कविता


आलोचक
आंखों पर लगे
एक चश्मे की तरह होता है
किताब का जब
ऑपरेशन करता है
तो एक पैरामीटर बनाता है
कलेवर से लेकर
भावगत-वस्तुगत और कलागत
सभी तत्वों को
विश्लेषित करता  है
अर्थ के गर्भों से
नया विजऩ
सहृदयों को देता है
शोधपूर्ण तत्वों से
तार्किक तथ्यों से
पुरातन मान्यताओं का
नवीन मान्यताओं से
एकाकार करते हुए
कृतिकार के मूल मंतव्य को
सम्प्रेषित करता है
सृजनात्मकता की
सार्थकता को
सटीक मार्ग दिखलाता है
पठनीयता का
पाठालोचन करता है
सैद्धांतिक और
व्यावहारिक पक्षों का
ब्यौरेबार वर्णन करता है
कभी कभार
आमूल चूल परिवर्तन लाकर
मूल पाठ का न्यायोचित
वर्णन कर
सृजनकार की
सृजनधर्मिता को
औचित्यपूर्ण बनाता है
आलोचक
लेखन के
क्या, क्यों,
और कैसे
जैसे मानदंडों को
प्रश्नचिह्नों की
कसौटी पर लाकर
सारगर्भित अभिव्यक्ति
प्रदान करता है
विधा कोई भी हो
आलोचक की आलोचना उसका
आलोचक धर्म है
और यही
आलोचना की
रचनाधर्मिता का
आलोक पर्व है

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