स्त्री-स्त्री-स्त्री -सुरेश बरनवाल

कविता


स्त्री-स्त्री-स्त्री
स्त्री
अगर पत्नी है
तो स्त्री है
या फिर बेटी, मां, बहन
जो भी।
जब तक वह
समाज की परिभाषाओं से
बंधी रहती है
स्त्री होती है।
पर जब जागती है
स्त्री के भीतर एक स्त्री
और देखना चाहती है आसमां
हेाना चाहती है परिभाषाओं से मुक्त
स्त्री
कहीं अधिक स्त्री हेाकर
तब स्त्री नहीं कहलाती।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (सितम्बर-अक्तूबर, 2016) पेज-33
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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