पंडित की धेनु दूध नहीं देती – कबीर

साखी – पाथर पूजत हरि मिले, तो मैं पूजु पहाड़।
वा से तो चाकी भली, पीस खाये संसार।।टेक
धातु की धेनु दूध नही देती रे बीरा म्हारा, धातु की धेनु दूध नहीं देती।
चरण – मंदिर में मुर्ति पदराई2, मुख से अन्न नहीं खाती रे।
उको पुजारी वस्त्रा नी पेनावे, तो नांगी को नांगी बैठी रेती रे।।
नाग पंचमी आवे जदे3, कोले4 नाग मांडती, दूध दही से पूजती।
सांची को नाग सामें मिल जावे तो, पूजा फेंकी ने भागी जाती रे।।
नाना नानी5 डाबड़ली6 खेले, ढेला ढेली7 खेले, गोदी में लाड लड़ाती रे।
सांचा पीव को सुख जब देख्यो तो, ढेला ढेली को ठुकराती रे।।
कहे कबीर सुणो भई साधो, यो पंथ है निर्वाणी रे।
जो इना पंथ की करे खोजना, उसे समझो ब्रह्म ज्ञानी रे।।

  1. गाय 2. स्थापित करना 3. दीवार का कोना 4. कोयला 5. छोटी 6. लड़की 7. खिलौने 8. मोक्ष

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