गुड़गांव से गुरुग्राम तक – जगदीप सिंह

शहर

भले ही गुड़गांव बतौर नाम अब गुरुग्राम हो जाये लेकिन साइबर सिटी, मिलेनियम सिटी जैसे खिताब उसके साथ जुड़ चुके हैं। इस महानगर की अहमियत व्यावसायिक तौर पर आज दिल्ली से भी कहीं बढ़कर है। अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अपने डेरे इसी गुड़गांव में डाल रखे हैं। लाखों की संख्या में लोगों को रोजगार यह शहर दे रहा है। मारूति, होंडा जैसी कार व दुपहिया वाहन बनाने वाली औद्योगिक कंपनियों से तो यह शहर अक्सर चर्चा में रहता ही है साथ ही टेक्सटाइल उद्योग भी यहां पर प्रमुख उद्योग है।

लेकिन आज जो तस्वीर हमें दिखाई देती है उसमें यदि कहीं एक गाड़ी भी थोड़ी तिरछी हो जाये तो सारा शहर थम सा जाता है। बारिश की चंद बूंदे 24-24 घंटे तक एक जगह खड़े रहने पर मजबूर कर देती है। लेकिन गुड़गांव जैसा खबरों में दिखाई देता है सिर्फ वैसा नहीं है और ना ही यह पहले से ऐसा था। इसे यहां तक पहुंचने में कई दशक लगे हैं।

गुड़गांव में जन्में एक बुजुर्ग ने  गुड़गांव गांव के बसने के बारे में बताया कि इस गांव में सबसे पहले कटारिया गोत्र के जाट आकर बसे थे। जो कि मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले थे। सबसे पहले आने वाले शख्स कौन थे, और लगभग किस दौर में वे यहां आकर बसे इस बारे में इन्हें पूरी जानकारी नहीं थी।

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यह क्षेत्र दिल्ली से बिल्कुल सटा है इसलिये इसकी अहमियत अधिक रही है। जिसका दिल्ली पर शासन रहा है यह क्षेत्र भी उनके अधिकार में ही रहा है। अकबर के समय भी दिल्ली और आगरा के अधीन ही गुड़गांव का शासन चलाया जाता था। 1803 में सिंधिया के साथ सुर्जी अर्जुन गांव संधि से इसका अधिकतर क्षेत्र अंग्रजों के आधिपत्य में आ गया था। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन तक गुड़गांव की तस्वीर में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया था लेकिन 1861 में गुड़गांव जिस जिले का हिस्सा था उसे 5 तहसीलों में बांट दिया गया। इन पांच तहसीलों में एक गुड़गांव भी थी। फिरोजपुर झिरका, नूंह, पलवल, और रेवाड़ी अन्य तहसीलें थी। आजादी के बाद गुड़गांव संयुक्त पंजाब का हिस्सा बना और 1966 में एक अलग राज्य के गठन के बाद यह हरियाणा में शामिल हुआ।

देश की राजधानी का करीब होना गुड़गांव के विकास के लिये वरदान से कम नहीं है। दरअसल इंटरनेशनल एयरपोर्ट की दूरी भी गुड़गांव से अधिक नहीं है जिस कारण यह शहर तेजी से प्रगति के पथ पर बढ़ता रहा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करता रहा। गुड़गांव के विकास की पटकथा लिखने का काम लगभग 70 के दशक में ही शुरु हुआ जब मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड कंपनी ने अपना पहला मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट यहां पर खोला। इसके बाद बाकी कंपनियां भी धीरे-धीरे गुड़गांव की ओर रुख करने लगी। मैन्यूफैक्चरिंग में मारुति ने जिस प्रकार दस्तक दी उसी प्रकार रियल एस्टेट में डीएलएफ ने गुड़गांव में अपने पांव पसारने शुरु किये। हालांकि इस समय तक लोग दिल्ली को ही रहने के लिये ज्यादा तरजीह देते लेकिन जिनकी हैसियत थोड़ी कम होती वे गुड़गांव को बतौर विकल्प चुनने लगे।

आज दुनिया की 250 फार्चयून कंपनियों के दफ्तर यहां पर हैं। पिछले डेढ़ दशक से गुड़गांव ने ऑटो मोबाइल और आईटी हब के रूप में अपनी विशेष जगह बनाई है। वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र में गुड़गांव का सालाना टर्नओवर लगभग 82 हजार करोड़ रुपये हो चुका है। मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां बड़े एव मध्यम स्तर के 555 उद्योग हैं। ऑटोमोबाइल, आईटी-बीपीओ, रेडीमेड गार्मेंट, इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रानिक्स एवं लेदर फुटवियर उद्योगों में 5 लाख से ज्यादा लोगों को काम मिला हुआ है।

इस विकास के लिये आस-पास के कितने गांव इस शहर ने देखते देखते निगल लिये, कितने छोटी जोत वाले किसानों को मजदूर बनने पर मजबूर कर दिया, और कितनों को रातों रात अमीर से और अमीर बना दिया इसकी एक झलक हमें जगदीश चंद्र के उपन्यास घास-गोदाम से भी मिल जाती है। यह दिल्ली एनसीआर के आस-पास जमीन अधिग्रहण को लेकर ही लिखा गया उपन्यास है और प्रभावित और परिवर्तित होते जीवन की तस्वीर को दर्शाता है।

गुड़गांव में जहां हाइवे के एक तरफ  चमचमाता मिलेनियम सिटी नजर आयेगा, महानगर की छाती पर सांप सी लौटती हुई मैट्रो नजर आयेगी तो वहीं हाइवे की दूसरी तरफ गुड़गांव गांव है जो आपको किसी छोटे कस्बे से भी अविकसित नजर आ सकता है। जहां जरा सी वर्षा के बाद ही आपको घुटनों तक पानी से होकर गुजरना पड़ेगा।

गुड़गांव में विकास तो हुआ है लेकिन यह विकास सामूहिक रूप से नहीं हुआ। जो गुड़गांव गांव असल में गुरुग्राम है उसमें ना सिवरेज की अच्छी सुविधा है ना ही सड़कों की। खेती लायक तो जमीनें यहां कुछ खास नहीं थी लेकिन रियल एस्टेट व उद्योग कंपनियों के आने से जमीनों के रेट आसमान छूने लगे और लोग रातों-रात बंजर जमीनों के भी हीरों से दाम पा गये। मकानों में कुछ अतिरिक्त कमरे बनाकर या फिर अपनी जमीनों पर अलग से मकान बनाकर उन्हें किराये पर चढ़ाने का कारोबार भी यहां खूब फल-फूल रहा है।

हरियाणा में जमा होने वाले कर का 25 फीसदी हिस्सा अकेले गुड़गांव से जमा होता है। प्रदेश के मनोरंजन कर का लगभग 50 फीसद अकेले गुरुग्राम से जमा होता है। गुड़गांव हरियाणा की वित्तीय राजधानी तो बन ही चुका है। प्रतिव्यक्ति आय के हिसाब से गुड़गांव आज तीसरे नंबर पर आ चुका है।

फैक्ट्री उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों से लेकर सूचना तकनीक की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्मचारियों तक के जीवन की दिनचर्या लगभग शिफ्टों में सिमटी  है। अंतर सिर्फ इतना है कि तकनीकी रूप से शिक्षित बड़े दर्जे के श्रमिकों को मेहनताना और सुविधाएं ज्यादा मिलती हैं। काम के 8 से लेकर 10 घंटे होते हैं। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर उनमें एक निश्चित समयावधि में परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य होता है। जबकि मजदूरों को 12-12 घंटों तक कठिन शारीरिक परिश्रम करना होता है। दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत के बावजूद एक सम्मानजनक जीवन जीने लायक मेहनताना उनको नहीं मिलता है। एक ओर ये पढ़े लिखे कर्मचारी किश्तों के रूप में अपनी सुख-सुविधा-विलासिता की चीजों को जुटा लेते हैं तो दूसरी ओर ये श्रमिक तबके छोटे-छोटे कमरों में सामूहिक रूप से ऊंघने लायक जगह जुटा पाते हैं उसमें भी सौ तरह की बंदिशें मकान मालिकों की झेलनी पड़ती हैं।

पिछले दिनों गुड़गांव को केंद्र में रखकर हरियाणावी पृष्ठभूमि की एक फिल्म आई थी नाम भी एन एच-10 था। उसमें गुड़गांव में नायिका के साथ एक हादसा होता है कि वह देर रात कंपनी में काम से लौट रही होती है कि शराब के नशे में धुत कुछ बाइक सवार उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं। वह किसी तरह वहां से बच निकलती है और अपने पति, जिसकी पंहुच पुलिस के उच्चाधिकारियों तक होती है,  को साथ लेकर पुलिस अधिकारी से मिलती है। पुलिस अधिकारी का एक संवाद है कि ‘यह शहर एक बढ़ता हुआ बच्चा है कूद तो मारेगा ही’। फिल्म का यह संवाद सिर्फ फिल्मी नहीं है बल्कि वर्तमान की सच्चाई है।

दिल्ली जयपुर हाइवे से दूसरी ओर की दुनिया एक अलग दुनिया है। यहां आई.टी. कंपनियों में काम करने वाले युवा सप्ताह के अंत पर मनोरंजन के लिये क्लबों में शामें गुजारते हैं। व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन की  परेशानियों को कीमती शराब के जाम के साथ पी जाना चाहते हैं। आनंद लेने के ये ‘रचनात्मक’ तरीके भी खोजते रहते हैं। जिसमें आकस्मिक आनंद के लिये किसी को भी छेड़ने की चुनौती स्वीकार करने से लेकर महिला मित्रों से सामूहिक खिलवाड़ तक।

इसमें सिर्फ बड़ी-बड़ी कंपनियों में अच्छे खासे पैकेज पर काम करने वाले घरों से दूर एकांत जीवन बिताने वाले युवा ही नहीं हैं बल्कि कुछ राजनीतिज्ञों व उच्च अधिकारियों की बिगड़ैल संतानें भी शामिल हैं। इन युवाओं में सिर्फ लड़के शामिल नहीं हैं बल्कि लड़कियां भी संलिप्त होती हैं। एम.जी रोड़ यानी महरौली-गुड़गांव रोड़ पर आभिजात्य वर्ग के इन लोगों के मनोरंजन की तमाम चीजें सुलभ होती हैं। हर शाम यहां देर रात बड़ी-बड़ी गाडिय़ों की भीड़ दिखाई दे सकती है। शनिवार को तो यहां का नजारा और भी रंगीन होता है। सिकंदरपुर और एमजी रोड़ मेट्रो स्टेशन पर देर रात सुरक्षा का बड़ा मसला बन जाता है।

आर्थिक विकास के मामले में गुड़गांव ने नये मुकाम हासिल किये हैं, इस शहर में अपराधियों की संख्या भी बढ़ रही है। अपराधियों के संगठित गिरोह यहां सक्रिय रहते हैं।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 127-128

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