1. ये कहाँ लिखा है?
कोई बात करूं तो
तो तुरंत बोलते हैं
ये कहां लिखा है?
शायद लिखे हुए को मानते हैं
तो,
मैं लिख देता हूँ।
फिर
फिर भी नहीं मानते
ये जो तुमने लिखा है
ये... कहाँ लिखा है?
जो बात हुई न हो
वो कोई करे ना
जो कुछ लिखा ना हो
वो कोई लिखे ना
अब कोई उनसे पूछे तो
ये कहाँ लिखा है!?
2. चुप
ज़िन्दा नहीं हैं जो चुप हैं
जरा देखो तो कौन कौन चुप हैं
बोलो कमबख़्त जुबान से बोलो
पीछे सारा आँगन चुप है
आज फिर काग बनेरे बैठा
जुदाई का सूनापन चुप है
समझ गया हूँ मैं भी कुछ कुछ
ठीक है, खैड़ा छोड़ो,
यहाँ सारे 'साबर 'तो नहीं हैं
जिसका मतलब सधे, चुप हैं।
3. गंगा है या मक्का है
गंगा है या मक्का है
सीधा सीधा धक्का है
रब्ब को ढूँढते फिरते हैं
रब्ब किसी का सग्गा है?
मेरा राशन महीने का
तेरा एक ही फाक्का है
तेरा दीवा बुझ जाता है
मेरी चमड़ी का जो पलिता है
इतने साबर हो गए हैं
ज़ालिम हक्का-बक्का है
4. रब्बा तेरे हुक्म बिना
रब्बा तेरे हुक्म बिना
अगर पत्ता भी नहीं हिल सकता
क्या समझूँ
माड़े और कमजोर के पीछे
तू हैं?
लगते है जो रगड़े
हमको क्या उसके पीछे
तू हैं?
मस्जिद, मंदिर और गिरजे के
झगड़े के पीछे
तू हैं?
इतने खून-खराबे के बीच
तुझको क्या है मिलता?
रब्बा तेरे हुक्म बिना
अगर पत्ता भी नहीं हिल सकता
5. बंदा
बंदा बनना
बहुत मुश्किल है
पर,
जे बंदा
बंदा बन जावे
फिर
बंदा
बंदा नहीं रहता
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सुरेन्द्र पाल सिंह –
जन्म – 12 नवंबर 1960 शिक्षा – स्नातक – कृषि विज्ञान स्नातकोतर – समाजशास्त्र सेवा – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत लेखन – सम सामयिक मुद्दों पर विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित सलाहकर – देस हरियाणा कार्यक्षेत्र – विभिन्न संस्थाओं व संगठनों के माध्यम से – सामाजिक मुद्दों विशेष तौर पर लैंगिक संवेदनशीलता, सामाजिक न्याय, सांझी संस्कृति व साम्प्रदायिक सद्भाव के निर्माण में निरंतर सक्रिय, देश-विदेश में घुमक्कड़ी में विशेष रुचि ऐतिहासिक स्थलों, घटनाओं के प्रति संवेदनशील व खोजपूर्ण दृष्टि । पताः डी एल एफ वैली, पंचकूला मो. 98728-90401
Excellent work done by Surinderpal Singh ji!