अबुआ: दिशोमा रे अबुआ: राज (हमारे देश मे हमारा शासन) यह नारा भारत के एक महान क्रांतिकारी नायक बिरसा मुंडा द्वारा दिया गया था। जिन्होंने अंग्रेजों तथा जमींदारों और जागीरदारों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाया था। इनका जन्म 15 नवंबर 1875 को चालकद नाम के गांव मे हुआ था हालांकि इनके जन्म स्थान को लेकर कुछ मतभेद है। सन् 1886 मे जर्मन ईसाई मिशन द्वारा संचालित चाईबासा के एक उच्च विद्यालय में इन्होनें शिक्षा ली। उनको अपनी भूमि और संस्कृति से गहरा लगाव था। वह आदिवासियों के आंदोलन के समर्थक थे।
बिरसा मुंडा ने आदिवासी लोगों को शिक्षा के महत्व और अंधविश्वास,पाखंड के प्रति जागरूक कर उनमें समाजिक स्तर पर सुधार किया और इसके साथ-साथ बेगारी प्रथा के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया जिसका परिणाम यह हुआ कि जमींदारों के घरों तथा खेतों और वनों की भूमि का कार्य रुक गया और आदिवासी लोगों अपनी आर्थिक स्थिति के प्रति जागरूक होने लगे। बिरसा ने समाज मे राजनीतिक स्तर पर भी कार्य किया। बिरसा की आंदोलकारी गतिविधियां देखते हुए उन्हें विद्यालय से निकाल दिया। बिरसा आदिवासियों की दुर्दशा, सामाजिक, संस्कृतिक एंव धार्मिक स्थिति को देख कर बहुत चिंतित थे। उन्होंने गांव जाकर लोगो को जागरूक किया तथा उन्हें अपना संकल्प बताया। उन्होंने “अबुआ: दिशोम अबुआ: राज (हमारे देश मे हमारा शासन)” का नारा दिया। बिरसा ने अंग्रेजी चाटुकारों और ठेकेदारों (जो जबरदस्ती जमीन हड़़प रहे थे) की नींद हराम कर दी। देखते-देखते बिरसा के साथ बहुत बड़ी संख्या में लोग जुड़़ने लगे। लोगों को लगने लगा कि अगर वो अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर देंगे तो उन्हें अपना हक मिल जायेगा। बिरसा की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेजी हुकुमत ने 22 अगस्त 1895 को बिरसा को किसी भी कीमत पर पकड़़ने के आदेश जारी किये तथा उन्हें उनके ही घर से पकड़ कर रांची डिप्टी कमीशनर के सामने पेश किया। लोगों को राजद्रोह के लिए उकसाने के जुर्म में बिरसा को दो साल की सजा और 50 रुपये जुर्माना लगाया।
30 नवंबर 1897 को रांची जेल से बिरसा को छोड़ दिया गया। जेल से आने के बाद बिरसा की पहले से भी तेज गतिविधियां तेज होने लगी। 9 जनवरी 1900 के दिन बिरसा मुड़ा अपने अनुयाइयों के साथ एक मीटिंग कर रहा था जिसकी खबर पुलिस को लग गई थी तथा बिरसा तथा उनके अनुयाइयों को पुलिस ने चारो तरफ से घेर लिया था। पुलिस ने सभी को आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन तभी नरसिंह मुंडा नाम के एक व्यक्ति उनके जबाव देते हुए बोला कि अगर हथियार डालने कि बात है तो वो अंग्रेजो को डालने चाहिए क्योकि ये देश हमारा है “हमारा देश हमारा शासन”। इस तरह पुलिस और विद्रोहियों मे लड़ाई हुई जिसमे मुंडा लोगो के तकरीबन 400 लोग मारे गये। अंग्रेजो ने विरोधियों को जेल मे डालने की प्रक्रिया तेज कर दी और 3 फरवरी सन 1900 को सरकारी इनाम 500 रुपये के लालच मे आकर गांव जीरकेल के सात लोगो ने बिरसा मुंडा के बारे मे गुप्त जानकारी दे कर बिरसा को गिरफ्तार करवा दिया। एक जून 1900 को डिप्टी कमीशनर ने ऐलान किया कि बिरसा मुंडा को हैेजा हो गया है इसलिए उनके जिंदा रहने की उम्मीद बहुत कम है। 9 जून 1900 को रांची जेल मे बिरसा मे अन्तिम सांस ली।