हरियाणवी ग़ज़ल
बाळक हो गए स्याणे घर मैं।
झगड़े नवे पुराणे घर मैं।
आए नवे जमाने घर मैं।
ख्याल लगे टकराणे घर मैं।
मैं जिन तईं समझाया करता।
लागे वैं समझाणे घर मैं।
छोटे-छोट्यां के बी पड़ग्ये,
नखरे-नाज उठाणे घर मैं।
छोट्टे मुंह तै बात बड़ी इब,
लागे बोल्लण याणे घर मैं।
बाळक तो बस बाळक हो सैं,
ल्यावैं रोज उल्हाणे घर मैं।
रिश्ते डगमग डोल्लण लागे,
अपणे होए बिराणे घर मैं।
माणस घर के भित्तर रह कै,
टोह्वै नवे ठिक्याणे घर मैं।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 116