चौधरी रणबीर सिंह हरियाणा के एक ऐसे नेता थे, जो संविधान सभा, अंतरिम संसद, लोकसभा, राज्य सभा, पंजाब विधानसभा और हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे थे। वह पंजाब और हरियाणा सरकारों में मंत्री भी बनाए गए थे। अतः उनकी पृष्ठभूमि और राजनीतिक यात्रा के विषय में जानना उपयोगी होगा। उनका जन्म पुराने रोहतक जिले के सांधी ग्राम में 26 नवंबर 1914 के दिन हुड्डा गोत्र के जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता जैलदार मातूराम अपने क्षेत्र मैं एक अति-प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। गौरतलब है कि इस पद की स्थापना अंग्रेजी सरकार ने ग्रामीण समाज में एक वफादार कैडर खड़ा करने के लिए की थी। उन्हें नंबरदारों का निगरानी अधिकारी बनाया गया था ताकि वह भूमि कर और सिंचाई कर इकट्ठा करवाने में राजस्व विभाग की सहायता कर सकें और ग्रामीण समाज पर निगरानी रखने में पुलिस प्रशासन को सूचना और सहायता कर सकें। चौधरी रणबीर सिंह के पिता आर्य समाज से प्रभावित होकर एक कांग्रेसी नेता बन गए थे किंतु उनकी प्राथमिकता आर्य समाज होने के कारण उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अधिक सक्रिय भूमिका नहीं निभाई थी।
उन्होंने अपने पुत्र रणबीर सिंह को भी गुरुकुल, भैंसवाल में दाखिल करवाया था, लेकिन आधुनिक शिक्षा का महत्व समझते हुए उन्होंने उसे मैट्रिक की शिक्षा वैश्य हाई स्कूल से दिलवाई और बी.ए. की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने रणबीर सिंह को रामजस कॉलेज, दिल्ली में भेजा था। जैलदार साहब ने अपने पुत्र को जाट हाई स्कूल में शिक्षा इसलिए नहीं दिलाई क्योंकि वह जाट एंग्लो वैदिक स्कूल से ऑल इंडिया जाट हीरोज मेमोरियल स्कूल बन गया था और उसका प्रबंधन अंग्रेजी सरकार के वफादारों के हाथ में चला गया था, जबकि वैश्य स्कूल का प्रबंधन ऐसे व्यक्तियों के हाथ में था, जो राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए थे। यह भी गौरतलब है कि 1923 में जैलदार मातूराम ने अंग्रेज-समर्थक जाट नेता राजबहादुर कैप्टन लाल चंद के विरुद्ध चुनाव लड़ा और हारने के बाद उनकी चुनाव की वैधता को चुनौती दी थी।
उनकी चुनाव याचिका मंजूर हो जाने के फलस्वरुप न केवल कैप्टन लाल चंद का चुनाव रद्द कर दिया था, बल्कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य करार दे दिया गया था। उसी के नतीजे के तौर पर 1924 में उन्हें मंत्रिमण्डल छोड़ना पड़ा था और उनकी जगह चौधरी छोटू राम को मंत्री बनाया गया था। जिसके फलस्वरूप हरियाणा की राजनीति में यूनियनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व का युग शुरू हुआ, जो कि 1945 में चौधरी छोटू राम की मृत्यु के बाद 1946 में खत्म हुआ। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि का चौधरी रणबीर सिंह पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था और 1940 में अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद वह राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए तथा उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह (1941) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लिया और ऐसा करने पर उन्हें कुल मिला कर लगभग चार साल जेल में रहना पड़ा था।
वर्ष 1946 में अंग्रेजों की सरकार द्वारा भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा स्थापित की गई तो चौधरी रणबीर सिंह को इसमें पूर्वी पंजाब विधानसभा के प्रतिनिधि के रूप में सदस्य बनने का अवसर मिला था। 1946-1949 की अवधि के बीच उन्होंने इसकी कार्यवाही में सक्रिय भाग लिया और राज्यों को अधिक शक्तियां देने की मांग की, किसानों पर आयकर न लगाने का आग्रह किया, उनका लगान कम करने की वकालत की और हरियाणा क्षेत्र को अलग राज्य बनाने की मांग भी उठाई थी। अंतरिम संसद में भी उनकी हरियाणा और किसान-समर्थक भूमिका बनी रही। गौरतलब है कि 1949 में संविधान सभा को ही अंतरिम संसद बना दिया गया था।
1952 और 1957 के लोकसभा चुनावों में चौधरी रणबीर सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में लोकसभा के सदस्य चुने गए। अपने 10 साल के कार्यकाल में उन्होंने ग्रामीण विकास और सहकारी आंदोलन के सशक्तिकरण तथा किसानों के हितों को बढ़ावा देने की वकालत की। 1962 में वह कलानौर विधानसभा चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों ने उन्हें सिंचाई मंत्री बना दिया। वह 1964 तक इस पद पर रहे और उन्होंने पंजाब में सिंचाई को विकसित करवाने एवं उसमें हरियाणा को उचित भागीदारी दिलाने का प्रयास किया। यद्यपि प्रताप सिंह कैरों के त्यागपत्र के बाद बने पंजाब के मुख्यमंत्री कॉमरेड रामकिशन ने उन्हें मंत्रिमण्डल में शामिल नहीं किया, लेकिन एक विधायक के रुप में चौधरी रणबीर सिंह किसानों और हरियाणा क्षेत्र के हितों की मांग उठाते रहे थे।
1 नवंबर 1966 के दिन हरियाणा को अलग राज्य बनाए जाने के बाद बने पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा ने उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में शामिल कर लिया था, लेकिन 1967 में हुए हरियाणा विधानसभा के पहले चुनाव में चौधरी रणबीर सिंह भीतरघात होने के कारण किलोई क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। 1968 से 1972 तक के मुख्यमंत्री काल में चौधरी बंसीलाल ने उन्हें राजनीतिक हाशिए पर लगा कर रखा था क्योंकि उन्होंने 1968 में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की थी। बौधरी बंसीलाल को यह संदेह भी था कि चौधरी रणबीर सिंह ने 1970 में उनकी सरकार को गिराने की योजना में भागीदारी की थी
इसलिए, मुख्यमंत्री ने 1972 विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिलने दिया। इनके बजाए उनके बेटे कैप्टन प्रताप सिंह को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया गया, लेकिन उसे भी भीतरघात के द्वारा हरवा दिया गया था। इसके बाद, चौधरी बंसीलाल ने उन्हें हरियाणा की राजनीति से दूर रखने के लिए 1972 में राज्य सभा का सदस्य बनवा दिया था। 1978 में यह कार्यकाल पूरा होने के बाद चौधरी रणबीर सिंह ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को पेंशन और सम्मान दिलवाने के लिए वह निरंतर प्रयास करते रहे थे। यद्यपि एक फरवरी 2009 के दिन चौधरी रणबीर सिंह का स्वर्गवास हो गया था, लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग आज भी दो दशक से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद करते हैं, जिसने कभी भी अपने विरोधियों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं किया।