अन्नदाता सुण मेरी बात – मंगत राम शास्त्री

मंगतराम शास्त्री

अन्ऩदाता सुण मेरी बात तूं हांग्गा ला कै दे रुक्का।
सारे जग का पेट भरै तूं फेर भी क्यूं रहज्या भुक्खा।।
माट्टी गेल्यां माट्टी हो तेरा गात खेत म्हं गळज्या रै
सारी उम्र कमाकै मरज्या तेरी ज्यान रेत म्हं रुळज्या रै
स्याणा सपटा भुका सिखा तेरी घरवाळी नै छळज्या रै
पशु गेल तूं रहै पशु पर दूध ढोल म्हं घलज्या रै
टिण्डी घी लस्सी भी जा लिये बचग्या टूक तेरा लुक्खा।
तेरे हिस्से जो किल्ले थे वें बंटग्ये बीघे क्यारां म्हं
कुणबा बढता जार्या धरती घटती जा बंटवार्यां म्हं
ब्याहवण के तेरे बाळक हो लिये माच्चै खैड़ कुवार्यां म्हं
कोए सगाई आळा भी ना आंदा तेरे दुआर्यां म्हं
तूं मारै तीर बिटोड़े म्हं जो लगज्या तीर नहीं तक्का।
ठेक्के पै धरती लेवै तूं तेल जळा पाणी लावै
खाद बीज लेवण जावै तनै लांबी लैन लगी पावै
रोळा करै पिटै डण्ड्यां तै थाणे म्हं परची थ्यावै
स्टोर आळा भी खाद बीज की गेल दवाई पकड़ावै
मंहगे भा तनै पड़ै बिसाह्णा रहज्या मार सबर मुक्का।
पाणी भरज्या फसल उगळज्या सुक्खे म्हं तेरा धान मरै
अकाळ पड़ो महामारी आओ पहलम झटक किसान मरै
जेठ तपो चाहे पोह् का पाळा सारी साल बिरान मरै
फेर काळे खाग्गड़ फसल चाटज्यां बेबस हो परेशान मरै
रोम रोम तेरा बिंध्या करज म्हं तनै मारै बाढ कदे सुक्खा ।
करजा माफ करावण नै तूं जब सड़कां पै आवै रै
करज माफ हो कम्पनियां का तनै लाट्ठी गोळी थ्यावै रै
हाथ जोड़ जिनै बोट लिये थे वो तनै आँख दिखावै रै
फेर चौगरदे तै घिरै जाळ म्हं ना तेरी पार बसावै रै
हो लाचार घालज्या फांसी तूं घड़ी का करै घड़ुक्का।
जोणसे नोहरे बैठक सैं तेरे आढ़तियां की मेहर टिके
जोणसे खूड तेरै बच रे सब बैंक लिमिट कै नाम बिके
सारा साम्मा सुदां ट्रैक्टर सब किस्तां पै तेरा दिखे
बिन रुजगार तेरे बाळक न्यूं फिरैं भरमते पढ़े लिखे
खड़या कूण म्हं तरसै सै बिन भाईयां तेरा चिलम हुक्का।
एक्का कर तनै लड़णा होगा और नहीं कोए चारा सै
जो तेरी साथ चलै मिल कै ओ असली भाई चारा सै
जात धरम का नकली नारा तनै राक्खै न्यारा न्यारा सै
बिन बैरी के जाणें और बिन बोल्लें नहीं गुजारा सै
सुण मंगतराम तेरा दुखड़ा मेरा भी हुया मथन रुक्खा।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( सितम्बर-अक्तूबर, 2017), पेज – 60

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