कविता
न्यूज पेपर पढ़ते-पढ़ते
एकाएक
मेरी नजरें अटक गई
उस विचित्र चित्र पर
जो घूंघट में फूलों की
माला पहने दे रही थी
भाषण
खड़ी थी विधायक
बनने के लिए।
जो खुद संस्कारित है
समाज के रूढि़ संस्कारों से
कैसे चला पाएगी देश को
प्रगतिशील विचारों पर
मैं पूछती हूं।
उन ूुढ़े-बुजुर्गों से
जो देते हैं आर्शीवाद
उसे बेटी समझकर
लेकिन ढकी है जिसकी चार इंद्रियां
पर्दे के पीछे।
कैसा शासन दे पाएगी
वो इस शोषण से जूझते समाज को
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा (जुलाई-अगस्त 2016) पेज-29