साखी -गुरु लोभी शिष्य लालची, दोनों खैले दाव।
दोनों बपुरे बूडही1, चढ़ी पत्थर की नाव।।टेक
भक्ति करो ब्राह्मांड में साधु-
ऐसी भक्ति करो मन मेरे, आठ पहर आनंद में हो।
चरण -बामण तो मांगण2 फंसग्या3, बणिया फंसग्या धन में हो।
भोपा जाय मड़ी4 में फंसग्या, नहीं देव मड़ी में हो।।
गिरी पुरी और भारती, पूज रहे पत्थर में हो।
जादू टोटका5 मुठ6 साधके, लोग लगे लूटन में हो।।
बाबा तो खावण में फंसग्या, चेला फंसा मुण्डन में हो।
जोगी जाय जंगल में घुसग्या, नहीं देव जंगल में हो।।
कहे कमाली कबीर की चेली, ढूंढ लिया सब खंड7 में हो।
कहे कबीर सुणो भाई साधो, छोड़ दे पाखंड को हो।।
Rooppendra Kumar
अच्छा लगता है।