सुधीर शर्मा – मेरा नौकर वर ढुंढवाइए मेरी मां

हरियाणवी नृत्य गीत

मेरा नौकर वर ढुंढवाइए मेरी मां

विवाह योग्य होने पर परम्परागत समाज में अपना पति पसंद करने वाली युवतियों की भूमिका नहीं होती। पर अपने सपनों के राजकुमार की एक छवि सभी युवतियां अपने मन में बसाए रखती हैं। यद्यपि वे परिवार में अपने पसंद के पति के बारे में खुलकर बात नहीं कर सकती। वे इन गीतों में अपनी उस भावना को व्यक्त कर देती हैं कि उनका पति किस प्रकार बहुत तमीज वाला, सभ्य और शालीन हो।
मेरा नौकर वर ढुंढवाइए मेरी मां,
हाळी लोग क: मत मत ब्याहिए
चाहे पांच बाराती बुलवाइए मेरी मां,
छटा बुलवाइए  उस छोरे न:
जब वो नौकर रोटी खावै,
कंच की प्लेट मंगवावै मेरी मां
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
जद वो हाळी रोटी खावै
टीकड़े प टीकड़ा जमावै मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
मेरा नौकर वन ढुंढवाए मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
चाहे पांच बाराती बुलवाइए मेरी मां,
छटा बुलवाइए उस छोरे न
जद वो नौकर सौवन लागै
झालर तकिए लगावै मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
जब वो हाळी सोवन लागै
गुदड़ी पै घाघरा जचावै मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
मेरा नौकर वर ढुंढवाइए मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए
चाहे पांच बाराती बुलवाइए मेरी मां,
छटा बुलवाइए उस छोरे न
मेरा नौकर वर ढुंढवाइए मेरी मां,
हाळी लोग क: मत ब्याहिए

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