ग़ज़ल
हमारी रूह में शामिल था जि़न्दगी की तरह
अभी जो शख्स गया है इक अजनबी की तरह
किसी ने बनके समन्दर बिछा दिया खुद को
मैं उसमें घुल गया जा कर किसी नदी की तरह
किसी दुल्हन को वहां इंतज़ार है मेरा
मेरा जनाजा भी निकले तो घुड़चढ़ी की तरह
अब ऐसे दौर में पहचानें कैसे लोगों को
हरेक आदमी दिखता है आदमी की तरह
तब एक माह भी लम्हे सा बीत जाता था
अब एक लम्हा गुजऱता है इक सदी की तरह
मैं तुझको छोड़ के जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ
ये कुल जहान दिखे है तेरी गली की तरह
दिनेश हरमन