जरा सोचिए 

udbhavna.jpgपिछले दशक में हरियाणा प्रेम-विवाह करने वाले नवयुवक-नवयुवतियों की उनके परिजनों द्वारा हत्या के लिए खासा बदनाम हुआ। इस तरह का माहोल बनाने में काफी बड़ी भूमिका समाज के ठेकेदारों-खाप पंचायतियों की भी रही। उस समय ये लिखा था अब अचानक आगे आया तो सोचा कि फिर से …..

  • वर्तमान समाज में अपनी मर्जी से खाने, पहनने की छूट है। खाने, पहनने अथवा अन्य बातों में पसन्द-नापसन्द को नजरअंदाज करके कोई संस्था अपने विचार आप पर थोपना चाहे तो आपको अच्छा लगेगा या बुरा?
  • सम्पति तथा राजनीतिक सत्ता के लिए एक ही जाति तथा परिवार में हर रोज झगड़े होते हैं। क्या सच्चा भाईचारा एक ही जाति के लोगों के बीच हो सकता है?
  • बच्चे को स्कूल में दाखिल करवाते समय, बीमार हाने पर इलाज करवाते समय हम अध्यापक या डाक्टर की योग्यता देखते हैं, उसकी जाति नहीं। वोट और विवाह के समय नेता व दुल्हे-दुल्हन के गुण-योग्यता से पहले उसकी जाति देखना सही है अथवा गलत?* क्या मां-बाप या रिश्तेदारों द्वारा किया तय गया विवाह हमेशा सफल होता है?
  • अपने यहां खान-पान, शादी-विवाह तथा अन्य सामाजिक संबंध अपने धर्म, जाति या समुदाय में ही करने को सही माना जाता है। क्या अपनी जाति अथवा धर्म में विवाह से दम्पति हमेशा सुखी रहते हैं?
  • भारत के संविधान में 18 वर्ष से ऊपर की लड़की और 21 वर्ष से ऊपर के लड़के को अपनी इच्छा से विवाह करने का अधिकार दिया है। क्या माता-पिता इतनी उम्र के होने के बाद भी लड़के-लड़की को अपने विवाह का फैसला लेने में सक्षम नहीं बना पाते ?
  • कानून तो सबके लिए एक समान होता है, और रीति-रिवाज अलग-अलग समुदायों के अलग भी हो सकते हैं। यदि कानून में और रीति-रिवाजों में अन्तर्विरोध हो जाए तो हमें कानून का पालन करना चाहिए या रीति-रिवाजों का?
  • धर्म, रीति-रिवाज, आदि मनुष्य ने ही बनाए हैं। मनुष्य इनके लिए नहीं, बल्कि ये मनुष्य के लिए हैं। यदि कोई व्यक्ति प्रचलित रीति-रिवाजों में पूर्णत: विश्वास नहीं करता और अन्य तरीके से जीवन जीने लगता है तो क्या उसे जीने का अधिकार है या नहीं?
  • विवाह से पहले लड़के लड़की को एक-दूसरे के स्वभाव, विचारों को जानना अच्छी बात है। एक दूसरे स्वभाव को जानने के लिए विवाह से पहले लड़के-लड़की का मिलना सही है या न मिलना?
  • भारत में अनेक धर्मों, संस्कृतियों, रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग रहते हैं। क्या आप ऐसे समुदायों या समाजों के बारे में जानते, जिनमें नजदीकी रिश्तेदारों में विवाह किए जाते हैं?
  • हमारी संस्कृति में प्रेम करना बुरी बात नहीं है। लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, सस्सी-पून्नू के किस्से-कहानियां प्रेम पर ही आधारित हैं। क्या प्रेम रहित विवाह से दम्पति सुखी हो सकते हैं?
  • संसार में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा, जिसमें प्रेम का भाव न हो। प्रेम के भाव का अंकुरित होना स्वाभाविक है। इसीलिए प्रेम के गीत अच्छे लगते हैं। प्रेम की विशेषता है कि वह निकट रहने वालों में ही पनपता है। प्रेम और वासना में अन्तर होता है। वासना पर काबू पाना और प्रेम को पनपने देना उचित है या अनुचित?
  • कोई लड़का और लड़की से सहमति से विवाह करना चाहें और इस शुभ कार्य में कोई व्यक्ति मर्यादा के नाम पर, इज्जत या भाईचारे के नाम पर उसमें अडंगा लगाने की कोशिश करे तो क्या यह अच्छी बात है?
  • भारत के संविधान में 18 वर्ष से ऊपर की लड़की और 21 वर्ष से ऊपर के लड़के को अपनी इच्छा से विवाह करने का अधिकार दिया है। यदि कोई इस अधिकार का प्रयोग करता है, तो परम्परा, मर्यादा और संस्कृति के नाम पर उनकी हत्या सही है या गलत?
  • धार्मिक-सांस्कृतिक तथा सभी तरह के रीति-रिवाज बदलते रहते हैं। कभी विवाह के समय लड़का-लड़की के चार गोत्र छोड़ते थे, फिर तीन गोत्र छोडऩे शुरू किए, फिर दो गोत्र इत्यादि। पहले विवाह से पहले लड़का-लड़की को मिलने नहीं दिया जाता था, लेकिन अब इसे अच्छा माना जाता है। आपके देखते देखते विवाह संबंधी या अन्य रीति-रिवाजों में कौन-कौन से बदलाव हुए हैं ?
  • संसार में विवाह करने के अनेक तरीके हैं। विवाह करने का जो तरीका हमारे यहां अपनाया जाता है। क्या उसमें सुधार की संभावना नहीं है?
  • सती-प्रथा, बाल-विवाह, विधवा विवाह निषेध, बहुविवाह आदि के रिवाज व प्रथाएं हमारे समाज में थीं। समाज-सुधारकों ने उनके खिलाफ आवाज उठाकर उन्हें दूर किया। क्या अब जो बुराइयां, कुरीतियां बची हुई हैं, उनको दूर करना गलत है या ठीक?
  • सही है कि शादी जिन्दगी भर का साथ निभाने के लिए की जाती है। लेकिन यदि शादी के बाद लड़का और लड़की के विचार-स्वभाव न मिलें तो सारी जिन्दगी दुखी होना अच्छा है या अलग होकर फिर अपने विचार-स्वभाव के अनुसार विवाह करके अपना जीवन सुखी बनाना?

प्रस्तुति : डा. सुभाष चन्द्र
हिंदी विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र

More From Author

हरियाणा का पचासवां साल, पूछै कई सवाल- डा. सुभाष चंद्र

भारतीय मिथकों  का कवि हरिभजन सिंंह रेणु

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *