sunil-thua-e1527920164793.jpgमेरे पांव लडख़ड़ाते हैं
लेकिन मेरे हौसलों को
कभी लडख़ड़ाने नहीं दिया
क्योंकि मुझे बहुत आगे तक जाना है
इन्हीं पांवों से चलकर
और बस आगे बढ़ते जाना है।’                      सुनील कुमार

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से पीएचडी कर रहे सुनील कुमार का जन्म जींद जिले के थुआ नामक गांव में 6 सितम्बर 1988 को हुआ। उनका आरंभिक जीवन बहुत हीं कष्टमयी व संघर्षशील रहा है। जब 6 महीने के थे, तभी वो पोलियो से ग्रसित हो गए। जीवन के आरंभिक दस सालों तक तो केवल हाथों के बल पर ही चलते थे। अनेक आप्रेशनों के बाद वो बैसाखी के बल पर चलने में सक्षम हुए। आप्रेशनों के कारण शारीरिक पीड़ा बहुत होती है थी।

दस साल के हुए तब तक सड़क दुर्घटना में पिता  की रीढ़ की हड्डी टूट गई। खेती करके  परिवार का  पेट पाल रहे  व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे परिवार की ही रीढ़ टूट गई। और के दुर्घटना के एक साल बाद वो चल बसे। सुनील की मां को अपने पति की मौत का इतना गहरा सदमा लगा कि वो मानसिक रूप से बीमार रहने लगी। सुनील व उनके पिता के इलाज के खर्च में परिवार की आर्थिक हालत खस्ता हो गई थी।

प्राईमरी तक की शिक्षा घर के ही नजदीक गली के स्कूल में हुई, जहां मां सुबह छोड़ जाती व दोपहर बाद ले जाती। हाई स्कूल तक की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई, जो घर से तो काफी दूर परंतु उनके खेतों के नजदीक था। और यह दूरी ही तब वरदान बन गई। खेत में चारा लेने के लिए जाने वाली बैलगाड़ी स्कूल आने-जाने का साधन बन गई।

12वीं तक की पढ़ाई नजदीक के गांव छात्तर में हुई। अब स्नातक की पढ़ाई करना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य था। सबसे नजदीक कालेज 35 किलोमीटर की दूरी पर जींद में  था। यहां पहुंचने के लिए 2 से 3 बसें बदलनी पड़ती। यह हिमालय चढऩे से कम नहीं, उस व्यक्ति के लिए जो अपने पांव पर सीधा खड़ा भी नहीं हो सकता। सुनील कुमार ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद स्नातक की पढ़ाई पूरी कर की।  स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने जेबीटी की प्रवेश परीक्षा दी और हरियाणा में 106 वां रैंक हासिल किया। डीआईईटी पलवल जिला कुरुक्षेत्र से जेबीटी किया। इसके बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी प्रथम श्रेणी से पास की। एम.ए. के बाद बी.एड. में दाखिला ले लिया।

सुनील कुमार की मेहनत और लगन का परिणाम है कि इसी दौरान HTET, CTET, NET व  JRF की परीक्षा पास की।  वर्तमान में सुनील कुमार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शांधवृति प्राप्त करके कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में ‘भगवानदास मोरवाल के साहित्य में मेवाती संस्कृति’ विषय पर पीएचडी कर रहे हैं। जिस बालक की शिक्षा का जिक्र आते ही कह दिया जाता हो कि ‘ये पढ़कर क्या करेगा, इसको टेलर का काम सिखा दो’ उसका शिक्षा के सर्वोच्च सोपान पर कदम रखना बड़ी उपलब्धि है।

व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचान लेता है तो उसने दुनिया को जीत लिया। स्कूल में अपने सहपाठियों को खेल-कूद व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते देखकर सुनील का भी मन करता। तो शिक्षकों व सहपाठियों से सुनने को मिलता कि ‘तू रहने दे, तेरे बस का नहीं है’। अपनी इस भूख को शांत करने के लिए नायाब रास्ता निकाला वे खेल-कूद के दौरान स्कोरर, रैफरी-अम्पायर की भूमिका निभाने लगे और मैच की कमेंटरी करके खिलाडिय़ों को हौंसला बढ़ाते हुए खुद को जोड़ लिया।

सुनील कुमार विभिन्न संगठनों के माध्यम से सामाजिक कार्यों के प्रति भी समर्पित रहते हैं। सरपंच अमित कुमार का कहना है कि ‘सुनील गांव की प्रत्येक गतिविधि में शामिल रहते हैं। गांव के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका अदा करते हैं।’ युवा क्लब के प्रधान समुद्र सिंह सुनील के योगदान को रेखांकित करते हैं कि ‘गांव में सामाजिक बुराइयों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, नशा आदि के खिलाफ विशेष जागरूकता अभियान चलाने में विशेष योगदान रहा है।’

मास्टर कृष्ण कुमार का कहना है कि ‘गांव में बच्चों को खेलों व शिक्षा में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं तथा युवाओं को शिक्षा व कैरियर निर्माण में मार्गदर्शन करते हैं तथा युवाओं को बुराइयों  से दूर व चरित्र निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं।’

सुनील कुमार के प्रयासों से गांव में खेल का मैदान बना, जहां गांव के सैंकड़ों लड़के-लड़कियां प्रशिक्षण लेकर गांव का नाम रोशन कर रहे हैं। सुनील कुमार ने ‘साक्षर भारत अभियान’ के तहत सैंकड़ों बुजुर्गों  को अक्षर ज्ञान भी करवाया। गांव की पंचायत के चुनाव में धन-बल पर रोक लगाने का भी प्रयास किया। वे विकलांग साथियों में अधिकारों की जागरुकता के लिए संघर्षरत हैं।

सुनील कुमार को पढऩे-लिखने का बहुत शौक है। किसान, मजदूर तथा वंचित वर्गों से जुड़ी समस्याओं पर लिखना इनको पसंद है। 22 अगस्त 2012 को उच्च शिक्षा में अच्छे प्रदर्शन के लिए शास्त्री भवन नई दिल्ली में राजीव गांधी फाउंडेशन की ओर से राहुल गांधी के हाथों ‘उत्कृष्ट राजीव गांधी विकलांग शिक्षित छात्र’ पुरस्कार दिया गया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद सुनील कुमार की उपलब्धियां व संघर्षपूर्ण व्यक्तित्व युवाओं की प्रेरणा बनेगा।

स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर 2016), पेज – 48

 

Avatar photo

By admin

One thought on “हौसलों से उड़ान होती है – राजेश कुमार”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *