घट-घट में रामजी बोले – कबीर

b4घट-घट में रामजी बोले

साखी -एक समाना सकल में, सकल समाना ताहि1।
कबीर समाना मुझ2 में, वहां दूसरा नाहि।।टेक
घट-घट में रामजी बोले री,
परगट3 पीयाजी बोले री,
मंदिर में कई डोलती, फिरे म्हारी हैली4 ।
चरण -मूरत कोर5 मंदिर में मैली6 ,
या  मुख से कभी न बोली हैली।
ई सब दरवाजे बन्द कर राखे,
बिना हुकुम कुण खोले री।।
या रामनाम की बालोद7 उतरी,
बिना ग्राहक कुण खोले वो हैली।
मूरख ने कई ज्ञान बतावे,
राई परबत के होले री।
थारी नाबी कमल से गंगा निकली,
पांची कपड़ा धोईरी हैली।
बिना साबुन से दाग कटेरी,
निर्मल काया धोई लेरी।।
जहोरी बजार लग्यो घट भीतर
दिल चाहै सो लइले री हैली।
हीरा तो जोहरी ने बीन लिया,
कोई मूरख कांकरा8 तोलेरी।।
नाथ गुलाबी सतगुरु मिल ग्या,
जिनने दिल की घुंडी खोली वो हैली।
भवानी नाथ शरण सतगुरु की,
हरभज निर्मल होई लेरी।।

  1. सब 2. विवेक 3. प्रकट (प्रत्यक्ष) 4. इंसान 5. बनाना (बनाकर) 6. रखना 7. अधिक मात्रा में 8. कंकर (पत्थर)

Leave a reply

Loading Next Post...
Sign In/Sign Up Sidebar Search Add a link / post
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...