मनोज पवार ‘मौजी’
मेरी भोळी सूरत कांब गई, मैं छोड़ रै आपणी धीर गया
जलियांवाळे बाग का मंजर, मेरा काळजा चीर गया
दन-दनादन गोळी चाली, दुश्मन के औजारां तै
नर अर नारी भून दिए सब, गोळी की बौछारां तै
मौत का नंगा नाच करिणयो, कित रै थारा जमीर गया
कोए मर्या पड़्या, कोए डर्या पड़्या, कोए पड्य़ा-पड़्या रै लोच रहया
कोए कुएं म्हं गिर्या पड़्या, कोए आपणे बाळक बोच रह्या
कोए खड़्या रै सोच रह्या, आज धरती पै तै सीर गया
हाथ पड़े किते पैर पड़ै, किते नाक, कान अर आंख पड़ी
याणे बाळक, बुढ्ढे, नारी, काया की दो फांक पड़ी
तन की कई छटांक पड़ी, टुकड़्या म्हं खिंड्या शरीर गया
सोनू नैगल क्युकर गाऊं, मेरा गळा रूंध जावै सै
डायर की करतूत देख कै, ‘मौजी’ कलम चलावै सै
‘माठड़े’ के हिरदे तै दिखे, आर-पार यू तीर गया
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त 2016), पेज-38