कविता
लिखना केवल लिखने तक
न रह जाये सीमित
सोच, सकपकाता है ये मन
कहना सिर्फ कहने तक
न रह जाए निमित
सोच, कचकचाता है ये मन
सोचना सिर्फ सोचने पर
न रह जाये आलम्बित
सोच, घबराता है ये मन
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त 2016) पेज-29