हरियाणा राज्य के गठन में प्रोफेसर शेर सिंह और चौधरी देवीलाल की प्रमुख भूमिका रही थी, लेकिन आधुनिक हरियाणा के निर्माण का मुख्य श्रेय बौधरी बंसीलाल को ही दिया जा सकता है। इन्होंने पंजाब के इस पिछड़े क्षेत्र को एक विकसित राज्य बना दिया, जिसकी मांग 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह कह कर खारिज कर दी थी कि यह साधन-विहीन पिछड़ा क्षेत्र, यहां के
नेताओं की वास्तविक और काल्पनिक शिकायतों को दूर नहीं कर सकता। बंसीलाल का जन्म एक मध्यमवर्गीय जाट किसान परिवार में 25 अगस्त, 1927 के दिन भिवानी जिले के गांव गोलागढ़ में हुआ था। उन्होंने मैट्रिक के बाद बी.ए. तक की शिक्षा अपने परिवार की दुकान में मुनीम और अपनी बस में कंडक्टर का कार्य करते हुए पूरी की थी। जालंधर के लॉ कालेज से एल.एल.बी. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भिवानी में वकालत का व्यवसाय शुरू कर दिया था। उनका राजनीतिक सफर लुहारू रियासत में प्रजामण्डल आंदोलन में भाग लेने से शुरू हुआ था, लेकिन इसकी वास्तविक बुनियाद 1961 में तब पड़ी, जब चौधरी देवीलाल की सिफारिश पर उन्हें कांग्रेस आलाकमान के द्वारा उस समय राज्य सभा का टिकट दे दिया गया, जब वह लाला बनारसीदास गुप्ता को टिकट देने की पैरवी करने के लिए देहली गए हुए थे। 1966 में उन्हें एक झटका तब लगा, जब वह कांग्रेस का टिकट होने के बावजूद भीतरघात के कारण पंजाब विधान परिषद का चुनाव हार गए थे। हरियाणा के अलग राज्य बन जाने के बाद 1967 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में चौधरी बंसी लाल कांग्रेस टिकट पर तोशम क्षेत्र से चुने गए थे। उस समय उन्होंने समझदारी से काम लेते हुए चौधरी देवीलाल के दबाव और राव बिरेंद्र सिंह के द्वारा दिए गए मंत्रीपद के प्रलोभन को ठुकराते हुए कांग्रेस में बने रहने का निर्णय किया था।
1968 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद वह पूर्व गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा के समर्थन और पूर्व मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा से प्रदेश अध्यक्ष पद की सौदेबाजी के कारण 21 मई, 1968 के दिन हरियाणा के तीसरे मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल (1968-72) में केंद्र सरकार के समर्थन और राज्य की नौकरशाही तथा तकनीकी तंत्र की सहायता से हरियाणा को एक पिछडे क्षेत्र से उन्नत राज्य बनाने के लिए विकास का आधारभूत ढांचा खड़ा कर दिया। उनकी इस प्रसंग में सबसे बड़ी उपलब्धि संपूर्ण राज्य के विद्युतीकरण को माना जा सकता है। अपने इस कार्यकाल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और हरियाणा के राज्यपाल बी.एच. चक्रवर्ती के समर्थन से उन्होंने पंडित भगवत दयाल शर्मा के समर्थक-विधायकों द्वारा 1969 में किए गए विद्रोह को विफल कर दिया। उनकी सरकार को गिराने का 1970 में हुए षडयंत्र भी उन्हीं के समर्थन और मुख्यमंत्री की सूझबूझ से सफल नहीं होने दिया।
किंतु 1972 से 1975 के अपने दूसरे कार्यकाल में तेजी से विकास लाने के बावजूद निरंकुश शैली अपनाने के कारण और उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह के सत्ता एवं शासन में बढ़े हुए प्रभाव के कारण, विशेष तौर पर रिवासा में उनके विरोधियों पर पुलिस के द्वारा की गई ज्यादतियों के कारण, मुख्यमंत्री की छवि कुछ घूमिल हो गई थी। लेकिन, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के समर्थन के कारण वह राजनीतिक रूप से अति शक्तिशाली बन गए थे।
एक दिसंबर 1975 के दिन उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल कर लिया था। इससे उनका केंद्रीय राजनीति में भी प्रभाव बढ़ गया। उनकी जगह लाला बनारसीदास गुप्ता को उसी दिन हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया गया और वह इस पद पर 30 अप्रैल 1977 तक बने रहे। गुप्ता के कार्यकाल में वास्तविक मुख्यमंत्री सुरेंद्र सिंह बन गए और सर्वोच्च मुख्यमंत्री की भूमिका चौधरी बंसीलाल निभाने लगे। आपातकाल की 1975 से 1977 तक की अवधि में परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू करने, अतिक्रमण हटाने और विरोधियों के दमन में पिता-पुत्र ने बहुत ज्यादतियां कीं। यही कारण था कि 1977 के लोकसभा चुनाव में चौधरी बंसीलाल जनता पार्टी की प्रत्याशी चंद्रावती के हाथों हार गए। 1980 में वह लोकसभा के सदस्य चुने गए, लेकिन, श्रीमती इंदिरा गांधी की नाराजगी के चलते उन्हें मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया। कहते हैं कि प्रधानमंत्री उनकी इस कथित डींग के कारण नाराज थीं- “मैंने बछड़ा (संजय गांधी) काबू कर लिया, गाय (इंदिरा गांधी) तो उसके पीछे-पीछे मेरे पास चली आई।” 1984 में कांग्रेस (आई.) के टिकट पर वह भिवानी लोकसभा चुनाव क्षेत्र से दूसरी बार चुने गए और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल कर लिया था। लेकिन 1986 में उन्हें इसलिए हरियाणा का तीसरी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया था ताकि वह पंजाब समझौते (1985) के विरूद्ध चौधरी देवीलाल की हरियाणा संघर्ष समिति के न्याय युद्ध को दबा सकें। किंतु वह इसे दबा नहीं पाए ओर 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में तोशाम क्षेत्र से चुनाव हार गए। 1991 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने भजनलाल के विरूद्ध पहले ‘हरियाणा विकास मंच’ बनाया और फिर उसे हरियाणा विकास पार्टी का नाम दे दिया।
इस दल ने 1996 के विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिल कर लड़ा था। चुनाव में बहुमत मिलने पर चौधरी बंसीलाल चौथी बार 11 मई 1996 के दिन हविपा-भाजपा गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की नीति लागू कर दी। लेकिन, जिस ढंग से यह नीति लागू हुई, उससे हविपा-भाजपा गठबंधन का जनाधार कमजोर हो गया। परिणामस्वरूप 1998 के लोकसभा चुनाव में इसे इनेलो-बसपा गठबंधन और कांग्रेस से कम स्थान मिले। इन परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और 24 जुलाई 1999 के दिन उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भी हविपा को बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद असफलता मिली।
2004 के लोकसभा चुनाव से पहले हविपा का कांग्रेस में विलय हो गया और इस दल के पुराने सदस्य नवीन जिंदल कांग्रेस के टिकट पर कुरूक्षेत्र से लोकसभा के सदस्य चुने गए। 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने पर चौधरी बंसीलाल के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह के विधानसभा सदस्य बनने के बाद उन्हें भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। किंतु हवाई दुर्घटना में इस छोटे बेटे की मृत्यु ने चौधरी बंसीलाल को गहरा सदमा पहुंचाया, जिसके कारण 28 मार्च 2006 के दिन उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी निरंकुश प्रकृति के बावजूद उन्हें आधुनिक हरियाणा का निर्माता कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।