कविता
यह
आपकी
पहली जीत थी।
आपने ढूंढ लिया
मेरा
विभीषण जैसा भाई।
यह मेरी
आखिरी हार थी
आपने
जान लिया
मेरे भीतर का रहस्य।
नाभि का अमृत
बन गया हलाहल
औ’
चल गया राम-बाण।
पंजाबी से अनुवाद : पूरन मुद्गल व मोहन सपरा
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर, 2016) पेज -21