आमूल-चूल परिवर्तन की खातिर – नुसरत

सांस्कृतिक हलचल

29 मई को यमुनानगर जिले का गांव टोपरा कलां गांव क्रांतिकारी जय भीम के नारों से गूंज उठा। जिधर देखिये उधर से जय भीम के नीले झंडों के साथ जोशीले नौजवान,महिलाओं व बच्चों का हुजूम चला आ रहा था। टोपरा कलां में हुआ भीम गर्जना कार्यक्रम अांबेडकर युवा मंच(एवाईएम) की अगुवाई में जनवरी माह से शुरू हुए डा.भीमराव आंबेडकर 125वीं जयंती समारोह की कड़ी का ही एक हिस्सा था। कार्यक्रम में करीब तीन हजार लोगों ने भागीदारी की। जितने पुरुष उतने ही महिलाएं। कार्यक्रम की तैयारियों के लिए एवाईएम के कार्यकर्ता करीब एक महीने से जुटे हुए थे। भीम गर्जना’ कार्यक्रम में मुस्लिम छात्रा नुसरत का डा.भीमराव आंबेडकर के जीवन दर्शन पर दिए वक्तव्य को ‘देस हरियाणा’ के पाठकों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है।


बाबा साहेब डा.भीमराव अम्बेडकर जी की 125वीं जयंती के मौके पर मौजूद तमाम लोगों को मैं यहां पर पहुंचने पर खुशामदीद करती हूं, और शुक्रिया अदा करती हूं मेरे गांव के सारे लोगों और साथियों को जिन्होंने इस तरह का प्रोग्राम आयोजित किया। एक बार मौजूद तमाम साथी जोशो-खरोश के साथ बोलिए जय भीम-जय भीम…

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जी का एहसान केवल एक कौम पर नहीं है, बाबा साहेब ने जो संविधान लिखा और संघर्ष करके जो हमें अधिकार दिलाए उनका एहसान पूरे मुल्क और उसके आवाम पर है। बाबा साहेब ने एस.सी., एस.टी. जमातों के लिए जो कानूनी प्रावधान किए उसी तरह से माइनोरिटी (अल्पसंख्यक) जमातों के लिए भी किए। जिस प्रकार एस.सी.-एस.टी. जमातों ने बाबा साहेब का संघर्ष में साथ दिया उसी प्रकार अल्पसंख्यकों ने भी साथ दिया।

                मुझे बताते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि बाबा साहेब ने 25 दिसंबर 1927 को जब मनुस्मृति को नजरे-आतिश किया था, उसको जलाया था, तो बाबा साहेब के साथ मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे। जब मनुवादियों ने बाबा साहेब को जमीन न देने की साजिश की तो हमारे पूर्वज, फत्ते खां नामक व्यक्ति ने अपनी निजी जमीन देकर बाबा साहेब के संघर्ष में अपना किरदार अदा किया था।

                बाबा साहेब ने केवल जाति विशेष के लिए नहीं, पूरे मूल्क और तमाम दबे-कुचले आवाम के लिए ताउम्र संघर्ष किया। औरतों के लिए बाबा साहेब ने जो कानून बनाए, औरतों को मर्दों के बराबर हक दिए। औरतों को पैर की जूती से सिर का ताज बनाया। इसलिए बहनों, बाबा साहेब का एहसान किसी से भी ज्यादा औरत जात के ऊपर है। अगर आप बाबा साहेब के एहसान और कर्ज को चुकाने लगे तो पूरी जिंदगी गुजर जाएगी। लेकिन बाबा साहेब के एहसान उतर नहीं पाएंगे। याद करो, जब औरतों को न वोट डालने का अधिकार था, न पढऩे का अधिकार था, न सार्वजनिक जगहों पर जाने का अधिकार था। याद करो जब पांच-पांच मीटर के घूंघट में अपराधियों जैसे मुंह ढक कर चलना पड़ता था। किस ने आजाद करवाया हमें, किस ने आप को आजादी दी, किसने पढऩा सिखाया, मेरे बाबा साहेब ने। केवल और केवल मेरे बाबा साहेब ने….

                मैं आप से पूछती हूं कि आप क्यों पढ़ाई कर रहे हो, आप का जवाब होगा नौकरी करने के लिए, इंजीनियर बनने के लिए, वकील, डाक्टर बनने के लिए, एस.पी., कलेक्टर बनने के लिए… लेकिन मेरे बाबा साहेब ने 23 डिग्रियां ली क्या नौकरी करने के लिए… क्या केवल अपने बच्चे पालने के लिए… क्या आज की तरह केवल टीवी और बीबी के लिए …. नहीं भाईयो और बहनों मेरे बाबा साहेब ने पढ़ाई की तो केवल और केवल अपने समाज को ऊंचा उठाने के लिए… अपने समाज को जगाकर क्रांति करने के लिए… पूरे समाज में आमूल-चूल परिवर्तन की खातिर बाबा साहेब ने तालीम हासिल की थी। लेकिन मेरे समाज के लोग, मेरे भाई-बहन केवल अपने परिवार और केवल अपने लिए पढ़ाई कर रहे है। मुझे ऐसे लोगों पर धिक्कार है…

                बाबा साहेब अगर चाहते तो पढ़ लिख कर नौकरी कर सकते थे। अपने बच्चों और औरत को अच्छे मकानों में रख सकते थे। उनकी हर ख्वाइश पूरी कर सकते थे। लेकिन नहीं, उनको अपने बच्चों के साथ-साथ समाज के बच्चों की फिक्र थी। उनके चार बच्चे हमारे लिए कुर्बान हुए, उनकी औरत ने हमारे लिए अपनी शहादत दी… बाबा साहेब के बच्चे और औरत आवाम के लिए कुर्बान हुए हैं… अगर हम बाबा साहेब के नक्शेकदम पर नहीं चलते तो हमें शर्म आनी चाहिए। अपने आप को बाबा साहब का अनुयायी कहने पर.. हमें शर्म आनी चाहिए, कि हम उस शख्स के प्रति फर्ज अदा नहीं कर पाए।  मैं मेरी अम्माओं से व बहनों से अपील करती हूं कि वह अपना फर्ज समझें और बाबा साहेब के कारवां के साथ आगे बढ़ें।

स्रोतः सं.सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त 2016) पेज – 58

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