हरियाणवी ग़ज़ल
बखत पड़े पै रोवै कौण।
करी कराई खोवै कौण।
मशीन करैं सैं काम फटापट,
डळे रात दिन ढोवै कौण।
दुनिया हो रह्यी भागम भाग,
नींद चैन की सोवै कौण।
बीत गया सै बखत पुराणा,
तड़कै चाक्की झोवै कौण।
केसर की क्यारी अनमोल,
भांग-धतूरा बोवै कौण।
सब नै प्यारे लागैं फूल,
कांड्यां पै इब सोवै कौण।
मुंह तो धोवैं रगड़ रगड़ कै,
अपणे दिल नै धोवै कौण।
कुणबा सारा पढ्या लिख्या सै,
दूध म्हैस का चोवै कौण।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 116