28 जुलाई 2016 को शहीद उधम सिंह राजकीय महाविद्यालय मटक माजरी में ‘स्वतंत्रता आंदोलन और उधम सिंह’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। यह सेमिनार ‘देस हरियाणा’ पत्रिका, इतिहास एवं हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में हुआ।
इस अवसर पर शहीद भगतसिंह के भानजे प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि आजदी के 70 वर्ष बाद भी शहीदों के सपने अधूरे हैं। जनता की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं हुई हैं। लंबे समय से हमारा लोकतंत्र पब्लिक की बजाए पूंजी को तरजीह दे रहा है। जनता लगातार साम्प्रदायिक और जातिगत संकीर्णताओं की जकड़न में उलझती जा रही है। हमें शहीदों के संघर्षों एवं विचारों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह का जीवन हमारे लिए एक मिसाल है। 2 अप्रैल, 1940 को ओल्ड वेरी कोर्ट में न्यायमूर्ति सर सेरिल एटिकिन्सन की अदालत में कहा कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्रांति है, जो समानता, स्वतंत्रता और बन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत हो। उन्होंने कोर्ट में अपना नाम मोहम्मद सिंहआजाद बताया। वे हिन्दुस्तानी दर्शन के सच्चे वाहक थे तथा कौमी एकता के पक्के हिमायती। प्रो. जगमोहन ने कहा कि शहीदों की कुर्बानियों का चित्रण करने के साथ उनकी दृष्टि और सोच को रेखांकित करना ज्यादा जरूरी है।
आज आजादी के तैरानों को गुनगुनाने और तिरंगा लहराने के साथ-साथ यह जानना महत्वपूर्ण यह है कि आखिर हमारे स्वतंत्रता सेनानी आजादी क्यों प्राप्त करना चाहते थे? हमारे स्वतंत्रता आंदोलन का उद्देश्य क्या था? उन्होंने छात्र/छात्राओं से आह्वान किया कि वे विचार करें कि हम कहां से चले थे, कहां पहुंच गए और कहां जाएंगे। हमें आजादी के विचार पक्ष पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
प्राचार्य महोदय डा. रणबीर सिंह ने ‘देस हरियाणा’ पत्रिका, इतिहास एवं हिन्दी विभाग को साधुवाद देते हुए कहा कि शिक्षा मनुष्य में संभावनाओं का विस्तार है। हर प्रगतिशील समाज समय के साथ नई संभावनाओं को जन्म देता है तथा कला और विज्ञान के माध्यम से उन्हें साकार करने का प्रयास करता है। हमारे क्रांतिकारी तत्कालीन समाज के ज्ञान-विज्ञान से गहरे रूप से जुड़े थे। हमारे शैक्षणिक संस्थाओं में अतीत की घटनाओं और भविष्य की योजनाओं को लेकर विचार-विमर्श जारी रहने चाहिएं।
‘देस हरियाणा’ पत्रिका के सम्पादक डा. सुभाष चंद्र ने कहा कि हमारे समाज में ‘पुस्तक-संस्कृति’ का अभाव है। हमारे घरों में किताबों के लिए न कोई कमरा है और न कोई अलमारी है। यहां तक कि रद्दी और बेकार वस्तुएं भी स्टोर रूम में अपनी जगह पा लेती हैं, लेकिन घर का कोई कोना किताबों के लिए आरक्षित नहीं है। उन्होंने बड़े सरल शब्दों में विद्यार्थियों को समझाया कि हरियाणा के घरों में जेली-गंडासी, लाठी-बरछे तो मिल जाएंगे, लेकिन किताबें नदारद हैं। यह पत्रिका इस सांस्कृतिक शून्यता को भरने का एक प्रयास है। आपके विचारों और सुझावों का पत्रिका में स्वागत है।
इस अवसर पर महाविद्यालय परिवार के अधिकांश शैक्षणिक कर्मचारी मौजूद रहे। इतिहास विभाग के छात्र अनुराग ने मुख्यातिथि को उधम सिंह की पेंटिंग भेंट की। प्रो. जगमोहन सिंह एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने ‘देस हरियाणा’ पत्रिका के छटे अंक का विमोचन किया। सेमिनार में लगभग 150 छात्र-छात्राएं मौजूद रहे तथा मंच संचालन डा. कृष्ण कुमार ने किया।
बंटी सिंह-बी.ए. द्वितीय वर्ष, रा.उ.महा. मटक माजरी