हिन्दू विरोधी है और पूरा आर्यसमाज हिंदूवाद का अभिन्न अंग है।

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    Anonymous says:

    चौकसी के तौर पे यह भी जरूरी है कि राजनीतिक दल मशीनी वोटिग का भी विरोध करे।

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