कविता
बाहुबली हर बार दिखाते हैं
अपनी ताकत
बताते हैं अपने मंसूबे
बेकसूरों की गर्दनों पर
उछल कूद करके
हर बार कहते हैं
मर्यादाएं मिट रही हैं
संस्कृति सड़ रही है
नाक कट रही है
इज्जत पर बट्टा लग रहा है
हम शर्मशार हैं
हमारा सर्वोतम गोत्र
लड़की ब्राह्मण है
लड़का मनु व्यवस्था का अछूत
लाठियां संभाली गई
गंडासियां लगाई गई
फंदे बनाए गए
तिलक लगाया,नयी धोती,
नया पग्गड़ पहना
हम खेल जाएंगे
उनकी जान पर
मूंछें फडफ़डाई
भोंहें तन गई
हम बरदास्त नही करेंगें
हमारी संस्कृति सर्वोतम है
परम्पराएं अद्वितीय हैं
बस्तियां कांपी, रूहें सहमी,
सन्नाटा काबिज हुआ
पलायन हुआ, पशु छूटे
बच्चे गुम हुए
इस तरह
हत्या का भव्य
आयोजन हुआ
कटी नाक फिर से बच गई
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 45