स्वतंत्रता समता बंधुता के मूल्य अपनाएं

गुंजन कैहरबा

नेतृत्व एवं जनसंवाद विषय पर कार्यशाला का आयोजन, विभिन्न सामाजिक संगठनों ने समाज में समता व बंधुता स्थापित करने का लिया संकल्प

सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में स्वैच्छिक समाजसेवी भावना के साथ काम वाले लोगों की संख्या वैसे तो तुलनात्मक रूप से कम है। लेकिन उनकी उपस्थिति और उनके कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं। स्वार्थपरता और प्रतिस्पर्धा के दौर में वे लोग सेवा व समर्पण की मिसाल कायम करते हुए नई दिशा देने का कार्य करते हैं। वे समाज, संस्कृति व पर्यावरण की समस्याओं की पहचान करते हैं और उन्हें दूर करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाते हैं। अपनी सोच और विचारों के अनुसार वे छोटे-छोटे समूहों का निर्माण करते हैं। समान सोच के लोग उन संगठनों के साथ जुड़ते हैं और छोटे-बड़े दायरों में काम करते हैं। अलग-अलग गांव में काम करने वाले ऐसे समूह यदि एक साथ आ जाएं तो वे कमाल का काम कर सकते हैं। ऐसे संगठनों और उनमें काम करने वाले युवाओं की नेटवर्किंग को मजबूत करने और उनकी क्षमता का संवर्धन करने के लिए स्वतंत्रता समता बंधुता मिशन लगा हुआ है। जनसंवाद और नेतृत्व विकास की कार्यशालाओं के माध्यम से यह काम किया जा रहा है।

दिनांक 16 अप्रैल, 2023 को करनाल जिला के इन्द्री खंड के गांव नन्हेड़ा स्थित राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक पाठशाला में ऐसी ही जन संवाद और नेतृत्व विकास कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक शिक्षा मंच जोहड़ माजरा, शहीद सोमनाथ स्मारक समिति, हरियाली युवा संगठन, शहीद उधम सिंह नाटक मंच हलवाना, बाल संगम मंच, शहीद भगत सिंह नाटक टीम, आदर्श युवा मंडल धनौरा जागीर, बुलबुल नाटक मंच कैहरबा, भीमराव आंबेडकर आदर्श समाज समिति कलरी खालसा व निफा के प्रतिनिधि पदाधिकारियों ने हिस्सेदारी की। कार्यशाला में मिशन के राष्ट्रीय संयोजक एवं देस हरियाणा के सम्पादक डॉ. सुभाष चन्द्र ने संगठनों का मार्गदर्शन किया। कार्यशाला का संचालन देस हरियाणा के सह-संपादक अरुण कुमार कैहरबा ने किया। कार्यक्रम का संयोजन शहीद सोमनाथ स्मारक समिति से जुड़ी गुंजन और हरियाली युवा संगठन की महिला प्रधान नीरू देवी ने संयुक्त रूप से किया।

डॉ. सुभाष चन्द्र ने अपने संबोधन में कहा कि सामाजिक दायरों में एक समाजसेवी वे हैं जोकि आपदा के समय लोगों को राहत पहुंचाने जैसे काम करते हैं। दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता व्यापक बदलाव के लिए काम करते हैं। बदलाव की सबसे मूलभूत विशेषता यह है कि जमीन पर बदलाव उतरने से पहले दिमाग में होता है। हमारी सोच में और सोचने के तरीकों में होता है। हम समाज में काम करते हैं तो सवाल पैदा होता है कि हम क्यों काम कर रहे हैं। कईं बार समाज में बहुत मेहनत और प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाले साथी भी कहते हुए पाए जाते हैं कि वे स्टेज पर बोल नहीं सकते। स्टेज पर आते हुए संकोच होता है। खड़ा होकर बोलते हुए शब्द ही नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि कोई भी परिवर्तन विचारों के जरिये ही आता है। कहा भी जाता है कि बात करने से ही बात बनती है। तो सामाजिक दायरों में काम करने वाले सभी साथियों के लिए आवश्यक है कि अपनी बातचीत करने के तरीकों को निखारें। आपस में बातचीत करते हुए बातचीत के कौशल को सुधारने की जरूरत रेखांकित हुई और इस कार्यशाला की रूपरेखा तैयार की गई।

डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि भारत की आजादी और संविधान लिखे जाने का लंबा संघर्ष और इतिहास है। 1857 में शुरू हुई आजादी की लड़ाई में अनेक नेता उभरे। अनेक विचारधाराओं से जुड़े लोग आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। शहीद भगत सिंह, डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना सहित कितने ही लोग अपने-अपने विचार और कारणों से आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। लंबे संघर्षों के बाद आजादी मिली। संविधान लिखा गया। स्वतंत्रता, समता और बंधुता उन संघर्षों का निचोड़ है। समाज के विकास के लिए ये मूल्य अनिवार्य हैं। लेकिन हम देखते हैं कि ये मूल्य समाज में पूरी तरह से दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में विभिन्न संगठनों का एक मकसद इन मूल्यों की स्थापना होनी चाहिए। यह सबका सांझा काम है। संविधान के मौलिक कर्तव्यों में भी वैज्ञानिक चेतना व पर्यावरण संरक्षण आदि बातों का शामिल किया गया है। संविधान के मूल्य ही हमारे सब कामों की कसौटी हैं। इन मूल्यों के साथ तर्कसंगति स्थापित करके हम अपने काम को और अधिक निखार सकते हैं। यदि कोई काम समता की तरफ नहीं जा रहा है और भेदभाव को बढ़ावा देता है तो वह काम हमारे संविधान की तर्कसंगति में नहीं है। उन्होंने कहा कि विभिन्न मुद्दों, विषयों व व्यक्तित्वों पर संगोष्ठी का आयोजन करते हुए अक्सर हमारे सामने समस्या आती है कि वक्ता कौन होगा? 15-20 वर्षों से सामाजिक कार्य करने वालों को हम वक्ता के रूप में या तो मान्यता ही नहीं देते हैं या फिर उन्होंने अपने भीतर वक्ता की क्षमता ही पैदा नहीं की कि उन्हें वक्ता के रूप में मान्यता दी जाए। ऐसे में हम वक्ताओं को ढूंढ़ते फिरते हैं। तो जरूरत इस बात की है कि वक्ता भी हमारे यहीं से हो। हम वक्ता तैयार करें। हमारे बीच में कईं ग्रेजुएट हैं। साहित्य भी मौजूद है। फिर भी आखिर हम किसी विषय के विभिन्न पहलुओं को नहीं क्यों नहीं जानते हैं और या फिर आखिर क्यों हममें उसे व्यक्त करने का हौंसला नहीं होता है।

एसोसिएट प्रो. धमेन्द्र फुले, डॉ मंजू देवी, मा. जसविन्द्र पटहेड़ा, महिन्द्र खेड़ा, दयाल चंद जास्ट, मान सिंह, नरेश मीत, धर्मबीर लठवाल, सूरज भान, केहर सिंह, नीरू, सुनील, विवेक, अंजलि, रजनी, चक्षु, नवीन, राजेन्द्र कुमार, राजेश, अली बाबू, शालू, आंचल, यश्वनी, अमन, बलदेव राज, कैलाश चन्द, सुशील धनौरा, सार्थक सहित सभी प्रतिभागियों ने अपने विचार व्यक्त किए। युवा प्रतिभागियों द्वारा खड़े होकर अपने विचार व भावनाएं व्यक्त की गई। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में वे निरंतर नेतृत्व के कौशलों का अभ्यास करेंगे।

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