आलेख
अर्थशास्त्री, राजनेता, मंत्री लेखक, संविधान निर्माता आदि सभी रूपों और परिस्थितियों में डा.आम्बेडकर ने किसान हित की अनदेखी नहीं की। वे समय-समय पर सभी रूपों में किसानों के कल्याण हेतु वे समर्पित रहे। हर वो व्यक्ति जिसमें जरा सी भी बौद्धिक ईमानदारी है डॉ. आम्बेडकर को किसान हितैषी नेता के रूप में मानेगा। कृषि क्षेत्र में उनके चिंतन व कार्यों को प्रस्तुत करता विनोद कुमार का लेख प्रस्तुत है-सं.
किसानों समस्याएं एवं आत्म हत्याएं आज एक गम्भीर विषय बन चुका है। जो किसान कृषि क्षेत्र को ही प्रभावित नहीं करता बल्कि देश की अर्थव्यवस्था व सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) को भी बहुत हद तक प्रभावित करता है। इस विषय को डॉ. आम्बेडकर जैसे महान अर्थशास्त्री ने अपने सार्वजनिक जीवन के आरंभिक दिनों में ही जान लिया था।
प्राचीन भारत के इतिहास से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल तक के इतिहास का विवेचन से ज्ञात होता है कि कृषि, कृषि उपज व कृषि – कर्म किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था के आधार स्तम्भ रहे है। किसानों की सहायता का भारतीय इतिहास में सबसे पहला अभिलेखीय प्रमाण महान मौर्य सम्राट अशोक रूम्मिनदेह लघु स्तम्भ लेख से मिलता है। इसके अनुसार अशोक महान ने बुद्ध का जन्म स्थान होने के कारण यहां के किसानों का राजस्व कर द भाग से घटाकर ? भाग कर दिया था। (1) इसके बाद मध्यकाल में मुहम्मद-बिन-तुगलक ने ‘अमीर-ए-कोटी’ नाम से अलग से कृषि विभाग की स्थापना की थी। (2) आधुनिक भारत के इतिहास के काल खंड में अंग्रेजों ने भी कृषि के महत्व को समझा। अंग्रेजों ने तो कृषि कर्म को मात्र कृषि कर्म ही नहीं रखा उन्होंने इसका स्वरूप बदलकर इसे व्यापार-कर्म में तब्दील कर दिया अर्थात कृषि का वाणिज्य करण कर दिया। (3) इस तरह कृषि का वाणिज्य करण करने से व्यापारी व शासकों को बहुत ही लाभ मिले और किसानों की दुर्दशा दिन – प्रतिदिन बढऩे लगी। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो किसान पहले अपने लिए कृषि करता था अब वह व्यापारियों के लिए कृषि करने लगा। किसान किसान को व उपज को अब मध्यकाल (रॉ मैटेरियल) माना जाने लगा। हालांकि वह किसान था तो मानव ही परन्तु कृषि के व्यापारी करण ने उससे मानव का हक भी छीन लिया। अब इन किसानों की समस्याएं अगर कोई समझ या सुलझा सकता था तो वह बहुत बड़ा मानवतावादी व महान अर्थशास्त्री होना चाहिए था। डॉ. आम्बेडकर ये दोनों ही थे। इस बात पर किसी भी जानकार व ज्ञानी आदमी को कोई शक नहीं हो सकता। ये दोनों गुण ही उसे किसानों की समस्याओं की तरफ खींच ले गए। यह बात अलग है कि उन्हें सबसे पहले आन्दोलन अछूतों की हालत तो किसानों की हालत से भी गयी गुजरी थी। समाज- व्यवस्था ने उनके मानव होने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।
किसानों के शोषण की समस्या पर स्वतंत्रता पूर्व काल में कुछ स्थानों पर किसान संगठित होकर प्रतिकार कर रहे थे। ई. सन 1857 से 1921 तक के काल में किसान आन्दोलन का विकास हुआ। राजनीतिक स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ-साथ ही किसान आन्दोलन भी चल रहा था क्योंकि किसानों ने देखा कि राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन चलाने वाले नेता उनकी समस्याओं की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं तो किसानों ने 1935 में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना की (4) जिसका नेतृत्व स्वामी सहजानन्द सरस्वती किया। ठीक इसी सन (1935) में ही भारत सरकार अधिनियम भी पारित हो चुका था। उसी अधिनियम के तहत 1937 में पहली बार आम चुनाव हुए। अब सभी समस्याओं का समाधान विधानमंडलों में अपने प्रतिनिधि भेजकर उनके माध्यम से कानून बनवाकर, योजनाएं,नीतियां बनवाकर होना था।
नये संविधान के अनुसार विधानमंडलों में भाग लेने के लिए चुनाव जीतना जरूरी था। इसलिए डॉ. आम्बेडकर ने 15 अगस्त 1936 को ‘स्वतंत्र मजदूर पार्टी’ की स्थापना की। (5) अपनी नयी निर्मित पार्टी का घोषणा में उन्होंने बहुत बड़े उद्देश्यों को रखा। जिनमें मुख्य रूप से, जमीनों के पट्टाधारियों का शोषण से संरक्षण करना, मजदूरों की भलाई के लिए कानून बनाना इत्यादि थे। (6) पार्टी के घोषणा पत्र व उद्देश्यों के विवेचना प्रान्त हम कह सकते हैं कि ये डॉ. आम्बेडकर के अर्थशास्त्रीय व वकीली दिमाग की उपज है। स्वतंत्र मजदूर दल की स्थापना के माध्यम से ही उन्होंने कृषि, मजदूरों और किसानों की समस्याओं को जनता तथा सरकार के सामने रखने के प्रयास किए। फरवरी 1937 में हुए प्रथम आम चुनावों में डॉ. आम्बेडकर के दल को बड़ी जीत हासिल हुई उसके 17 में से 15 उम्मीदवार चुनकर आए। (7) और पार्टी बम्बई विधानमंडल में प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी। 30-05-1937 को स्वतंत्र मजदूर दल की जीत की खुशी में एक कार्यक्रम रखा गया था उसमें डॉ. आम्बेडकर ने कहा कि ‘हमारा स्वतंत्र मजदूर दल किसानों और मजदूरों पर अमीरों की और से होने वाले अन्याय को समाप्त करने के लिए स्थापित हुआ है। (8)
बम्बई विधानमंडल में किसानों के हित सम्बन्धी संघर्ष
डॉ. आम्बेडकर ने कर्ज के बोझ में डूबे किसानों और मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने के लिए विधेयक बम्बई विधानसभा में रखा और सरकार की नीतियों पूंजीपतियों के बारे में उन्होंने सरकार को चेताया और कहा कि ‘सरकार की नीति पूंजीपतियों के अनुकूल है। मुंबई प्रांत के गवर्नर ने कर का बोझ लादकर किसानों की दशा और भी खराब कर दी है। हम इस नीति का विरोध करते हैं’। (9)
डॉ. आम्बेडकर ने किसानों को चेताया। वे गांव-गांव गए। जगह-जगह संबोधन दिए। किसानों के जत्थे उनके साथ बम्बई आने लगे थे। बम्बई के किसानों से बम्बई पट गया था आगे-आगे किसान जत्थे और पीछे-पीछे सेना सेना मौन और किसान जोश में उछलते हुए नारे लगा रहे थे कि ‘डॉ. आम्बेडकर का बिल पास करो’ ‘खोती सिस्टम मुर्दाबाद’ आदि-आदि। डॉ. आम्बेडकर के साथ क्रान्तिकारी नेताओं का प्रतिनिधित्व मण्डल, मुख्यमंत्री को अपना मांग-पत्र देने पहुंचा। (10) डॉ. आम्बेडकर ने किसान ने किसान हित के लिए निम्न मांग पेश की – – – – –
इस प्रकार डॉ. आम्बेडकर मजदूरों और किसानों के लिए जबर्दस्त संघर्ष करते रहे। (11)
उपरोक्त किसानों की मांगों के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. आम्बेडकर सच्चे अर्थों में किसान हितैषी प्रतीत होते हैं। क्योंकि सड़क से लेकर विधानमंडल तक किसानों की समस्याओं के लिए संघर्ष किया।
साहुकारी नियंत्रण विधेयक
किसानों को अपने कठिन दिनों में साहूकारों से कर्ज लेना होता था। साहूकार नियंत्रित सूद लगाकर किसानों की मेहनत का अधिक हिस्सा स्वयं ही हड़प लेते थे और किसान कंगाल हो जाता था इस पर नियंत्रण रखने हेतु डॉ. आम्बेडकर ने 1937 में साहुकारी नियंत्रण विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया। जिसमें किसानों के हित के लिए निम्न उपाय सुझाए गए थे –
किसानों के हित के लिए इस प्रकार के कानून बनवाने की विचार किसी डॉ. आम्बेडकर जैसे जन-अर्थशास्त्री के दिमाग में ही आ सकते हैं।
ठेका प्रथा नष्ट करने सम्बन्धी विधेयक
17 सितंबर 1937 को डॉ. आम्बेडकर ठेका प्रथा (खोती प्रथा) को नष्ट करने वाला विधेयक बम्बई विधानसभा में रखा जमींदारों द्वारा होने वाला किसानों का शोषण, जीवन का मालिकाना हक छीनने की जमींदारों की प्रवृति, इत्यादि से किसानों का शोषण होता था। 1864 से ही सरकार जमींदारों के अधिकारों को सीमित करने का प्रयत्न कर रही थी फिर भी कानून को ताक पर रखकर खेत मालिक किसानों का मनमाना शोषण कर रहे थे। जिससे मालिकों और किसानों में अक्सर मारपीट होती रहती थी और कत्ल भी होते थे। 1934 में प्रसिद्ध ‘उदेरी’ (अमरावती जिले में एक तालुका) मामले में तबीयत ठीक न होने पर भी डॉ. आम्बेडकर ने उच्च न्यायालय में किसानों के समर्थन में खड़े होकर दलीलें दी और निचली अदालत में दी गई सजा को कम करने में सफल हुए थे। (13) इतना ही नहीं खेत मालिकों द्वारा किसानों पर जो जोर – जबरदस्ती एवं अत्याचार होता था, उससे संबंधित समाचार डॉ. आम्बेडकर ने खुद के द्वारा संचालित पत्र ‘जनता’ साप्ताहिक में भी छापे। अन्य दलों की नीति जमींदार समर्थक होने से डॉ. आम्बेडकर उसकी निंदा करते थे।
किसानों को संगठित करने का प्रयत्न
1 जनवरी 1938 को दोपाली में खेती की वतन पद्धति समाप्त करने के लिए रघुनाथ धोडिंबा खांम्बे की अध्यक्षता में तिल्लौरी किसानों की परिषद् आयोजित की गयी। इस परिषद् में डॉ आम्बेडकर ने पार्टी के सदस्य अनन्तराव चित्रे, सुरवा नाना टिपणीस को भेजा था। डॉ. आम्बेडकर के इन सहयोगियों के भाषणों ने सभी को बहुत प्रभावित किया और उन्हीं के कारण किसानों को जमींदारों के अत्याचार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की प्रेरणा मिली। इस संबंध में उनके व्यक्तियों को गैर कानूनी करार देकर उन पर मुकदमे दाखिल किए गए। उस समय न्यायालय में डॉ. आम्बेडकर ने खड़े होकर उनके पक्ष में दलीलें दी थी। (14) प्रसिद्ध वकील डॉ. आम्बेडकर अच्छी तरह समझ रहे थे कि किसान हितों की बात करना तत्कालीन सरकारों व साहूकारों, जमींदारों की नजर में गुनाह है लेकिन फिर भी वो डरे नहीं। एक सच्चे किसान हितैषी के रूप में डॉ. आम्बेडकर बड़े से बड़ा खतरा उठाकर किसी से भी लडऩे को तैयार थे।
डॉ. आम्बेडकर के नेतृत्व में किसान मोर्चा
10 जनवरी 1938 को मुंबई में डॉ. आम्बेडकर ने स्वतंत्र मजदूर दल के और से 20 हजार किसानों का मोर्चा आजाद मैदान से कौंसिल हाल तक आयोजित किया था। इसके माध्यम से डॉ. आम्बेडकर ने निम्न बात सरकार के सामने रखी। वार्षिक 75 रुपए कर देने वाले या कम कर देने वाले किसानों का कर तत्काल 50 प्रतिशत कम करना चाहिए। खोती और मुआवजे के साथ बन्द करने के लिए शीघ्र ही कानून बनना चाहिए। तीन वर्ष तक जमीन जोतने वाले कब्जे को स्थायी कब्जेदार मानना चाहिए। सभी गांव में मुक्त चारागाह होने चाहिए। ‘कर्ज मुक्ति कानून’ लागू होने तक कर्ज की वसूली स्थगित होनी चाहिए बंधुआ मजदूर प्रथा को कानूनन अपराध घोषित किया जाना चाहिए। सभी बिन जोती जमीन मजदूरों में बांट देनी चाहिए। इस प्रकार की विभिन्न मांगों को तेरह तात्कालिक मांगों में रखा गया था सभी प्रौढ़-स्त्री पुरुषों को मताधिकार मिलना चाहिए। इत्यादि इस प्रकार की मांगें किसानों के मोर्चे में रखी गयी थी। (15)
किसान हित में स्वतन्त्र मजदूर दल का इतना प्रभाव था कि वल्लभ भाई पटेल ने प्रांतीय मंत्रिमंडल गठित होने के उपलक्ष्य में पूणे के शनिवारवाड़ा के सामने जो भाषण दिया था उसमें उन्होंने कहा कि – ‘मुम्बई असेम्बली में अलग-अलग दल है उनमें डॉ. आम्बेडकर द्वारा स्थापित स्वतन्त्र मजदूर दल अत्यंत महत्वपूर्ण है। (16)
मंत्री के रूप में डॉ. आम्बेडकर के किसान हित के कार्य
डॉ. आम्बेडकर 1 जुलाई 1942 से 10 सितंबर 1946 तक वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर रहे। उस समय के दो वायसरायों ने उनकी प्रशंसा में इस प्रकार लिखा – –
लार्ड लिनलिथगो- डॉ. आम्बेडकर योग्य हैं। वह साहसी है। (17)
लार्ड वेवल – डॉ. आम्बेडकर शुद्ध ह्रदय है, वह ईमानदार और शूरवीर है। (18)
डॉ. आम्बेडकर ने अर्थव्यवस्था सम्बन्धी विचारों को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया ‘दोषपूर्ण राजनीतिक अर्थनीति अपराध की जनक है – थॉमस आनरलड’, भारत में अत्यधिक कृषि का खतरा है। सर हैनरी कौलटेन भारत की खेतिहर समस्याओं का समाधान औद्योगिकीकरण है।(19) डॉ. आम्बेडकर के नजरिए से किसानों की समस्याओं का समाधान औद्योगिकीकरण के लिए बिजली की जरूरत थी। बिजली की प्राप्ति हेतु महान अर्थशास्त्री डॉ. आम्बेडकर ने समाधान खोज निकाले। उनके अथक प्रयत्नों से दमोदर वैलीडैम, महानदी बांध, सोन घाटी बांध, हीराकुंड डैम, आदि आठ बच्चों का निर्माण केवल चार साल में पूरा करवाया। (20) इन नदियों में हर साल बाढ़ आती थी और किसानों का बहुत बड़ी तादाद में खेती, जान व माल का नुकसान होता था। परन्तु किसान हितैषी डॉ. आम्बेडकर ने उपरोक्त बांध बनाकर लाखों करोड़ों किसानों को बचाया, उनकी फसल नष्ट होने से बचायी। और इन बांधों से बिजली का निर्माण हुआ। बिजली औद्योगीकरण की रफ्तार बढ़ी और किसानों को सिंचाई की उचित सुविधाएं मिलने लगी। बांधों के कारण अनेक उद्योग भी स्थापित हुए जिनमें किसानों के लड़कों को रोजगार मिलने लगा इस तरह किसानों की सामाजिक, आर्थिक दशा सुधारने हेतु डॉ. आम्बेडकर तत्पर रहते थे।
आजादी के समय तथा बाद में किसान हित के कार्य
संविधान सभा के माध्यम से देश में किसान, मजदूर व अन्य उपेक्षितों की समस्याओं के निवारण व शोषण को रोकने हेतु डॉ. आम्बेडकर ने कई कल्याणकारी योजनाएं बनायी। राज्य-समाजवाद की उनकी अवधारणा को रखकर उन्होंने राजनीतिक जनतंत्र को सामाजिक विकास आर्थिक जनतंत्र में बदलने की अपील की। उन्होंने देश के किसानों एवं मेहनतकशों के जीवन में व्याप्त अन्धकार को नष्ट करने के लिए योजनाएं बनाने की दृष्टि से उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखा उस पत्र में निम्न योजनाएं थी –
इस अवधारणा से ना कोई जमींदार रहेगा और ना कोई कब्जेदार व मजदूर भी नहीं रहेगा। इसमें सभी किसान एवं जोतदारों का अपना-अपना सहभाग होगा, सभी समान मालिक होंगें। देश के उत्पादन के जो साधन होंगें उन सभी पर मेहनत करने वाले किसानों एवं मेहनतकशों का अधिकार होगा। और उससे होने वाली आय का लाभ सभी स्तरों पर उन लोगों को उनके परिश्रम के अनुसार विभाजित किया जाए इस प्रकार की समाजवादी आर्थिक रचना ��ंविधान द्वारा ही अमल में लाने का प्रयास डॉ. आम्बेडकर ने किया था। लेकिन संविधान सभा द्वारा स्थापित उपसमितियों में इस आर्थिक योजना को नकारा गया।
संविधान में भी उन्होंने किसानों के लिए काफी कुछ प्रावधान किए हैं। शायद ही किसी किसान को उनके बारे में जानकारी हो। ऐसा इसलिए माना जाता है कि किसानों में भी जातिय भेदभाव व्याप्त है वे भी जाति के अनुसार सोचते हैं। संविधान में किसान हित व कृषि हितों को बढ़ावा देने का प्रावधान नियम है।
अनुच्छेद-39-(ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन के साधनों का सर्व साधारण के हित में हो। (22) अनुच्छेद -43 – राज्य,उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि के,उपयोग के … सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा। (23)
अनुच्छेद -48 – कृषि और पशुपालन का संगठन – राज्य कृषि राज्य और पशु-पालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्ट तथा गाय और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों की परीक्षण और सुधार के लिए उनके वध का प्रतिरोध करने के लिए कदम उठाएगा। (24)
डॉ. आम्बेडकर अच्छे से जानते थे कि किसान की समृद्धि में मवेशी भी सहायक होते हैं इसलिए ही उन्होंने इस अनुच्छेद को किसानों समृद्धि हेतु ही लिखा है। कृषि की आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके अपनाकर किसान को खुशहाल किया जा सके यह जिम्मेदारी भी संविधान ने सरकार पर लगायी है।
एक अर्थशास्त्री के रूप में, एक मानवाधिकार के संरक्षक में, रूप में एक वकील के रूप में, एक कुशल संगठन- कर्ता के रूप में, एक राजनेता के रूप में, एक मंत्री के रूप में, एक संविधान निर्माता के रूप में वह किसानों के ‘सशक्तिकरण’ के लिए संघर्ष करते हुए नजर आते हैं। आज की भूमंडलीकरण की आपाधापी के दौर में तो उनके कार्य नीतियां तथा योजनाएं और भी ज्यादा प्रासंगिक है। वर्तमान में डॉ. आम्बेडकर के मूल्यों, सिद्धांतों, अपनाकर किसानों व कृषि की समस्याओं का समाधान संभव है।
संदर्भ:
1.प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, के. सी. श्रीवास्तव, यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद, ग्यारहवीं आवृत्ति 2005-06, पृष्ठ संख्या – 245।
2.इतिहास (यू. जी. सी., जे. आर. एफ. नेट) डॉ. मानिक लाल गुप्त, प्रतियोगिता साहित्य सीरीज, साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा, कोड-949,पृष्ठ – 117।
3.आधुनिक भारत का इतिहास, बी. एल. ग्रोवर एण्ड यशपाल, एस. चांद पब्लिकेशन नई दिल्ली 2005,पृष्ठ संख्या 93।
4.भारत का इतिहास, यशवीर सिंह, लक्ष्मी बुक डिपो भिवानी, पृष्ठ – 285।
5.बाबा साहेब आम्बेडकर, बसंत मून, अनुवाद प्रशान्त पांडे, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, पांचवीं आवृति-2014, पृष्ठ – 111।
6.वही-
7.भटनागर, राजेंद्र मोहन, डॉ. आम्बेडकर चिन्तन और विचार, जगतराम एण्ड सन्स दिल्ली प्रथम संस्करण – 1992,पृष्ठ – 106।
8.शरण कुमार लिम्बाले, प्रज्ञासूर्य डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण – 2013,अनुवाद – डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे, पृष्ठ – 21।
9.वही।
10.भटनागर, राजेंद्र मोहन- उपरोक्त – पृष्ठ – 107
11.वही
12.शरण कुमार लिम्बाले – उपरोक्त पृष्ठ – 215-16
13.आम्बेडकरी चलवल, यशवंत दिनकर फड़के, सुगत प्रकाशन पूणे, पृष्ठ – 139
14.वही पृष्ठ – 143
15.शरण कुमार लिम्बाले- पृष्ठ – 217-18
16.जनता समाचार-पत्र के लेख, डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर, सम्पादक अरुण काम्बले, पृष्ठ – 110
17.The Transfer of power – Document – 711
18.वॉयसराय जर्नलस, पृष्ठ – 299,एल.आर.बाली., डॉ. आम्बेडकर जीवन और मिशन, भीम पत्रिका पब्लिकेशन्स जालंधर – 2006,पृष्ठ – 243
19.लाहौरी राम बाली, डॉ. आम्बेडकर जीवन और मिशन, वही पृष्ठ – 243-244
20.वही-244
21.शरण कुमार लिम्बाले, पृष्ठ-218-19
22.भारतीय संविधान, विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार-2010,पृष्ठ – 17
23.वही – पृष्ठ – 18
24.वही – पृष्ठ – 18
शोधार्थी, इतिहास-विभाग, म. क. भावनगर यूनिवर्सिटी भावनगर गुजरात
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( सितम्बर-अक्तूबर, 2017), पेज-