दो मांएं -मदन भारती

कविता


ये लाशें जो जमीन पर अस्त व्यस्त पडी हैं
कुछ क्षण पहले ये
हंस खेल रहे थे
मारने से पहले इन्हें, घर से बुलाया गया था
ये मां जो बदहवाश है
जो फफककर रो रही है
कह रही है
मेरा इकलौता बी ए पास बेटा था
वर्षों झूठन धोकर,
पेट काटकर पाला था इसे मैंने
कर्ज उठाकर पढ़ाया था
क्या कसूर था मेरे बेटे का
दूसरी मां को रोने भी नहीं दिया
वो सिसकती रही
दोनों माओं ने कहा
हमारे बच्चों ने आत्महत्याएं नहीं की
उन्हें मिटाया गया
रात के घुप्प अंधेरे में
इनका कारोबार
इज्जत के नाम पर चलता है
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 45
कविता
मदन भारती –
हमारा हरियाणा
हमारा हरियाणा बडा प्यारा है
जगत जहां से न्यारा है
यहां के लोग
बड़े कमाऊ हैं
सीधे हैं, सच्चे हैं
बहादुरी तो बस,
एकदम कमाल की है
संस्कृति निराली है
अलग थलग भेष है
यहां तो जोश ही जोश है
सांस्कृतिक आयोजन का सरकारी भोंपू
बेअटक बोल रहा था
तभी आया
कंधे पर लाठी-झाडू लिए
ऑमंच की तरफ देखा
बस इतना ही कहा
हुं !! बेशर्म
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 45

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