धर्म के बारे में – अरविन्द गौतम

धर्म वर्तमान का वो विषय है जिस पर सारे देश की नजरें बनी रहती है, चाहे हिंदू हो या मुस्लिम , सिख हो या ईसाई , जैन हो या बौद्ध, पादरी हो या यहूदी । नजरें तो लगभग 140 करोड़ है मगर क्या हम सब इस विषय की कुछ समझ रखते हैं या नहीं, शायद नहीं । हमें टीवी के वाहियात और बेबुनियाद वाद विवाद और और कुछ समाचार पत्रों के एकतरफा लेखों के माध्यम से शायद एक ही पहलू दिखाया जाता है । मैं यहाँ केवल किसी एक धर्म की बात नही कर रहा , मैं विश्व भर में किसी न किसी धर्म के किसी भी प्रकार का समर्थन करने वाले या उन सब धार्मिक अनुयायियों की बात कर रहा हूं , क्योंकि दुनिया में आजतक जितना खून धर्म के नाम पर बहा है या बहाया गया है या बहाया जा रहा है उसे देख कर ये नहीं लगता की कोई अल्लाह , गोड़, ईश्वर , रब , खुदा या भगवान आदि की सत्ता ऊपर से देख कर सब नियंत्रित कर रही होगी ।

मेरा भारत वो देश है जिसमें हर धर्म को संवैधानिक रूप से सम्मान और समता प्राप्त है जो कि मौलिक अधिकार के रूप में हमें प्राप्त हुए है , हमें हर प्रकार से धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है । अगर अब बात करें मेरे देश की युवाओं की तो आज बहुत से युवा देश की उन्नति , देश में शिक्षा व्यवस्था , स्वास्थ्य व्यवस्था ,स्थाई रोजगार इन सब चीजों को दरकिनार कर सिर्फ धर्म का पल्लू थामें बैठा है । हमारे आज के युवा शहीद भगत को मानते तो है पर शायद जानते नही है क्योंकि अगर वो भगत सिंह को जानते तो उनको पढ़ते, उनके लेख , उनकी जेल डायरी पढ़ते तो शायद धर्म के अलावा बहुत से सामाजिक विषयों और सामाजिक अव्यवस्था पर उनकी नजर जरूर जाती। क्योंकि जब मार्च 1931 में शहीद भगत सिंह जेल में थे तब उन्होंने एक लेख लिखा ” मैं नास्तिक क्यों हूं” (Why I am atheast ) , जिसमें उन्होंने ईश्वर और धार्मिक सत्ता को लेकर अनेकों तर्कपूर्ण सवाल खड़े किए हैं । इस लेख में शहीद भगत सिंह ने भगवान को नीरो और चंगेज खां के समान तक बताया है। जब शहीद भगत सिंह को कहा गया कि तुम अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जरूर भगवान को याद करोगे तब भी भगत सिंह ने कहा था कि नही मेरे दोस्त ऐसा कभी नहीं होगा ।

ये तो बात थी शहीदे आजम और युवा वर्ग की । अब जान लेते हैं पत्रकारिता और लेखन के सही मायने क्या होते हैं। आज के इस दौर में शायद ही कोई लेखक या पत्रकार या कवि हो जो धर्म और भगवान की सत्ता के खिलाफ लिख पाए । इस बारे में एक नाम बार बार जेहन में चमकता है वो है आजादी के संघर्ष में अपना जीवन बलिदान देने वाले क्रांतिकारी लेखक और देशभक्त गणेश शंकर विद्यार्थी। जो धर्म के विषय में कहते हैं कि ” अज़ान देना, शंख बजाना , नाक दबाने और प्रेयर करने या नमाज पढ़ने का नाम धर्म नही है । शुद्ध आचरण और सदाचार ही धर्म का स्पष्ट चिन्ह है । दो घंटे बैठकर पूजा करें , पांच वक्त नमाज पढें और इस परकार आप अपने आप को दिनभर बेईमानी करने या दूसरों को तकलीफ देने के लिए आजाद समझते हैं तो इस धर्म को आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा ।इस परकार के धार्मिक और दिनदार आदमियों से तो वो ला मजहब और नास्तिक आदमी ठीक है जिनका आचरण अच्छा है , जो दूसरों के सुख दुख का खयाल रखतें हैं।” अपने इस वक्तव्य में गणेश शंकर विद्यार्थी धर्म को सर्वोपरि न मानकर राष्ट्रहित को पहले रखतें हैं।

इसी तरह देश के पहले कानून मंत्री भारत के संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर ने भी धर्म के विषय में कहा है ” मैं उस धर्म को मानना पसंद करूंगा जो स्वतंत्रता , समानता और बंधुता सिखाता हो ” , ” धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं ” । परंतु आज धर्म के कुछ ठेकेदार वो चाहे पंडित हो , मौलवी हो , पादरी हो या कोई और वो बस अपने धर्म को सर्वोपरि रखा और दूसरे धर्मों को एकदम नीच समझ कर हीन भावना से देखा ।

वहीं पाकिस्तान के सबसे बेहतरीन अफसाना निगार सहादत हसन मंटो भी अपनी कहानियों में धर्म और धाम के ठेकेदारों की उन रूढ़िवादी बातों की धज्जियां उड़ाते नजर आते है । लेखिका इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम, मुंशी प्रेमचंद, कमलेश्वर , बाबा नागार्जुन , अदम गोंडवी और अजहर वाजहत ने भी धर्म की मेहता से ज्यादा मानवता को सर्वोपरि माना है । मंटो एक जगह लिखते है यह मत का कहो की एक लिख मुस्लिम मारे गए है या एक लाख हिंदू मारे गए है ये कहो कि दो लाख इंसान मारे गए है । एक लाख हिंदू मारकर मुसलमानों ने सोचा कि हिंदू मजहब मर गया। लेकिन वह जिंदा है और एक लाख मुस्लिमों को मारकर हिंदुओं ने माना कि मुस्लिम मजहब का खात्मा हो गया पर उसे खरोच तक नही आई ।ऐसे लोग बेवकूफ है जो बंदूकों से मजहबों के शिकार करने को चाहते है ।
अंततः कहना चाहुंगा कि धर्म से शायद ही हमें कुछ प्राप्त हो परंतु शिक्षा , स्वास्थ्य और देश की उन्नति और प्रगति अति आवश्यक है।

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4 thoughts on “धर्म के बारे में – अरविन्द गौतम

  1. बहुत बढ़िया अरविंद जी सीधा, ओर करारा
    साथ में शब्दों का सही चयन,
    धर्म एक ऐसा गंदा नाला हैं
    जिससे निकलने के बाद भी
    उसकी गंदगी आपसे
    चिपकी रहती हैं
    जिसके लिए आपको चाहिए कि निरंतर खुद को साफ करते रहे

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