ग़ज़ल
कई खुल कर फिरौती ले रहे हैं
कई बस चाय पानी ले रहे हैं
तुम्हें मालाएं पहनाई जिन्होंने
सुनो ! वो लोग फांसी ले रहे हैं
करेगा क्यूँ कोई फोकस किसी पर
सब अपनी अपनी सेल्फ़ी ले रहे हैं
गुलाबों की दुकानों से चले थे
ये जो तरकारी भाजी ले रहे हैं
थी जितनी जान सारी दे चुके हम
हैं जितनी सांस बाकी, ले रहे हैं
ज़रूरी है यहाँ कोई धमाका
यहाँ सब लोग झपकी ले रहे हैं
ख़ुदा हाफिज़़ मेरे ‘हरमन’ कि अब हम
तेरे दिल से विदाई ले रहे हैं
- दिनेश हरमन