लोहारू का खूनी संघर्ष – लाजपत राय

चौधरी लाजपत राय

लोहारू एक छोटी सी स्टेट थी। इसमें श्योराण जाटों के 52 गांव बसते थे। यह उस समय के जिला हिसार की तहसील भिवानी के दक्षिण कोने में आबाद थे। अब इन 52 गांवों में से निकल कर 70-75 गांव हो गए हैं।

यह रियासत भी जब अंग्रेज सन् 1803 ई. में यहां आए, तब बनी थी। दिल्ली और उसके आसपास के इलाके  पर काबिज हुए हांसी क्षेत्र की तरह लावारिस ही पड़ा था अर्थात् लोहारू की छावनी पर वहां के लोगों का ही आधिपत्य था और वे एक प्रकार से स्वतंत्र ही थे। किसी बड़ी शक्ति का उन पर अधिकार न था। ईस्ट इंडिया कम्पनी का अधिकार दिल्ली पर होने से पहले लोहारू क्षेत्र पर कई बार जयपुर ठिकाने खेतड़ी सीकर का भी अतिक्रमण होता रहा था, लेकिन स्थायी साया उनका लोहारू पर कभी नहीं हुआ था। भरतपुर वाले भी जब अलवर, रेवाड़ी, गुडग़ांवा, झज्जर की तरफ बढ़े थे, तब वह भी लोहारू तक पहुंचे थे। उसके बाद जब अलवर के ठाकुर ने मराठों के विरुद्ध अंग्र्रेजों का साथ दिया, तब अंग्रेज प्रशासन ने यह लोहारू अलवर के राजा को सौंपा था। उस मराठा लड़ाई में पूना का पेशवा प्रशासन पूरी तरह से हार गया और पूना संधि अनुसार पूना में अंग्रेजी रेजीडेन्ट रखना पड़ा और साल्सीट बसीन टापू भी अंग्रेजों को दिए और उत्तरी भारत अथवा दिल्ली क्षेत्र से मराठे सदा के लिए हट गये। इस लड़ाई का अंत सन् 1803 में हुआ। उसी समय मराठा कांफिडरेशन भी छिन्न-भिन्न हो गई। लेकिन इन्दौर का राजा यशवंतराव होल्कर पूना संधि से खुश नहीं था। उसने फिर एक लाख सेना तैयार की और भरतपुर के राजा के पास पहुंचा। 6 लाख रुपए में अमीरखां पठान का रिसाला किराया पर लिया, ताकि वह उत्तरी दिशा, यानी की सहारनपुर-अम्बाला की तरफ से दिल्ली पर आक्रमण कर सके। वह मदद के लिए महाराजा रणजीत सिंह के पास लाहौर भी गया, मगर रणजीत सिंह अंग्र्रेेज सरकार के साथ संधि कर चुका था, इसलिए अंग्रेजों के विरुद्ध लडऩे से इंकार कर दिया। दु:खित निराश हृदय से यशवंतराय होल्कर ने कहा ‘रणजीत सिंह मेरे वंश का राज तो चलता ही रहेगा, मगर तेरे वंश का राज और तेरा वंश खत्म हो जाएंगे।’

अमीरखां पठान को भी अंग्रेजों ने बीस लाख रुपया देकर बैठा दिया और राजस्थान के राजे भी होल्कर की सहायता को नहीं आए। तब अकेला होल्कर फरूखाबाद, कानपुर, झांसी, ग्वालियर में लड़ता-हारता हुआ भरतपुर के किले में आया। अब ईस्ट इंडिया कम्पनी का सितारा चढ़ चुका था। जनरल लेक ने राजा भरतपुर को कहा कि होल्कर को किले से निकाल दो। महाराजा भरतपुर का जवाब था कि शरण में आये को कैसे निकाल दूं? तब लेक ने, जिसको अंग्रेज शक्ति का घमंड था, भरतपुर के किले पर हमला कर दिया (1804)। लगातार कई आक्रमण पूर्ण शक्ति के साथ किए, मगर किला नहीं टूटा। अंग्रेजी सेना के 3206 सिपाही, अफसर और हिमायती मारे गए और तोप गोला, बारूद आदि सामान बहुत नष्ट हुआ। हार कर उन्हें सन् 1806 में भरतपुर के साथ संधि करनी पड़ी। उस लड़ाई से अंग्रेज सरकार के बढ़ती हुई शोहरत को बड़ा धक्का लगा और जनरल लेक का भी दिल टूट गया। वह विलायत चला गया और वहां मर गया।

जिन लोगों ने मराठों के विरुद्ध दो लड़ाइयों में अंग्रेजों का साथ दिया और भरतपुर के खिलाफ लड़े और अन्य संघर्षों में अंग्रेज सरकार की सहायता की, उनको ईनाम व जागीर देने का समय आया। अलवर को राजा बनाया और कुछ मेवात का इलाका भी उसको दे दिया। सरदार अहमदबख्श खां भी अंगे्रेज सरकार का बहुत पुराना सेवक और उपरोक्त सब लड़ाइयों में शामिल रहकर खूब वफादारी की थी, उसकी भी किस्मत जागी।

सरदार अहमदबख्श खां अंग्रेज और राजा अलवर दोनों का वफादार सेवक था, इसलिए लोहारू का परगना, जो अंग्रेजों ने पहले अलवर को दे दिया था, राजा अलवर और अंग्रेज सरकार ने वह अहमदबख्श खां को दे दिया और लोहारू का नवाब बना दिया।

नवाब अहमदबख्श खां कौन था? कहां का था? वह मिर्जा अरीफजान वेग के नाम से एक प्रसिद्ध बुखारी मुगल सरदार पुत्र वंशज था और मध्य एशिया का रहने वाला था। मिर्जा अरीफजान अठाहरवीं सदी के मध्य सन् 1750-60 के लगभग पिृतान,-बुखारा से भारत आया था। मिर्जा अहमदबख्श भारत में आने पर पैदा हुआ था। वह भी अपने बाप की तरह सैनिक टुकड़ी लेकर कभी किसी की सेवा करता रहा कभी किसी की। पैसा दो सेवा लो, यह उसका धर्म था। पहले अलवर राज की सेवा की, फिर ईस्ट इंडिया कम्पनी की। लोहाय का नवाब बना।

अहमदबख्श ने जनता का खूब शोषण किया। लोहारू की जनता समय-समय पर उसके विरुद्ध विद्रोह करती रहती थी। वर्तमान नवाब अमिनुद्दीन अहमद खां से पहले के नवाबों का जनता के साथ कैसा बर्ताव रहा होगा, ऐसा क्षेत्र के हालात से जाहिर होता है: यह क्षेत्र खुशहाल था और उनकी कृपा से घोर कंगाल हो गया। इन नवाबों को जनता की भलाई का तनिक भी ध्यान नहीं था।

वर्तमान नवाब अमिनुद्दीन ने कुछ जनहित के काम भी किए। उसने उर्दू का एक प्राइमरी स्कूल, लड़कों का हिसाब सीखने की एक पाठशाला और एक छोटी डिस्पैंसरी जिसमें दवाई और डाक्टर नदारद रहते थे। यह थी लोहारू स्टेट की हालत। और यह ही हालात किसान जागृति और संघर्ष के कारण बने- जैसे सन् 1909 के बंदोबस्त से पहले रियासत में भूमि जोतने वाला ही अपनी काश्त भूमि का मालिक होता था, लेकिन उसका लिखित रिकार्ड नहीं होता था। कम्पनी सरकार ने सरकार के रिकार्डों के अनुसार भूमि का लिखितबद्ध रिकार्ड रखा जाने लगा था। लेकिन उससे दुगनी शरह से सन् 1919 में सैटलमेंट हुआ था। जब उस सैटलमैंट में नवाब ने किसान की मलकीयत के हक को ही छीन लिया और उस समय स्टेट की कुल आय 73 हजार रुपए सालाना थी। जिसको बढ़ाकर 94 हजार कर दिया गया। ऊंट टैक्स प्रति वर्ष तीन रुपया जनता से लिया जाता था। उपरोक्त आर्थिक शोषण के विरुद्ध जनता ने सन् 1923 में विद्रोह किया, मगर अंग्रेजी सरकार की सहायता से ऊपर से लोग कुचल दिए और दबा दिये, लेकिन अग्रि अंदर ही अंदर धधकती रही। 1935 में 1923 की दबी आग फिर भड़की। इस आग को भड़काने वाले कारण ये थे :

  1. जैसे बैल टैक्स जो बैल स्टेट से बाहर जाए, उस पर पैसा रुपया टैक्सा दिया जाए।
  2. बाट छपाई टैक्स जो सालाना लोगों से लिया जाने लगा।
  3. मलबा टैक्स जो गांव खर्च के लिए जाता था। अब स्टेट ने अपनी आय बना ली।
  4. बकरी-भेड़ आदि पर टैक्स।
  5. लोहारू शहर के सिवाय कहीं भी चुंगी चौकी नही थी, मगर प्रत्येक गांव से मुकर्रर चुंगी टैक्स लिया जाता था।
  6. सन् 1933 में नवाब के परिवार में शादी थी। उस वक्त तीन रुपए प्रति घर शादी टैक्स वसूल किया।
  7. करेवा टैक्स जो विधवा करेवा करे, उससे टैक्स वसूल किया जाए, बल्कि नवाब ने करेवा कराना अपने अख्तियार में ले लिया और बोली चढ़ाकर लूटना शुरू किया।
  8. नवाब लंबरदारी और जैलदारी भी नीलाम करने लगा। लोगों ने इतने टैक्सों की आलोचना की। सन् 1934 में नवाब ने पहाड़ी गांव में कैंप लगाया और लोगों पर अनेक दोषारोपण किये और खूब जुर्माना किया।

ऊपर हमने कुछ ही कारण दिए हैं, मगर ऐसे अनेक कारण थे जेसे धार्मिक भेदभाव और ताडऩा, जिनकी वजह से लोगों ने सन् 1935 में संघर्ष का रास्ता अपनाया।

नवाब से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि हमें राहत दें, हम महादुखी हैं। लेकिन उसने नहीं सुना। लोग मैदान उतर आए और उसे कर देने से मना कर दिया। नवाब ने बड़े अत्याचार किए। उसने चहड़ गांव को आग लगाकर जला दिया और दो वीरों चौ. मामराज और चौ. रामसरूप को लोहारू में फांसी पर लटका दिया। उस संघर्ष में और भी अगुवा लोगों को जेलों में डाn दिया और उनकी जमीन-जायदाद जब्त कर ली और बहुत से कार्यकत्र्ताओं को स्टेट से निर्वासित कर दिया गया। लोगों पर बड़े-बड़े जुर्माने किए गए और सारी रियासत पुलिस की छावनी बना दी।

इन हालात से निपटने के लिए हमने गांव-गांव में पंचायत करनी शुरू की। एक पंचायत 6 अगस्त 1935 को चहडू कलां गांव में रखी। वहां संघर्ष को धारदार बनाने का फैसला किया, लेकिन नवाब से झगडऩे की बात नहीं की। नवाब को पता नहीं चला। बाद में पता चला तो वह सतर्क हो गया और लोगों को सबक सिखाने पर उतर गया। 8 अगस्त को सिंघानी गांव में पंचायत हुई, जहां बड़ी संख्या में लोग आए। पंचायत में आये लोगों का आशय केवल नवाब से फरियाद करना और मांगें पेश करना था। नवाब लोगों के संगठन को दुर्भावना से देखता था। अत: उसने एजेन्ट जनरल स्टेटस से दिल्ली में मिलकर पचास-साठ गोरखे सिपाहियों के दो छकड़े सिंघानी गांव में भिजवा दिये और खुद लोहारू पहुंच गया। दिन के बारह बजे नवाब की फौज ने बेखबर निहत्थी जनता पर गोलियों की बौछार कर दी, जिससे 22 किसान व राहगीर मारे गए। सैंकड़ों लोग घायल हुए। उपस्थित लोगों ने ही वहां मरने वालों की लाशों को उठाकर दाह संस्कार किया और घायलों को छुप-छुप कर ऊंटों पर भिवानी अस्पताल पहुंचाया। जब जख्मी ऊंटों पर भिवानी पहुंचे, तब उनको देखकर भिवानी की जनता का हृदय कांप उठा। लोगों ने सुना कि 22 आदमी मार दिये और सैंकड़ों घायल कर दिये तो वे सुन्न रह गए।

साभार: हरियाणा में किसान आंदोलन, लाजपत राय, हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी

सिंघानी हत्याकांड के शहीद

लोहारू रियासत द्वारा किसान आंदोलनकारियों पर सिंघाणी गांव में  8 अगस्त 1935 को जो फायरिंग की गई थी, उसमें निम्नलिखित वीर शहीद हुए :

  1. लालजी पुत्र कमला अग्रवाल (गांव सिंघाणी)
  2. शिव बख्श पुत्र धर्मा अग्रवाल 60 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  3. दौलतराम पुत्र बस्तीराम 60 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  4. राम नाथ पुत्र बस्तीराम 58 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  5. पीरू पुत्र जय राम 50 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  6. भोला पुत्र बहादुर 40 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  7. शिव चन्द पुत्र रामलाल 45 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  8. भानी पुत्र नेमचंद 50 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  9. अमीलाल पुत्र सरदार 35 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  10. गुटीराम पुत्र मोहरा (गांव सिंघाणी)
  11. अमरचंद पुत्र उदमी (गांव सिंघाणी)
  12. श्रीमती सुंदरी पत्नी झन्डुराम नंबरदार 50 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  13. शिव चंद पुत्र खूबी धानक 25 वर्ष (गांव सिंघाणी)
  14. मामचंद पुत्र गोधा खाती 26 वर्ष (गांव गिगनाऊ)
  15. पूर्ण पुत्र पेमा 40 वर्ष (गांव गिगनाऊ)
  16. हीरा लाल पुत्र नानक (गांव गिगनाऊ)
  17. कमला पुत्र गोमा (गांव गिगनाऊ)
  18. धनिया पुत्र गोर्धन 43 वर्ष (गांव गिगनाऊ)
  19. सोहन पुत्र चुनिया 18 वर्ष (गांव गोठड़ा)
  20. रामलाल पुत्र माया राम 25 वर्ष (गांव पिपली)
  21. मनीराम पुत्र गिरधारी 45 वर्ष (गांव चुहड़ कलां)
  22. एक अज्ञात (जींद रियासत)

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( सितम्बर-अक्तूबर, 2017), पेज- 52-53

बेखौफ सोच – रविंद्रनाथ टैगोर

पूंजीवादी समाज के प्रति -मुक्तिबोध

One thought on “लोहारू का खूनी संघर्ष – लाजपत राय

  1. अज्ञात sheoran गोत्र का था, उसके वनसज आजकल शाहपुर गाँव मे रामदासीया जाति SC के बन कर रह रहे है, और उनका नाम दयोतिया था, जो पितृ है, उनकी पूजा होती है, अब वो वापिस अगर अपने वन्शजो के एरिया मे जाने के और अपनी जाति मे वापिस जन चाहते है, कया sheoran खाप उनको मांयता देगी। कृपया जवाब दे।

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