चौधरी देवीलाल के जयेष्ठ पुत्र ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 01 जनवरी 1935 के दिन अपनी ननिहाल के ग्राम रामसरा (जिला फाजिल्का) में हुआ था। उन्होंने मात्र आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन हरियाणा की राजनीति में उनका न केवल एक ऊंचा स्थान रहा, बल्कि उन्होंने उस पर एक गहरी छाप भी छोड़ी है। उनका राजनीतिक सफर 1968 के मध्यावधि चुनाव में बड़ोपल क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ने से शुरू हुआ था। चौटाला को इस चुनाव में कांग्रेस का टिकट इसलिए मिल पाया था क्योंकि उनके छोटे भाई प्रताप सिंह को दल बदलने के कारण पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया जा सकता था। इस चुनाव में वह विशाल हरियाणा पार्टी के लाल चंद के मुकाबले में हार गए, लेकिन लाल चंद का चुनाव न्यायपालिका द्वारा रद्द कर दिए जाने के बाद 1969 में हुए हरियाणा विधानसभा उपचुनाव में चौटाला कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनने में सफल रहे।
1972 से 1990 तक उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन चौधरी देवीलाल के मुख्य सिपहसालार के रूप में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। 1975-77 में आपातकाल के समय उन्हें जेल में नजरबंद भी रहना पड़ा था। 1977 में चौधरी देवीलाल के हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने के बाद 1977 तक वह सत्ता का एक महत्वपूर्ण अनौपचारिक केंद्र बने रहे थे। 1980 के लोकसभा चुनाव से लेकर 1990 के लोकसभा चुनाव तक उन्होंने चौधरी देवीलाल के सभी चुनावों और पंजाब समझौता के विरूद्ध उनके हरियाणा के न्याययुद्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। चौटाला की राजनीतिक दक्षता को ध्यान में रखते हुए ही केंद्र सरकार में उपप्रधानमंत्री बन जाने के बाद चौधरी देवीलाल ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया था। दो दिसंबर, 1989 के दिन उन्होंने हरियाणा के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन 23 मई 1990 के दिन महम उपचुनाव के समय हुई धांधली के आरोपों के चलते उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा और उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री लाला बनारसीदास गुप्ता को यह उत्तरदायित्व सौंप दिया था, लेकिन अनौपचारिक तौर पर वह वास्तविक मुख्यमंत्री बने रहे।
12 जुलाई 1990 के दिन वह गुप्ता से त्यागपत्र दिलवा कर दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए थे। किंतु प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के दबाव के कारण उन्हें 17 जुलाई 1990 के दिन दूसरी बार मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। इस बार उन्होंने मास्टर हुकम सिंह को औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री बना दिया, किंतु वास्तविक सत्ता उन्हीं के पास रही। इसके बाद चौटाला तीसरी बार 22 मार्च 1991 के दिन मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बहुमत सिद्ध न करने के कारण 6 अप्रैल 1991 के दिन राज्यपाल धनिकलाल मण्डल की सिफारिश पर उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई एवं हरियाणा विधानसभा भंग कर दी गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
1991 के विधानसभा चुनावों में उनकी सरकार और उनके दल की बिगड़ी हुई छवि के कारण उनके राजनीतिक दल को भारी असफलता का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन वर्ष 1996 में उनका राजनीतिक दल हरियाणा राष्ट्रीय लोकदल विधानसभा में मुख्य विरोधी दल के रूप में उभरने में सफल रहा था। 1998 के लोकसभा चुनाव में भी चौधरी बंसीलाल की हविपा-भाजपा गठबंधन सरकार की पूर्ण शराबबंदी की नीति के प्रतिकूल प्रभाव ने चौटाला के दल को भारी सफलता दिलाई और इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने गठबंधन तोड़ दिया और मुख्यमंत्री बंसीलाल को कांग्रेस का समर्थन मिलने के बावजूद विधानसभा में बहुमत सिद्ध न करवा पाने के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था।
उसके बाद चौटाला 24 जुलाई 1999 के दिन चौथी बार हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल-भाजपा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2000 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में उनके दल को स्पष्ट बहुमत मिल गया था, पर इस बार भाजपा उनकी सरकार में शामिल नहीं हुई थी। इस कार्यकाल में उन्होंने नौकरशाही पर मजबूत पकड़ बना कर हरियाणा का बहुमुखी विकास करने का कार्य किया। किंतु उन पर नौकरियों की भर्ती में धांधलियों के आरोप भी लगने लगे। जींद के कण्डेला में किसान सभा के आंदोलन के दमन का आरोप भी उन्हें झेलना पड़ा। उनके पुत्र अजय चौटाला और अभय चौटाला के सत्ता के अनौपचारिक केंद्रों के रूप में उभरने का भी उनकी छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
परिणामस्वरूप उन्हें 2005 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल को भारी असफलता मिली और 5 मार्च, 2005 के दिन उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इतना ही नहीं, शिक्षक भर्ती घोटाले में आरोपी सिद्ध होने पर चौटाला को दस वर्ष की जेल भी काटनी पड़ी। उन्होंने इस विपरीत स्थिति का धैयपूर्वक सामना किया। किंतु 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले उनके पुत्रों- अजय और अभय चौटाला में सत्ता संघर्ष के चलते इनेलो का विभाजन हो गया। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में यह 90 में से केवल एक ही स्थान जीत पाई थी, जबकि अजय चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) को दस स्थान मिले और इसके नेता तथा चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए गए।
इन सबके बावजूद हमें यह मानना होगा कि ओम प्रकाश चौटाला की हरियाणा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।