साखी – हिन्दू के दया नहीं, मेहर1 तुरक के नाहीं।
कहे कबीर दोनों गए, लख2 चौरासी माही।टेक
मुल्ला कहो किताब की बातें।
चरण – जिस बकरी का दूध पिया, हो गई मां के नाते।
उस बकरी की गर्दन काटी, अपने हाथ3 छुराते।।
काम कसाई का करते हो, पाक करो कलमा ते।
यह मत उल्टा किसने चलाया, जरा नहीं लजाते।।
एक वक्ष से सकल4 पसारा5, कीट पतंग जहांते।
दूजा कहो कहां से आया, तापर6 हमें खिजाते।।
कहे कबीर सुणो भई साधो, यह पद है निर्वारा7।
तनक8 स्वाद जिव्या के कारण साफ नरक में जाते।।
- दया 2. आने के लिए 3. सबमें 4. सबका 5. गुजारा 6. उस पर 7. निर्वाण 8. तनिक (थोड़ा सा)