हरियाणा की पहली महिला विधायक श्रीमती चन्द्रावती – चौधरी रणबीर सिंह

हरियाणा क्षेत्र से पहली महिला विधायक बनने का श्रेय 8 जनवरी 1928 के दिन जीन्द रियासत के दादरी परगना में ग्रांम डालावास के पूर्व सैनिक के घर में जन्मी चन्द्रावती को दिया जा सकता है। उनके पिता एक मंझले भूमिपति किसान थे और आर्य समाज का उन पर गहरा प्रभाव था। इसीलिए, उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया था। किंतु आर्य समाज के प्रभाव के बावजूद अपनी संस्कृति और आर्थिक रूप से पिछडे क्षेत्र की परंपराओं के अनुसार चन्द्रावती का विवाह बाल अवस्था में ही कर दिया था।।

प्रसिद्ध पत्रकार और इतिहासकार डा. अतर सिंह श्योराण के अनुसार बाल अवस्था में विधवा होने के बाद चन्द्रावती ने पुनर्विवाह करने के बजाए उच्च शिक्षा प्राप्त करने और राजनीति में शामिल होने का मन बना लिया था। पिलानी से स्कूली और जयपुर से कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने पेपसु (पटियाला एण्ड इस्ट पंजाब स्टेटस यूनियन) के जीन्द जिले की तहसील दादरी में वकालत शुरू की और राजस्थान के प्रसिद्ध जाट कांग्रेसी नेता कुम्भा राम आर्य की प्रेरणा से राजनीति में कदम रखा। उन्होंने 1953 में पेपसु विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दादरी क्षेत्र से जीत दर्ज की।

विधायक बनने के कुछ समय बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ब्रजभान ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए 1954 में उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में मुख्य संसदीय सचिव बनाया, जिस पर वह 1956 में पेपसु के पंजाब में विलय के बाद भी कार्य करती रहीं। किंतु 1957 के पंजाब विधानसभा चुनाव में चन्द्रावती जनसंघ के उम्मीदवार अतर सिंह श्योराण से चुनाव हार गईं। लेकिन 1962 के पंजाब विधानसभा चुनाव में चन्द्रावती भिवानी उपमण्डल के बाढरा क्षेत्र के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहीं, क्योंकि उसमें उन्हें श्योराण खाप का पूर्ण सर्मथन मिला था।

1 नवम्बर 1966 के दिन हरियाणा राज्य का गठन होने के बाद मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा ने उन्हें अपने मंत्रिमण्डल में राज्य मंत्री नियुक्त कर दिया था। लेकिन 1967 के विधानसभा चुनाव और 1968 के मध्यावधि चुनाव में चन्द्रावती जीत हासिल नहीं कर पाई। 1972 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में वह लुहारू से विजयी रही और मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने उन्हें अपनी सरकार में राज्य मंत्री बना दिया था, लेकिन अपने स्वतंत्र स्वभाव के कारण उन्हें रिवासर कांड में मुख्यमन्त्री के छोटे बेटे सुरेन्द्र सिंह के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत चुकानी पड़ी और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

उन्होंने 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता लहर का लाभ उठाते हुए चौधरी बंसीलाल को हरा कर सबको चकित कर दिया था क्योंकि वह भिवानी लोकसभा क्षेत्र में अजेय समझे जाते थे। 1980 के लोकसभा चुनाव में चन्द्रावती लोकदल के उम्मीदवार के तौर पर उनसे चुनाव हार गई थीं। उस समय तक श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में जनता पार्टी के शासनकाल में और चौधरी चरण सिंह की अल्पमतीय सरकार के समय में पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता के कारण कांग्रेस अपना खोया हुआ जनाधार प्राप्त करने में सफल हो गई थी। उसके बाद चन्द्रावती 1982 में लोकदल के उम्मीदवार के तौर पर बाढरा क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा की सदस्य बनने में सफल रही थी। लेकिन, वह 1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल (अजीत) के उम्मीदवार के रूप में चौधरी देवीलाल की लहर के कारण लोकदल (बहुगुणा) के प्रत्याशी रणसिंह मान से हार गई थीं। 1989 लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली मिली-जुली सरकार ने 1990 में उन्हें पांडिचेरी का उपराज्यपाल बना दिया था। लेकिन इस सरकार के गिरने के बाद त्यागपत्र देने से इन्कार करने पर उन्हें अपने पद से बर्खास्त कर दिया गया। किंतु 1991 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में वह जनता दल के उम्मीदवार के रूप में फिर से विजयी रहीं।

इन चुनावों में उन्हें चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी का सर्मथन मिला था। 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने उन्हें हरियाणा डेयरी डेवलपमेन्ट कोरपोरेशन का चेयरपर्सन बना दिया गया था। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने अपनी बढती हुई आयु और खराब स्वास्थ्य के चलते राजनीति से संन्यास ले लिया था। 15 नवम्बर, 2020 के दिन उनका स्वर्गवास हो गया, लेकिन वह हरियाणा की राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ गईं।

उन्होंने सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार एक साधारण परिवार से सम्बन्धित महिला उस समय के होने के बावजूद अपने साहस और परिश्रम से उच्च शिक्षा प्राप्त करके पहली महिला वकील, पहली महिला विधायक, पहली महिला मुख्य संसदीय सचिव पहली महिला राज्य मंत्री, हरियाणा की पहली महिला लोकसभा सदस्य और राज्य की पहली महिला उपराज्यपाल बन सकती है तथा अपने साहस के दम पर चौधरी बंसीलाल, चौधरी देवीलाल और तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला को चुनौती दे सकती है। लेकिन अपने स्वतंत्र स्वभाव के कारण चन्द्रावती लम्बे समय तक न तो मुख्यमंत्री प्रताप सिह कैरों, न ही पंडित भगवत दयाल शर्मा, चौधरी बंसीलाल, चौधरी देवीलाल और चौधरी ओम प्रकाश चौटाला तथा प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के साथ अधिक दिन नहीं चल पाईं।

इसके बावजूद, चन्द्रावती न केवल पांच बार विधायक बनीं, बल्कि एक बार लोकसभा सदस्य, दो बार मंत्री और एक बार उपराज्यपाल भी रही थीं। निःसन्देह हरियाणा की महिलाओं के लिए उन्हें एक प्रेरणा स्त्रोत समझना गलत न होगा। इस प्रसंग में वे कौन से कारक थे, जिन्होंने चंद्रावती को उपरोक्त उपलब्धियां पाने में सहायता की। सर्वप्रथम तो उनके परिवार की आर्य समाजी पृष्ठभूमि को उनकी सफलता का श्रेय दिया जा सकता है। स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा शुरू किए गए समाज सुधार आंदोलन ने महिलाओं की स्थिति में सुधार पर बल दिया था। दूसरे, उनके पिता की पूर्व सैनिक पृष्ठभूमि भी चंद्रावती के लिए सहायक रही। इसी कारण उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा दिलवाने का फैसला किया था। शिक्षित होने के कारण ही चंद्रावती राजनीति में जा पाईं। जातीय पृष्ठभूमि भी उनके राजनीतिक विकास में सहायक रही।

गौरतलब है कि हरियाणा के जाट बहुल क्षेत्रों में उन्हें चौधरी माना जाता है। चौधरी की इस पृष्ठभूमि ने भी चंद्रावती के नेतृत्व के गुणों के विकास में योगदान दिया। उनका गोत्र भी इस प्रसंग में उनके लिए सहायक रहा। राजनीतिक दलों का टिकट भी उनके काम आया। 1953, 1962 और 1972 के चुनाव में उनकी जीत कांग्रेस के टिकट पर मिली क्योंकि इसकी वजह से उन्हें पिछड़ी और अनुसूचित जातियों के मतदाताओं का समर्थन मिल गया था।

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