पात्र : नट तथा नटी। दो देहाती (बार-बार उन्हीं को दोहराया जा सकता है),एक ढिढ़ोरची (दो देहातियों में एक हो सकता है या नट भी हो सकता है) और गानेवाले स्त्री-पुरूष।
(सभी संवाद तुकबंदी में हैं। उनकी अदायगी में काव्यात्मकता,लयात्मकता और नाटकीयता रहे तो ज्यादा बेहतर। गाने,दोहे, चौबोले, बहरेतवील आदि काव्यरूपों के गायन में स्त्री-पुरूष दोनों आवाजें रहें तो ज्यादा बेहतर। लोकधुनों के इस्तेमाल को प्राथमिकता मिले तो ज्यादा बेहतर।)
(नगाड़ा बजने के साथ नौटंकी शुरू होती है। मंच पर नट और नटी का प्रवेश।)
नट : लो नगाड़ा बजता है युद्घ का और ध्यान चाहूंगा आप सब जन प्रबुद्घ का। यह दुनिया आनी-जानी है। बात थोड़ी पुरानी है।
नटी : जरा भूली हुयी सी कहानी है। इसीलिए तो जरूर-जरूर सुनानी है।
दोहाः
हुए डेढ़ सौ साल, वक्त की जम गयी भारी धूल।
पर जो हुए शहीद देश पर,कैसे उनको जाएं भूल।
नट : इसलिए सजनो आइए। सिर झुकाइए। और कीजिए याद उन वीरों को और बहादुरों को, जिन्होंने झेला था बंदूकों और तलवारों को। बर्छी और कटारों को।
नटी : अठारह सौ सत्तावन में जो लड़े विदेशी हुकुमत के खिलाफ, लड़े उसके जुल्म और अत्याचार के खिलाफ।
नट : तो फिर शुरू होता है किस्सा। लो बता दें उसका पहला हिस्सा।
चौबोलाः
बागी हो गयी फौज फिरंगी। देख के उसकी चाल दुरंगी।
आजादी की जल गयी ज्वाला। मेरठ में था खिंच गया पाला।
बागी पंहुच गए दिल्ली में,बादशाह से ऐसे बोला।
तू परजा का है रखवाला,अब छोड़ दे सारी तंगी।
नट : तो सजनो, जब बागियों ने जीत ली दिल्ली, तो फिरंगी भागा बनकर भीगी बिल्ली।
नटी : और दिल्ली के पास ही बसा है मेवात। तो आओ करलें उसकी बात।
नट : जब वीर मेवातियों ने फिरंगियों से किए दो-दो हाथ और दी उन्हें करारी मात।
समूहगानः
है दिल्ली दिखणादे नै, बसा हुआ मेवात,
सुणो जी, बसा हुआ मेवात, रे सजनो, बसा हुआ मेवात।
आज उसी की याद करें, एक भूली-बिसरी बात,
सुणो जी, भूली-बिसरी बात, रे सजनो, भूली-बिसरी बात।
सूखी-पथरीली धरती यह, ज्यूं गरीब का गात,
सुणो जी, ज्यूं गरीब का गात,रे सजनो, ज्यों गरीब का गात।
इस धरती का ही किस्सा है, हुए डेढ़ सौ साल,
सुणो जी, हुए डेढ़ सौ साल,रे सजनो, हुए डेढ़ सौ साल।
सत्तावन में बणे मेवाती अंग्रेजों का काल,
सुणो जी, अंग्रेजों का काल, रे सजनो, अंग्रेजों का काल।
मार भगाया था गोरों को,किया हाल-बेहाल,
सुणो जी, किया हाल-बेहाल, रे सजनो, किया हाल-बेहाल।
आजाद करायी धरती अपनी,न लगान, न माल,
सुणो जी, न लगान, न माल,रे सजनो, न लगान न माल।
उन वीरों को करें याद जो, तज गए अपने प्राण,
सुणो जी, तज गए अपने प्राण,रे सजनो तज गए अपने प्राण।
निभायी आन-बान और शान।
नट : तो सजनो किस्सा यूं है कि जफर बादशाह को बिठाकर दिल्ली की गद्दी पर , बागी सिपाही पंहुच गए दिल्ली की चौहद्दी पर।
नटी : वैसे तो संख्या में तीन सौ ही थे बागी, पर जोश इतना कि जैसे अब है तकदीर हिंदुस्तान की जागी।
नट : चौहद्दी से आगे था गुडग़ांव, बस उठ गए बागियों के उसी तरफ पांव।
नटी : शामिल हुए बगावत में गांव के गांव।
नट : अब कोई परवाह नहीं,क्या धूप, क्या छांव।
नटी : जोश ऐसा था कि रूकते न थे पांव।
बहरे तवीलः
आगे बढ़ते जाएं बागी,थे उनके हौसले बुलंद इतने कि क्या कहने।
फोर्ड जिला कलेक्टर था, थी उसकी लाठ साहबी ऐसी क्या कहने।
बागियों को जब वह रोकने पंहुचा, तो उसे ऐसा पीटा क्या कहने।
पलवल होते मथुरा भागा वो, जान बचाकर वो ऐसे कि बस क्या कहने।
नट : तो सजनो, जोश जीत का था छाया, फिर वही किया जो मन भाया।
नटी : क्या किया, बताओ तो। कुछ हाल वहां का सुनाओ तो।
दोहाः
आग लगा दी कलेक्टरी को और लिया खजाना लूट।
अब मेव बगावत में शामिल थे, मिल गयी पूरी छूट।
नट : और सजनो,देख फिरंगी को यूं हारता और दुम दबाकर भागता, तो लोगों को हुआ विश्वास कि उसे हराया जा सकता है और मुल्क से भगाया जा सकता है।
नटी : फिरंगी की ताकत की खुल गयी थी पोल। और फिर मेवात में बज गया आजादी का ढ़ोल।
नट : और रायसीना, मोहम्मदपुर, नूनाहेड़ा, हरियाहेड़ा, हरमथला आदि गांवों के लोग हो गए बगावत में शामिल।
चौबोलाः
दुश्मन से लडऩे मेवाती। एकजुट हुए सभी देहाती।
कमान संभाली सदरूद्दीन ने,वो था किसान निपट देहाती।
फौज न फांटा,न हाथी घोड़ा। पर बाजी को ऐसा मोड़ा।
डर के मारे गोरा दौड़ा, छोडक़े उसकी धरती।
नट : डर के मारे गोरा दौड़ा, छोडक़े उसकी धरती?
नटी : हां-हां,छोड़ के उसकी धरती।
नट : ऐसे कैसे?
नटी : सुनो ऐसे।
गानाः
मई महीना धूप तपै थी, दिल में ज्वाला जाग रही।
फेंक गुलामी का जुआ,मेवात की जनता जाग रही।
अमीर और उमरा फिर भी थे, खैरख्वाह अंग्रेजों के।
कस्बों में बैठे थे अब भी, खैरख्वाह अंग्रेजों के।
धाड़ जुटा ली सदरूद्दीन ने, धरकर धावा बोल दिया।
पिनगुआ पर करके कब्जा, उनको डावांडोल किया।
सोहना और तावड़ू जीता और पुन्हाना जीत लिया।
खानजादे नूंह के भी भागे,जीत सारा मेवात लिया।
नट : इस तरह सजनो मई के अंत तक जमना तक का सारा क्षेत्र हो गया आजाद और मेवात को कराकर आजाद, सदरूद्दीन जुट गया करने इलाके का प्रबंध, हो गया था सब कुछ एकदम चाक-चौबंद।
नटी : बस जयपुर तक पंहुच गयी यह खबर। राजा की लग गयी उस पर नजर। वहां मेजर एडन रेजीडेंट था। राजा उसका और वह राजा का पैट था। सो दबाने वह बगावत को, लेकर छ: हजार सैनिक और तोपे चल पड़ा वह मेवात को।
बहरेतवीलः
कूच किया मेजर एडन ने, सब तोप तमंचे साथ लिए।
गांव-गांव में लड़े लड़ाके, जान की परवाह बिना किए।
भूल गया औसान फिरंगी, उसके हाथ के तोते उड़ा दिए।
लूट लिया सब तामझाम और नखरे सारे भुला दिए।
नटी : ऐसा क्या?
नट : हां, बिल्कुल ऐसा और आगे देखो उसने किया कैसा।
दोहाः
गुस्से में पगलाया एडन,तोपों का मुंह खोल दिया।
बोल दिया हमला गांवों पर,उन्हें जलाकर राख किया।
नटी : तावड़ू और सोहना के बीच,उसने धरती को दिया खून से सींच।
नटी : कर डाले गांव अनेकों भस्म। निभायी थी एडन ने ऐसे ही फिरंगियों की रस्म।
नट : अरे रे, देखो लगी है,वहां कोई पंचायत।
नटी : अरे नहीं पंचायत नहीं। लडकऱ लौटी है सदरूद्दीन की फौज। मिल बैठकर करते हैं रात में विचार-विमर्श ये रोज।
नट : सुनो क्या कहते हैं।
नटी : तब तक हम यहीं रुके रहते हैं।
एक देहाती : सुनो सदरू, बात हमारी। सोचो और करो तैयारी। सोहना में एडन ने डाल दिया है डेरा। जान बचाकर जो भागे थे, वही फिरंगी पंहुच गए वहां और जमा लिया है डेरा।
नट : एडन वहां रुका रहा तीन दिनों तक। यह बात पंहुची सभी जनों तक।
नटी : फिर एडन की फौज ने कूच किया पलवल को।
नट : पर जनता ऐसी भडक़ी थी कि मुश्किल हो गया पल को।
चौबोलाः
देख मौत को सामने गया कलेजा कांप।
हालत थी ऐसी जैसे कि सूंघ गया हो सांप।
सूखे पत्ते सा देखो, थर-थर गोरा कांप रहा।
हाल फिरंगी का ऐसा, कि करे बाप ही बाप।
नटी : जुल्म देख के ��डन के और सुनकर जनता की ललकार।
नटी : राजपूत सैनिक बिगड़े और दी बागी हुंकार।
नट : कैसे?
नटी : देखो ऐसे।
एक देहाती : सुनो सदरू सरदार आपको हाल सुनाऊं। एडन की फौज में हुयी बगावत, और क्या-क्या मैं बतलाऊं।
दूसरा देहाती: शिवनाथ सिंह बन गया है बागी राजपूत सैनिकों का सरदार। अब नहीं उठाएंगे वे मेवातियों के खिलाफ हथियार।
नट : और एक रात शिवनाथ सिंह ने एडन पर,टूट के हमला बोल दिया।
नटी : जान तो बच गयी एडन की,पर हौसला उसका टूट गया।
नट : और जान बचाकर वो बेचारा वापस जयपुर को लौट गया।
नट : पर आगे मोर्चा और बड़ा था।
नटी : अब राजा अलवर आन खड़ा था।
गानाः
देख के मेवों का रंग-ढ़ंग ये, राजा अलवर तड़प उठा।
मेवों में ऐसी क्या हिम्मत,लेकर के वो यह शपथ उठा।
कुचलूं एक-एक बागी को, दूंगा ऐसा सबक सिखाय।
सूली पर चढ़वा दूं सबको और कोल्हू में दूंगा पिरवाय।
फिरोजपुर झिरका की खातिर पंहुच गया था फिर लश्कर।
मेव न जाने लश्वर वश्कर,बस पीट दिया था वो कसकर।
पर राजा था मदहोश, उसे कुछ होश न आया।
किला बनाकर नौगावां में, गौरों को बुलवाया।
पर मेवों ने मिलकर, ऐसा उस पर वार किया।
टूट गए मनसूबे सारे, उन पर पानी फे र दिया।
बारह सौ सैनिक राजा के, गाजर मूली सा काट दिया।
फिरंगियों को पकड़-पकड़, खलिहानों में जोत दिया।
बागी मेवों के आगे राजा की, चली नहीं कोई पेश।
स्वर्ग सिधार गया जल्दी ही, उसे थी ऐसी पंहुची ठेस।
नट : दो-दो रजवाड़ों और अंग्रेजों के आगे वीर मेवाती खड़े रहे थे डटकर।
नटी : पर उधर दिल्ली में थी बाजी रही पलटकर।
नट : दिल्ली कब्जायी गौरों ने,जोर-जुगाड़ किया चोरों ने।
नटी : शहजादों को कत्ल किया और बनाया बादशाह को बंदी। वहां बगावत में छायी थी फिर तो एकदम मंदी।
नट : पर मेवाती थे बेखबर। लड़ने को उतने ही तत्पर।नटी : दिन दो अक्टूबर का आया। कुचलने मेवात की बगावत जनरल शावर आया।
दोहाः
फौज बहुत भारी शावर की, गोला-बारूद साथ लिए।
जात फिरंगी थी शातिर वो,उसने देशद्रोही साथ लिए।
नट : रायसीना था बागियों का गढ़।
नटी : गद्दारों ने किया इशारा,शावर आया था चढ़।
बहरेतवीलः
अंग्रेजों के पिट्ठू ऐसे, थे एक से एक बड़े गद्दार।
खबर फिरंगी को दे दी, तुम रायसीना पंहुचो सरकार।
यहां पर बागी जुट हुए हैं, एक -एक की लो खाल उतार।
फोर्ड कलेक्टर आया पलटके, था उसके सिर पर खून सवार।
नट : रायसीना में मेवों ने किया मुकाबला डटकर। मौत कलेक्टर की आयी थी। फोर्ड गिरा फिर कटकर।
दोहाः
आपे में नहीं रहा फिरंगी,बर्बरता की हद लांघी।
गद्दारों को मिली जमीनें,अब तो थी उनकी चांदी।
चौबोलाः
थे वीर बहुत ही मेव मगर। फौज बहुत थी बड़ी मगर।
तोपें उगल रही थी आग। खून से खेल रहे थे फाग।
कितनों ने ही जान लड़ाई। मेवों की नहीं पार बसाई।
कब्जा हुआ रायसीना पर गोरा था बन गया कसाई।
नट : इलाका पूरा कर कब्जे में सुना दिया फरमान।
नटी : क्या?
नट : लो तुम भी सुनो लगाकर ध्यान।
एक देहाती : सुनो तुम डोंडी की आवाज।
दूसरा देहाती : सुनो-सुनो अब क्या कहता है राज।
ढि़ंढोरची : सुनो-सुनो, लोगो सुनो, खूब लगाकर ध्यान। जो गोरों की जो मदद करी तो पाओगे ईनाम। पर रहे जो रायसीना के मददगार, वो मेव करेंगे अब बेगार।
नट : नूनाहेड़ा, हरियाहेड़ा, हरमथला,मोहम्मदपुर, सापंली और नंगली के मेवों को मिला यही ईनाम।
नटी : जमीन उनकी जब्त हुयी और फांसी का फरमान।
दोहाः
आजादी की जंग लड़ी तो पाया यह ईनाम।
बने मुजारे गद्दारों के,भोगा बस अपमान।
नट : फिर तो रायसीना जैसी घटनाएं चारों तरफ लगी घटने।
नटी : मुखबिर बता रहे गौरों को मेव नहीं पीछे हटने।
एक देहाती : ए भाई सदरू सुनो हमारी बात, लगाकर कान, इधर दो ध्यान।
दूसरा देहाती: घासेड़ा में, कासन और बारूटा में मेव हजारों जुटगे। हुए लैस हथियारों से और आके मैदान में डटगे।
नट : 8 नवंबर को कुमाऊं रेजिमेंट और टोहाणा घुड़सवारों का दस्ता पंहुच गया मेवात।
नटी : पंहुच फिरंगी ने वहां पर एक बार दिखायी फिर से अपनी जात।
नट: लेफ्टिनेंट रांगटन था घुड़सवारों का सरदार।
नटी : और लेफ्टिनेंट ग्रांट था कुमाऊं रेजिमेंट का सरदार।
नट : थे दोनों ही एक से एक बदकार।
नटी : लक्ष्य एक ही था दोनों का,हो मेवों की हार।
नट : अब आगे का हाल भी बताओ।
नटी : तो लो कान लगाओ।
गानाः
आजादी का रंग चढ़ा था, मेव न मानें हार।
फौजों के आगे थे, वो मर मिटने को तैयार।
गांव-गांव रणभूमि था, लगी हुयी थी बाजी।
पीछे हटने को मेवों में, नहीं कोई था राजी।
कहर फिरंगी का टूटा था, रहम की छोड़ो बात।
मरघट बना दिया था उसने,ये प्यारा मेवात।
चारों तरफ तबाही थी और मच गया हाहाकार।
आज फिरंगी बना हुआ था रावण का अवतार।
नट : रावण का अवतार,जात थी राक्षसी।
नटी : माफी उसने नहीं किसी को भी बख्शी।
बहरेतवील
गोला और बारूद का ऐसा खेल फिरंगी खेल रहा।
मचा तबाही गांव-गांव में आग से था वो खेल रहा।
फौज से लड़ते रहे किसान,यह जोड़ बहुत बेमेल रहा।
ऐसे उजड़े गांव और बस्ती, न तिल और न तेल रहा।
नट : पहले बारूटा और फिर कासन को तबाह किया।
नटी : घासेड़ा को भी गोरों ने फिर बारूद से स्याह किया।
नट : घासेड़ा में हो गए डेढ़ सौ मेव शहीद।
चौबोला
नंबर आया नूंह का और खैरा था गद्दार।
गोरों को कर दी खबर,आओ जी सरकार।
बागियों की मैं, पहचान करा दूंगा।
जीत कराऊं आपकी, शान बढ़ा दूंगा।
नट : नूंह, अडबर और शाहपुर नंगली से गोरों ने बागी एक-एक पकड़ लिया था।
नटी : और पेड़ों पर उनको फांसी चढ़ा दिया था।
नट : 52 मेव चढ़े फांसी पर, नूंह का था यह हाल।
नटी : ऐसा ही था लोगो, इन अंग्रेजों का जाल।
नट : आगे लगी खबर कि रूपड़ाका में जुटे हैं मेव कई हजार।
नटी : अंग्रेजों के खबरी भी तो बैठे थे तैयार।
नट : अंग्रेजों ने हमला बोला।
नटी : और तोपों का था मुंह खोला।
नट : सैकड़ों शहीद हुए मेवाती।
नटी : थे भोले और निपट देहाती।
नट : आज भी उनकी याद सताती।
दोहा
रूपड़ाका की लड़ाई को हम याद आज भी करते है।
शहीद मीनार निशानी उसकी,नमन हजारों करते हैं।
नट : अब आगे का सुन लो हाल।
नटी : सदरूद्दीन बन गया था अंग्रेजों का काल।
गाना
सदरूद्दीन की अगुवाई में फिर से एक हुए मेवाती।
पिनगुआ पर बोला हमला,टूट पड़े सारे देहाती।
फौज से फौज मिली गोरों की,ताकत हुयी सवायी।
शहीद हुआ सदरू का बेटा,चोट कलेजे खायी।
पर हार नहीं मानी सदरू ने,अपना सब कुछ वार दिया।
वहां से आगे बढक़े उसने, महू में मोर्चा लगा दिया।
तीन तरफ से घेर महू को,गोरों ने दी आग लगाय।
कत्लेआम किया बैरी ने, लिया मोर्चा फतह कराय।
नट : आखिरी लड़ाई थी यह मेवात की। बस खुल गयी पोल फिरंगी जात की।
नटी : जिन गांवों ने बागियों का दिया था साथ। उन्हें कर दिया नेस्तनाबूद और बर्बाद।
नट : शाहपुर खेड़ला, चिन्तौड़ा, गूजर नांगल, वहरीपुर खेड़ी थे ऐसे ही गांव अभागे।
नटी : पिनगुआ की पट्टी मेवान को किया जलाकर खाक।
नट : और आसपास के गांवों को भी किया जलाकर राख।
नटी : साथ दिया सदरू का जिन चौधरियों और नंबरदारों ने।
नट : उनकी जमीनें नीलाम करायी हरकारों ने।
नटी : खिड़ली, जलालपुर, देवला, शिकरा व, घाघस खेड़ी और दोहा की छीनी जमीनें।
नट : और जमीनें ये मिली उन्हें, जो थे गद्दार और कमीने।
नटी : वीर मेवों में किसी को मिली फांसी और किसी को काला पानी।
नट : यही थी लोगो मेवात की भी और सदरूद्दीन की भी कहानी।
दोहा:
सुनी कहानी आपने रखना इसको याद।
भूल शहीदों को न जाएं, रखें हमेशा याद।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर 2016), पेज- 60 से 63