हरियाणवी ग़ज़ल
जिम्मेदारी दुखी करै सै।
दुनियादारी दुखी करै सै।
कारीगर नै ऐन बखत पै,
खुंडी आरी दुखी करै सै।
पीछा चाहूं सूं छुटवाणा,
मन अहंकारी दुखी करै सै।
इसतै बढिय़ा बैर बताया,
ओच्छी यारी दुखी करै सै।
बाळक याणा दूर स्कूल,
बस्ता भारी दुखी करै सै।
बड्ढे माणस नै हर रोज,
नवी बिमारी दुखी करै सै।
कोनी मिल रह्यी फरद ‘रिसाल’
इक पटवारी दुखी करै सै।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 116