प्रिंस लाम्बा
समाज सेवक व दानवीर चौधरी छाज्जूराम हरियाणा में ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष में भी अपनी एक विशेष पहचान रखते है। इनका जन्म 27 नवंबर 1861 को आधुनिक जिला भिवानी, तहसील बवानी खेड़ा में एक साधारण किसान चौधरी सालिगराम के घर पर हुआ। इनका बचपन अभावों, संघर्षों, और विपत्तियों में व्यतीत हुआ लेकिन अपनी लगन,परिश्रम और दृढ़ निश्चय से सफलता के शिखर तक पहुंचे।
चौधरी छाज्जूराम के पूर्वज झुंझनू (राज.) के निकटवर्ती गांव लाम्बा गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढाणी माहू गांव में आकर बस गए। इनके दादा मनीराम ढाणी माहू को छोड़कर सिरसा जा बसे। लेकिन कुछ दिनों के बाद इनके पिताजी चौ.सालिगराम अलखपुरा आकर बस गए (उस समय गांव अलखपुरा, हांसी जागीर में आता था और इस समय हांसी जागीर जेम्स स्किनर के बेटे अलेक्जेंडर को दे दी गयी थी। इसी के नाम पर गांव का नाम अलेक्सपुरा पड़ा गांव वालों ने इसको अलखपुरा कहा तो,गाँव का नाम अलखपुरा पड़ा)।
छाज्जूराम की शिक्षा में बचपन से ही रुचि रही। आर्थिक स्थिति अच्छी न रहने के बावजूद भी अपनी प्रारम्भिक शिक्षा (1877) बवानी खेड़ा के स्कूल से प्राप्त की। मिडल शिक्षा (1880) भिवानी से पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मीट्रिक की परीक्षा (1882) में पास की। परिवार की स्थिति अच्छी न होने के कारण आगे की पढ़ाई न कर पाये। इनकी संस्कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी व उर्दू भाषा पर पकड़ होने के कारण भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एस.एन. राय के बच्चों को एक रूपये प्रति माह के हिसाब से ट्यूशन पढाने लगे। जब राय साहब कलकत्ता चले गए तो छाज्जूराम को भी उन्होंने कलकत्ता बुला लिया। जैसे-तैसे कर के उन्होंने किराये का जुगाड़ किया और कलकत्ता चले गए। यहां पर उनको छ: रु. प्रति माह मिलते थे।
सेठ छाज्जूराम का विवाह बाल्यावस्था में डोकहा गांव जिला भिवानी में हुआ था लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का हैजे की बीमारी के कारण देहांत हो गया। इनका दूसरा विवाह 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में हुआ। इनके तीन पुत्र हुए।
कलकत्ता में रहते हुए उनका सम्पर्क मारवाड़ी सेठों से हुआ, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कम था लेकिन छाज्जूराम को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था। इनके पत्र लिखने का काम छाज्जूराम ने शुरू कर दिया, जिस पर सेठों ने इनको मेहनताना देना शुरूकर दिया। पत्र-व्यवहार के कारण इनको व्यापार का ज्ञान हो गया एवं व्यापार सम्बन्धी कुछ गुर भी सीख लिए। कुछ समय बाद इन्होंने बारदाना (पुरानी बोरियों) का व्यापार शुरू कर दिया। यही व्यापार उनके लिए वरदान साबित हुआ और उनको ‘जुट-किंग’ बना दिया। शेयर भी खरीदने शुरू कर दिए। एक समय आया जब वो कलकत्ता की 24 बड़ी कम्पनियो के शेयर होल्डर थे और कुछ समय बाद 12 कम्पनियो के निदेशक भी बन गए उस समय इन कम्पनियो से 16 लाख रुपए प्रति माह लाभांश प्राप्त हो रहा था।
इसीलिए पंजाब नेशनल बैंक ने उनको अपना निदेशक रख लिया लेकिन काम की अधिकता होने के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया। एक समय आया जब उनकी सम्पति 40 मिलियन पार कर गयी थी। इन्होंने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी। इन्होंने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी। भिवानी और बवानी खेड़ा में 1600 बीघा जमीन खरीदी। इनके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे। चौ. छोटूराम को एफ.ए. करवाने वाले चो.छाज्जूराम ही थे।
सेठ छाज्जूराम ने रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन, लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस हो, गुरुकुल कांगड़ी तथा हिसार रोहतक की जाट संस्थाओं को दान दिया। अकालों में, प्लेग और इन्फ्लुएन्जा की महामारियों में आर्थिक सहायता की। भिवानी में उन्होंने अपनी बेटी कमला की याद में (1928) पांच लाख रूपये से ‘लेडी-हेली’ हस्पताल का निर्माण करवाया। अलखपुरा में उन्होंने कुए एवं धर्मशाला भी बनवाई।
सेठ छाज्जूराम दान-दाता ही नहीं थे बल्कि वो देश भगत भी थे उनकी आंखों में भारत की आजादी का सपना था। जब 17 दिसम्बर ,1928 को भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को गोली मार कर हत्या कर दी तो वो भाभी दुर्गा व उनके पुत्र को साथ लेकर कलकत्ता में सेठ छाज्जूराम की कोठी पर पहुंचे। यहां भगतसिंह लगभग ढ़ाई महीने तक रहे जो उस समय ऐसी कल्पना करना भी संभव नहीं था। उनका मन कभी भी राजनीति में नहीं लगा लेकिन फिर भी चौ.छोटूराम के आग्रह पर संयुक्त पंजाब में 1927 में एम.एल.सी.भी रहे। 7 अप्रैल 1943 को सेठ छाज्जूराम जी का देहान्त हो गया।
संदर्भ:
1.शिवा नंद मलिक – SETH CHAJJU RAM A LIFE WITH A PURPOSE
2. डॉ.एम.एम.जुनेजा -कशन सेवी लाजपतराय
3. जे.के.वर्मा – एक और भामाशाह : महान दानवीर सेठ शिरोमणि चौ.छाज्जूराम लाम्बा
4. प्रताप सिंह शास्त्री -लखपुरा से कलकत्ता
5. लेख – इंद्रसिंह लाखलन, हवासिंह सांगवान (पब्लिश ) संपादक -प्रिंस लाम्बा