नशा – एक विकराल समस्या -देवदत्त

सेहत

अभी हाल ही में बनी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ने नशे  की भयावह समस्या के बारे में चिंतनशील और जिम्मेदार नागरिकों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। यह समस्या नई नहीं है, बल्कि काफी अर्सें से पंजाब में ही नहीं, अपितु सारे देश में अपने पांव पसार रही है। हरियाणा प्रांत जहां एक तरफ पंजाब से जुड़ा हुआ है, तो दूसरी तरफ दिल्ली से, जो नशे की पहुंच के केंद्र बिन्दू के रूप में देखा जाता है।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर नशे का व्यापार एक अनुमान के अनुसार 800 बिलियन डालर का है जो कि तेल के व्यापार से ज्यादा और हथियारों की खरीद के बाद आता है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नशे से जुड़ा एक बड़ा संगठित माफिया है।

भारत वर्ष एक विचित्र भौगोलिक स्थिति में है। जहां एक तरफ इसके पूर्व में म्यांमार, कम्बोडिया व लावोस जैसे देश हैं, जिनको गोल्डन ट्रायंगल और इसके पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान जैसे देश हैं, जिनको गोल्डन के्रंसन्ट कहा जाता है।

हमारे इस क्षेत्र में ज्यादातर मादक पदार्थों का आगमन पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से है। एक अनुमान के अनुसार एक किलो हेरोईन की कीमत जितनी पाकिस्तान में है, उससे लगभग साढ़े तीन से चार गुणा कीमत दिल्ली में और मुंबई में दिल्ली से दोगुणा तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक लाख डालर और न्यूयार्क की गलियों में 10 लाख डालर तक होने का अनुमान है। यह भी अनुमान है कि विश्व की 95 प्रतिशत अफीम की खेती अफगानिस्तान में होती है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद में कितना गहरा संबंध है।

नशे की शुरुआत को बतौर एक अनुभव, सामाजिक मनोरंजन, कुछ निश्चित हालात में स्व-प्रेरित दवाइयों का प्रयोग और फिर पूर्ण रूप से नशे पर आश्रित होने की आदत के तौर पर देखा और समझा जा सकता है। लेकिन हमारे यहां के परिवेश में बदलते आर्थिक हालात से आई कुछ लोगों में सुख-सुविधा बड़ी संख्या में बढ़ती बेेरोजगारी, तनाव, सामाजिक ताने-बाने में अनेक खामियों, व्यक्तिगत आजादी की अपेक्षा और राजनीति में गिरावट आदि अनेक कारण हो सकते हैं।

औषधि निर्माण विधि द्वारा बनाई गई कोई औषधि या प्राकृतिक दवा या द्रव का जब किन्हीं विशेष परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है और इस प्रक्रिया से शारीरिक और मानसिक प्रभाव व बदलाव आते हैं तो इसको औषधि का नाम दिया जा सकता है। इसका सेवन किसी शारीरिक व मानसिक बीमारी के उपचार के लिए भी किया जाता है। एडिक्सन (लत) को इस तरह से भी समझा और देखा जा सकता है कि कोई व्यक्ति विशेष इस औषधि या द्रव पर पूर्ण रूप से निर्भर होकर उसका दास हो जाता है। इसके अभाव में शारीरिक व मानसिक रूप से अच्छा महसूस नहीं करता है। इस प्रक्रिया की निरंतरता को नशा-निर्भरता कह सकते हैं।

मुख्यत: नशे का प्रचलन इस प्रकार देखा जा सकता है:

  1. शराब: सभी वर्ग के व्यक्ति
  2. अफीम या इससे जुड़े नशे: अफीम का नशा आमतौर पर उच्च वर्ग के व्यक्ति, भुक्की: साधारण व निम्र वर्ग,

हेरोहन/स्मैक: अति धनाढ्य वर्ग

  1. भांग: भांग, गांजा, चरस व हशीस: निम्र वर्ग
  2. जीवन रक्षक औषधि: ज्यादातर नौजवान वर्ग, जो औषधि नशे के तौर पर बिना डाक्टर के विमर्श के प्रयोग की जाती है। यह भी देखा गया है कि पैट्रोल को सूंघना, आयोडैक्स को ब्रैड पर लगाकर खाना और फ्लूड़ को रूमाल या रूई में डालकर सूंघना आदि नशे के रूप में प्रयोग किया जाता है। पंजाब के साथ लगते हरियाणा के इलाकों में विशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों में भुक्की के नशे की लत पाए जाने का अधिक अनुमान है। नशे के फलते-फूलते व्यापार का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में अगस्त 2016 मेें करनाल में अलग-अलग स्थानों से पकड़ी गई 132 क्विंटल भुक्की को पुलिस की निगरानी में जलाया गया। हरियाणा में नशे के आंकड़े  कम उपलब्ध हैं। इस सबंध में गंभीर प्रयास नहीं किए गए हैं। दिल्ली और दिल्ली से सटे इलाकों में रेव पार्टी, मादक पदार्थों की धर-पकड़ को लेकर आए दिन समाचार पत्रों में पढ़ा जा सकता है।

हरियाणा में शराब का सेवन लुके-छिपे होता था, जबकि आज सामाजिक कार्यक्रमों, उत्सवों, विवाह, जन्म दिनों,  नववर्ष आदि के मौकों पर शराब परोसने से सामाजिक मान्यता एवं संरक्षण प्राप्त हो चुका है। चुनाव के दिनों में और विशेष तौर पर स्थानीय निकायों व पंचायतों के चुनावों में इसका खूब सेवन होता है और शायद दूसरे मादक पदार्थों का सेवन भी अछूता न रहता हो। कुछ पीर-पैगम्बरों की मजार पर शराब का चढ़ावा प्रसाद समझ कर चढ़ाया जाना कितना उचित है? यह सोचने का विषय  है। इसी तरह कुछ धार्मिक उत्सवों पर भांग, सुल्फा आदि को भगवान का प्रसाद  समझ कर प्रयोग किया जाता है। आगे चलकर यह एक नियमित आदत का रूप ले सकता  है। भांग, सुल्फा आदि का सेवन करने वाले ढोंगी साधु, परा शक्तियों से सीधा संवाद होने का झूठा दावा करते हैं, जबकि इनमें   ऐसी कोई सच्चाई नहीं है।

युवा वर्ग नशे की लत की चपेट में है। 15-18 वर्ष की आयु में स्वाभाविक एवं मानसिक परिवर्तनों का दौर होता है और इसी उम्र में अच्छी व बुरी आदतों का निर्माण होता है। शहरी माहौल से संबंधित लड़कियां भी नशे का शिकार बन रही हैं।

ऐसा भी देखने में आया है कि कुछ विशेष पेशे से जुड़े लोग जैसे ट्रक-टैक्सी ड्राईवर जो बिना नींद या आराम किए लंबे समय तक लगातार चलते रहते हैं, ज्यादातर भुक्की और अन्य मादक पदार्थों का, जिनमें शराब भी शामिल है, का सेवन करते हैं।

हरियाणा और पंजाब में जो मजदूर वर्ग अन्य प्रांतों से रोजी-रोटी के जुगाड़  में यहां पर कृषि पेशे एवं अन्य कार्यों के लिए आते हैं,  वे आम तौर पर तम्बाकू, गुटखा, खैनी इत्यादि के सेवन के आदी होते हैं। ऐसा पाया गया है कि इस वर्ग से अधिक  काम लेने के लिए मालिक इन्हें चोरी-छिपे, भुक्की आदि मादक पदार्थों की आदत डाल देते हैं। इसके विपरीत मालिक  मजदूरों के देखा-देखी, तम्बाकू, गुटका, खैनी इत्यादि का धीरे-धीरे सेवन करने की आदत डाल लेते हैं। ऐसा अनुमान है कि  इससे 60-70 प्रतिशत मुंह, गला, आहार नली (ग्रास नली) में  कैंसर होने का कारण बन सकता है।

नशेड़ी व्यक्ति बहुत कम उम्र में शारीरिक व मानसिक बीमारियों जैसे फेफड़े, लीवर (जिगर), गुर्दे, हृदय रोग यहां तक कि एचआईवी वायरस और एआईडीएस (एडस) जैसी बीमारियों से ग्रस्त होता है। व्यक्ति अपनी वास्तविक उम्र से बहुत ज्यादा बड़ा दिखाई पड़ता है। इसके साथ-साथ ऐसे व्यक्ति मानसिक रोग जैसे निराशा (डिप्रेशन), भ्रम और विशेष तौर पर जीवन के प्रति असुरक्षा की भावना, कमजोर इच्छा शक्ति और आत्महत्या जैसी कमजोर प्रवृतियों का शिकार हो जाते हैं और जीवन की कटु सच्चाइयों और वास्तविकता से पलायन का रवैया अपना लेते हैं।

ऐसे व्यक्ति और इनके परिवार आर्थिक बदहाली और हीनभावना का शिकार बन जाते हैं। सामाजिक तौर पर ऐसे परिवारों में किसी सदस्य का नशेड़ी होना उस परिवार के रूतबे को ठेस पहुंचाता है और परिवार में कलह जन्म ले लेता है। पति के नशेड़ी होने की दशा में स्त्रियां सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं और घरेलू हिंसा का शिकार भी होती हैं। ज्यादातर सड़क दुर्घटनाएं नशे की लत के कारण होती हैं। 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार 1,34,000 व्यक्ति सड़क दुर्घटना में मरते हैं और इनमें से 70 प्रतिशत घटनाएं शराब के सेवन के कारण होती हैं।

नशे से निजात पाई जा सकती है नशे का उपचार करते समय ध्यान में रखा जाता है कि नशा एक बीमारी है और नशेड़ी एक मरीज है। नशा छोड़ने की प्रक्रिया के दौरान नशेड़ी (मरीज) को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसे विद्ड्राल सिम्पटम का नाम दिया गया है। जैसे नींद का न आना, आंख व नाक से पानी बहना, भूख में कमी आना, पेट में मरोड़ पड़ना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना, शरीर के अंगों में कंपन और असहनीय दर्द, उदासीनता इत्यादि। इन सभी लक्षणों को ध्यान में रखते हुए एक समग्र उपचार दृष्टिकोण जैसे कि दवाइयां, व्यक्तिगत एवं पारिवारिक परामर्श और अन्य उपचार विधियां जैसे धार्मिक उपचार विधि में प्रार्थना, धार्मिक ज्ञान-विज्ञान, योग की सहज क्रियाएं और मन को शांत और एकाग्र करने के लिए रिलेक्शेसन और मेडिटेशन का सहारा लिया जाता है। अनुभव के तौर पर यह भी कहा जा सकता है कि अगर एक दफा नशेड़ी (मरीज) नशे की लत से बाहर निकल आए तो योग और प्राकृतिक चिकित्सा से मरीज की खोई हुई शक्ति पुन: प्राप्त की जा सकती है।

नशे से छुटकारा पाना एक तरह से नया जन्म लेना है। आज हरियाणा में 50 के लगभग नशा मुक्ति केंद्र हैं, जिनमें से 5 तो हरियाणा बाल विकास परिषद् द्वारा और जिला स्तर के सभी अस्पतालों में मनोरोग चिकित्सकों की देखरेख में और बाकी निजी नशा मुक्ति केंद्र उपलब्ध हैं। फिर भी नशे को इस ढंग से नियंत्रित नहीं किया जा रहा, जिस ढंग से नियंत्रित होना चाहिए।

यदि नशे के विरुद्ध युद्धस्तर के अभियान और जागरूकता की आवश्यकता है। तो मां-बाप अपने बच्चों का विशेष ध्यान रखें कि कहीं वो रात को घर देरी से तो नहीं आते, सुबह लेट तो नहीं उठते, बाथरूम में ज्यादा समय तो नहीं बिताते, चेहरे पर सुस्ती, कमजोरी और आंखें लाल तो नहीं रहती या फिर उनका कम बोलना, एकांत  में रहना तो पसंद नहीं करते, जरूरत से ज्यादा बार-बार पैसे की अधिक मांग तो नहीं करते वगैरा-वगैरा।

जागरूक नागरिकोंं, समाज सेवी संस्थाओं को आगे आना होगा। सरकार और उससे जुड़े तंत्र को कठोर कदम उठाने की जरूरत है।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा ( अंक 8-9, नवम्बर 2016 से फरवरी 2017), पृ.- 65 से 66

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *