क्यों भूलीगी थारो देस क्यों भूलीगी थारो देस – कबीर

साखी -ऐसी मति संसार की, ज्यों गाडर1 का ठाठ2।
एक पड़ा जेहि गाड़3 में, सबै जाहि तेहि बाट।।टेक
-क्यों भूलीगी थारो देस दीवानी क्यों भूलीगी थारो देस
हो-चरण -भूली मालन4 पाती रे तोड़े, पाती पाती में जीव हे रहे।
पाती तोड़ देवत को चढ़ाई, वो देवत नरजीव5 बावरी।।
डाली ब्रह्मा पाती बिसनु, फूल शंकर देव है।
फू तोड़ देवत को चढ़ाई, वो देवत नरजीव।।
गारा की गणगौर6 बणाई, पूजे लोग लुगाई हो।
पकड़ टांग पाणी में फैंकी, कहां कई सकलाई हो7।।
श देश का भोपा8 बुलाया, घर माय बैठ घुमाया हो।
नायल9 फोड़ नरेटी10 चढ़ावे, गोला11 खुद गटकावे।।
दूधा भात की खीर बणाई, खीर देवत को चढ़ावे।
देवत ऊपर कुत्ता रे मूते, खीर गीलोरी12 गटकावे।।
जीता बाप को जूतम जूता, मरया गंगाजी पहुंचावे।
भूखा था जब भोजन न दिया, कव्वा13 बाप बणावे।।
भेरु भवानी आगे  छोरा छोरी मांगे, सिर बकरा का सांटे14।
कहे कबीर सुणो रे भई साधो, पूत15 पराया मत काटे।।

  1. भेड़ 2. झुण्ड 3. गड्ढा 4. बागवान की पत्नी 5. अचेतन (निर्जीव) 6. एक प्रतिमा (जो विशेष पर्व पर बनाते हैं) 7. सच्चाई 8. जाण (ऐसा मानते हैं कि ये उस देवता के प्रतिनिधि हैं) 9. नारियल 10. नारियल का खोल 11. नारियल की गरी 12. गिलहरी 13. कौओ 14. बदले में (चढ़ाकर) 15. पुत्र

More From Author

तेरा मेरा मनुवा – कबीर

भाई रे दुई  जगदीश कहां ते आया -कबीर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *