चीजों का वायदा करके इन धोखेबाजों ने सत्ता हथिया ली। लेकिन वे झूठे हैं, वे अपना वायदा पूरा नहीं करते, वे कभी नहीं करेंगे। तानाशाह खुद को आजाद कर लेते हैं, लेकिन जनता को गुलाम बना देते हैं। हम दुनिया को आजाद करने की लड़ाई लड़ें…राष्ट्रीय बाड़ों को हटा देने की लड़ाई, लोभ, नफरत व असहिष्णुता को उखाड़ फैंकने की लड़ाई! एक ऐसी दुनिया के लिए लड़ें, जहां विज्ञान और उन्नति हम सबके लिए खुशियां लेकर आए। सैनिकों, लोकतंत्र के नाम पर हम सब एक हो जाएं।
मुझे माफ कीजिएगा, मैं कोई सम्राट नहीं बनना चाहता। यह मेरा काम नहीं है। मैं किसी पर शासन करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मैं हर किसी की-यहूदी, जेंटाइल, काले-सफेद सबकी-हर संभव सहायता करना चाहता हूं…हम सब एक-दूसरे की सहायता करना चाहते हैं। आदमी ऐसा ही होता है। हम एक-दूसरे की खुशियों के सहारे जीना चाहते हैं। दुखों के सहारे नहीं। हम आपस में नफरत और अपमान नहीं चाहते। इस दुनिया में हर किसी के लिए जगह है। यह प्यारी पृृथ्वी पर्याप्त सम्पन्न है और हर किसी को दे सकती है।
जिंदगी का रास्ता आजाद और खूबसूरत हो सकता है, पर हम यह रास्ता भटक गए हैं। लोभ ने मनुष्य की आत्मा को विषैला कर दिया है…दुनिया को नफरत की बाड़ से घेर दिया है…हमें तेज कदमों से पीड़ा और खून-खराबे के बीच झटक दिया गया है। हमने गति का विकास कर लिया है, लेकिन खुद को बंद कर लिया है। इफरात वस्तुएं पैदा करने वाली मशीनों ने हमें अनंत इच्छाओं के समंदर में गिरा दिया है। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी व आत्महंता बना दिया है और हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम। हम सोचते बहुत ज्यादा है और महसूस बहुत कम करते हैं। मशीनों से ज्यादा हमें जरूरात है इंसानियत की, चतुराई से ज्यादा हमें जरूरत है दया और सज्जनता की। इन गुणों के बिना जिंदगी खूंखार हो जाएगी और सब कुछ खो जाएगा।
हवाई जहाज और रेडियो ने हमें और करीब ला दिया है। इन चीजों का मूल स्वभाव मनुष्य में अच्छाई लाने के लिए चीख रहा है…सार्वभौमिक बंधुत्व के लिए चीख रहा है…हम सबकी एकता के लिए। यहां तक कि इस वक्त मेरी आवाज दुनिया के दसियों लाख लोगों तक पहुंच रही है…दसियों लाख हताश पुरुषों-स्त्रियों और छोटे बच्चों तक…एक ऐसी व्यवस्था के शिकार लोगों तक जो आदमी को, निरपराध मासूम लोगों को कैद करने और यातना देने का सबक पढ़ाती है। जो लोग मुझे सुन रहे हैं, मैं उनसे कहूंगा, निराश मत हो। पीड़ा का यह दौर जो गुजर रहा है, लोभ की यात्रा है…उस आदमी की कड़वाहट है जो मानवीय उन्नति से घबराता है। इंसान की नफरतें खत्म हो जाएंगी और तानाशाह मर जाएंगे और जिस सत्ता को उन्होंने छीना है, वह सत्ता जनता को मिल जाएगी और जब तक लोग मरते रहेंगे, आजादी पुख्ता नहीं हो पाएगी।
सैनिको, अपने-आपको इन धोखेबाजों के हवाले मत करो, जो तुम्हारा अपमान करते हैं…जो तुम्हें गुलाम बनाते हैं…जो तुम्हारी जिंदगी को संचालित करते हैं…तुम्हें बताते हैं कि क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है। जो तुम्हारी कवायद करवाते हैं, तुम्हें खिलाते हैं…जानवरों-सा व्यवहार करते हैं और अपनी तोपों का चारा बनाते हैं। खुद को इन अप्राकृतिक लोगों, मशीनी दिमाग और मशीनी दिलों वाले मशीनी आदमियों के हवाले मत करो…। तुम लोग इंसान हो, तुम्हारे दिलों में इंसानियत है, घृणा मत करो। घृणा करनी ही है, तो बिना प्रेम वाली नफरत से करो…बिना प्रेम की, अनैसर्गिक!
सैनिको! गुलामी के लिए मत लड़ो, आजादी के लिए लड़ो। सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में लिखा है कि ईश्वर का राज्य आदमी के भीतर होता है…किसी एक आदमी या किसी एक समुदाय के आदमी के भीतर नहीं, बल्कि हर आदमी के भीतर! तुममें…आप सब लोगों में…जनता के पास ताकत है इस जिंदगी को आजाद और खूबसूरत बनाने की, साहस है इस दुनिया को एक अद्भुत दुनिया में तबदील करने की, तो लोकतंत्र के नाम पर हम उस ताकत का इस्तेमाल करें…आओ, हम सब एक हो जाएं, हम एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें, एक ऐसी सभ्य दुनिया के लिए जो हर आदमी को काम करने का मौका दो…तरुणों को भविष्य दे और बुजुर्गों को दे सुरक्षा।
सैनिको! गुलामी के लिए मत लड़ो, आजादी के लिए लड़ो। सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में लिखा है कि ईश्वर का राज्य आदमी के भीतर होता है…किसी एक आदमी या किसी एक समुदाय के आदमी के भीतर नहीं, बल्कि हर आदमी के भीतर! तुममें…आप सब लोगों में…जनता के पास ताकत है इस जिंदगी को आजाद और खूबसूरत बनाने की, साहस है इस दुनिया को एक अद्भुत दुनिया में तबदील करने की, तो लोकतंत्र के नाम पर हम उस ताकत का इस्तेमाल करें…आओ, हम सब एक हो जाएं, हम एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें, एक ऐसी सभ्य दुनिया के लिए जो हर आदमी को काम करने का मौका दो…तरुणों को भविष्य दे और बुजुर्गों को दे सुरक्षा।
इन्हीं चीजों का वायदा करके इन धोखेबाजों ने सत्ता हथिया ली। लेकिन वे झूठे हैं, वे अपना वायदा पूरा नहीं करते, वे कभी नहीं करेंगे। तानाशाह खुद को आजाद कर लेते हैं, लेकिन जनता को गुलाम बना देते हैं। हम दुनिया को आजाद करने की लड़ाई लड़ें…राष्ट्रीय बाड़ों को हटा देने की लड़ाई, लोभ, नफरत व असहिष्णुता को उखाड़ फैंकने की लड़ाई! एक ऐसी दुनिया के लिए लड़ें, जहां विज्ञान और उन्नति हम सबके लिए खुशियां लेकर आए। सैनिकों, लोकतंत्र के नाम पर हम सब एक हो जाएं।
हाना, क्या तुम मुझे सुन सकती हो? तुम जहां कहीं भी हो, देखो यहां! देखो यहां, हाना! ये बादल छंट गए हैं, पौ फट रही है, हम अंधेरे से निकलकर उजाले में आ रहे हैं, हम एक नई दुनिया में आ रहे हैं…एक ज्यादा रहमदिल दुनिया में…जहां आदमी अपने लालच, घृणा और नृशंसता से ऊपर उठेगा। देखो हाना, मनुष्य की आत्मा को पंख मिल गए हैं और अंतत: उसने लड़ने की शुरुआत कर दी है। वह इंद्रधनुष में उड़ रहा है…उम्मीदों की रोशनी में…देखा हाना! देखो!
1914 – बिट्वीन शावर्स, ए बिजी डे, कौट इन ए कैबरे, कौट इन द रेन, क्रुएल क्रुएल लव, डी एण्ड डायनामाइट, द फेस ऑन द बाररूम प्लोर, ए फिल्म जौनी, जेन्टलमेन ऑफ नेर्व, गेटिंग एक्वेन्टेड, हर फ्रेंड द बैण्डिट, हिज फेवरिट पासटाइम, हिज न्यू प्रोफेशन, हिज प्रीहिस्टोरिक पास्ट, हिज रिजेनेरेशन, किड ऑटो रेसेज एट वेनिस, द नौकाउट, लाफिंग गैस, मेबल एट द व्हील, मेबल्स बिजी डे, मेबल्स मैरिड लाइफ, मेबल्स पंक्चर्ड रोमांस, प्रेडिकामेन्ट, मेकिंग अ लिविंग, द मास्कवेरेडर द न्यू जैनिटर, द प्रोपर्टी मैन, रिक्रिएशन, द राउंडर्स, द स्टार बोर्डर, टैंगो टैंगल्स, दोज लव पैंग्स, टिलीज पंक्चर्ड रोमांस, ट्वेंटी मिनट्स ऑफ लव
1915 – द बैंक, बाय द सी, कर्मेन, द चैम्पियन, हिज न्यू जॉब, इन द पार्क, ए जिटनी इलोपमेंट, ए नाइट इन द शो, शांगहाइड, द ट्रैम्प. ए वोमन, वर्क
1916 – बिहाइंड द स्क्रीन, द काउंट, द फायरमैन, द फ्लोरवॉकर, वन ए एम, द पॉनशॉप, पोलीस, द रिंक, द वैगाबांड
1917 – द क्योर ,ईजी स्ट्रीट, द इम्मिग्रेण्ट
1918 – द बॉण्ड,,ए डॉग्स लाइफ, शोल्डर आम्र्स, ट्रिपल ट्रबल
1919 – चार्ली द बार्बर, ए डेज प्लेशर, सनीसाइड
1921 – ए आइडल क्लास, द किड
1922 – पे डे
1923 – द पिलग्रिम, ए वोमन ऑफ पेरिस
1925 – द गुड फॉर नथिंग ,द गोल्ड रश
1928 – द सर्कस
1931 – सिटी लाइट्स
1936 – मॉडर्न टाइम्स
1940 – द ग्रेट डिक्टेटर
1947 – मांसर वारडॉक्स
1952 – लाइमलाइट
1957 – ए किंग इन न्यूयॉर्क
1967 – ए काउंटेस फ्रॉम हांग-कांग
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर, 2016) पेज- 43 से 45